tum na jane kis jaha me kho gaye book and story is written by Medha Jha in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. tum na jane kis jaha me kho gaye is also popular in Love Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - Novels
by Medha Jha
in
Hindi Love Stories
हर्ष ,हर्ष! कहां हो तुम? तुम्हें ढूंढती, तुम्हारे पीछे भागती वही मैं और अचानक सपना टूट जाता है। क्यों बार-बार देख रही हूं मैं यह सपना ? क्या संबंध है मेरा इस सपने से ? संबंध तो वास्तव में बहुत गहरा रहा है। करीब 25 साल पुराना। याद आता है वह दिन , करीब 16 साल की रही होंगी मैं। कुछ उम्र की खुमारी , कुछ मेरी कल्पनाशीलता और उस पर उस समय यह संदेश आना कि तुम्हें भी मैं बहुत अच्छी लगती हूँ मैं। कैसा नशा था, खुद-ब-खुद दिन जैसे रजनीगंधा की महक से महकने लगे थे। हर समय तुम्हारी
हर्ष ,हर्ष! कहां हो तुम? तुम्हें ढूंढती, तुम्हारे पीछे भागती वही मैं और अचानक सपना टूट जाता है। क्यों बार-बार देख रही हूं मैं यह सपना ? क्या संबंध है मेरा इस सपने से ? संबंध तो वास्तव ...Read Moreबहुत गहरा रहा है। करीब 25 साल पुराना। याद आता है वह दिन , करीब 16 साल की रही होंगी मैं। कुछ उम्र की खुमारी , कुछ मेरी कल्पनाशीलता और उस पर उस समय यह संदेश आना कि तुम्हें भी मैं बहुत अच्छी लगती हूँ मैं। कैसा नशा था, खुद-ब-खुद दिन जैसे रजनीगंधा की महक से महकने लगे थे। हर समय तुम्हारी
मई महीना बहुतों को गर्मी की चिपचिपाहट से भरा लगता है पर मेरे लिए तो हमेशा से यह रूमानियत वाला रहा है । इसकी शुरुआत उस साल से होती है जिस साल मुझे तुम्हारा खत मिला था । सभी ...Read Moreमेरी आंखों के सामने स्पष्ट हैं। मई की वह दोपहर, आकाश मेघाच्छादित था और मेरे मन पर तो वसंत ऋतु छाया था। लखनवी गुलाबी कुर्ता पहनी मैं, तन मन से भी गुलाबी हो रही थी। पहला सलवार कुरता था वह मेरा । बड़ी दी की शादी में मम्मी ने दिलवाया था।आज तुम्हारा खत आने वाला था। सुबह से ही उस
पटना कॉलेज का विशाल प्रांगण अपनी विशालता से जितना प्रभावित करता है, नवागंतुकों को कहीं अंदर तक भयभीत भी करता है। मन में मंडराते बहुत सारे विचार, निडरता उस समय अपना आकार लेने लगते है जब सीनियर्स की टोली ...Read Moreको घेर लेती है और उनकी टीका टिप्पणी आप के पोशाक तक जा पहुंचती है। "क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि यह स्कूल नहीं है , कॉलेज है और यहाँ ये पोशाक नहीं चलता है ।" उनका निशाना मेरी मिडी पर होता है। हम चांद पर पहुंचने का दावा करने वाले अपनी सोच को पोशाकों से ऊपर ले ही नहीं जा पाते
परीक्षाओं के दिनअचानक से कॉलेज के माहौल में शांति छा गई। हर कोई व्यस्त था नोट्स, अनुमानित प्रश्न और परीक्षा की तैयारियों में। अपनी मित्रों में सिर्फ मैं साहित्य की छात्रा थी और सब विज्ञान संकाय से थे तो ...Read Moreपरीक्षा हो चुकी होती थी मार्च के अंत तक। परीक्षा के बाद एक और प्रतीक्षा रहती थी अपने मित्र दीपक की। दीपक - पटना कॉलेज के प्रथम वर्ष का मेरा मित्र।परिचय उससे तब हुआ था जब वह कोई सूचना देने आया था मुझे। बाद में पता चला उसने अपने एक मित्र से सिर्फ इसलिए दोस्ती तोड़ ली क्योंकि उसका मित्र आकर्षित
हर्ष, हर्ष - मिलना चाहता है मुझसे। कायनात थम सी गई एक क्षण के लिए। अभी सुनी बात पर कानों को जैसे विश्वास नहीं हो पा रहा था। "क्या कहा तुमने?" मैंने अपनी ही आवाज सुनी। लगा, शायद ...Read Moreही जाऊंगी मैं। इस क्षण की प्रतीक्षा सालों से की थी मैंने। प्रतीक्षा की तो जैसे आदत सी हो गई थी और अचानक उसका खत्म हो जाना। जैसे चिर निद्रा में विलीन किसी तपस्वी को कोई जोर से जगा दे। निद्रा में ही तो थी मैं - कई कई सालों से। और एक झटके से वो निद्रा तोड़ दी गई। हमेशा कल्पनाओं में इस