30 शेड्स ऑफ बेला - Novels
by Jayanti Ranganathan
in
Hindi Moral Stories
बेला… तुम्हें आना ही था… (भूमिका)
हुआ कुछ यूं कि पहली अप्रैल को जब डॉक्टर के क्लीनिक से दाहिने पैर पर प्लास्टर लगवा कर निकली, तो ना जाने क्यों जबरदस्त हंसी आ गई। प्लास्टर ताजा-ताजा लगा था, नीले रंग का, घुटनों से कुछ नीचे तक। मैं व्हील चेयर पर बैठी थी और वार्डबॉय मुझे गाड़ी तक छोड़ने आ रहा था। मुझे हंसता देख, वह चौंका, फिर पूछने लगा, मैडम, कोई चुटकुला याद आ गया क्या?
मैंने जवाब दिया: नहीं भाई, आज के दिन तो मैं खुद चुटकला बन गई हूं। याद नहीं, आज अप्रैल की पहली तारीख है, फूल्स डे।
वह शायद समझ नहीं पाया, मैं उसे कैसे बताती कि पिछले साल इसी दिन इसी पांव पर मैं प्लास्टर चढ़ा कर घर जा रही थी!
कहावत है ना, to make a mistake twice… पहली बार असावधानी या दुर्घटना हो सकती है, दूसरी बार? मूर्खता?
अच्छा, पहली बार जब पांव टूटा, एक्सरे के बाद डॉक्टर ने कहा, टोर्न लिंगामेंट है, प्लास्टर लगेगा, तो मैंने एक चुनौती की तरह लिया। जीवन में पहली बार प्लास्टर लग रहा था। बचपन से अब तक भाई-बहनों को देखा था सफेद प्लास्टर लगाए, दोस्तों को भी। अफसोस भी था कि जिंदगी बीत गई, एक बार भी हड्डी ना टूटी। कहीं इस अनुभव से वंचित तो नहीं रह जाऊंगी?
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) संपादक: जयंती रंगनाथन बेला… तुम्हें आना ही था… (भूमिका) हुआ कुछ यूं कि पहली अप्रैल को जब डॉक्टर के क्लीनिक से दाहिने पैर पर प्लास्टर लगवा कर निकली, ...Read Moreना जाने क्यों जबरदस्त हंसी आ गई। प्लास्टर ताजा-ताजा लग
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 2: Prathishtha Singh प्रतिष्ठा सिंह आंखों ने ये क्या देखा? बनारस…खाने को ले कर यहां ज्यादा तामझाम नहीं होता। पर पवित्र गायों और हिंदू विश्वविद्यालय का यह ...Read Moreआपको लजीज नान वेज पेश करने में भी पीछे नहीं हटता। बेला ने रोहन से अपने पापा के भेजे पैसों में से कुछ मांग लिए। रोहन ने उसके हाथ में एक पांच सौ का नोट पकड़ा दिया और उसकी तरफ निहारता रहा। वह ताड़ गई। यह उसके लिए कोई नई बात नहीं थी। वही नहीं, उसे जानने वाले कई उसे
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 3 by Pratima Pandey प्रतिमा पांडेय मोह-माया और मन ‘मरना! कौन मरता है? पीछे रह जाने वाला या आगे के सफर पर निकल जाने वाला?’ श्मशान में ...Read Moreऔरत के सामने बेला का मन अपनी इस सोच पर मुस्कुरा दिया। उसने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा कि यह मुस्कुराहट तंज की है या विडंबना की। उसने वापस होटल जाने का मन बना लिया। काफी रात हो गई थी। आखिर बनारस में भी लोग ही तो हैं और जिंदगी का कहना तो यही है कि लोगों का कोई भरोसा
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 4: Ravi S Shankar रवि एस शंकर मन बसंत में आया पतझड़ बेला की आंखें अचानक खुल गईं। आशीष के साथ पूरा दिन बनारस दर्शन करने के ...Read Moreवह इतनी थक गई थी कि रात को आठ बजे होटल के कमरे में पहुंचते ही बिना कुछ खाए-पिए वह बिस्तर पर गिरते ही सो गई। उसे वैसे खास भूख भी नहीं लगी थी, क्योंकि छोटू ने उसे पूरा दिन कभी किसी खोमचे पर तो कभी किसी ढाबे पर खूब खिलाया-पिलाया था। आशीष ने तो कहा भी था कि बनारस
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 5 by Poonam Jain पूनम जैन अतीत में घूमता मन ऋषिकेश, गंगा का घाट। यहाँ आकर उसे लगा कि वो बेला ही है. मुँह धोने का मन ...Read Moreपानी लेने झुकी और अपना ही चेहरा देखकर विरक्ति से भर उठी। आँखें बंद कर ली। क्या वाकई कुछ था, जिस पर खुश हुआ जा सकता था? कितना कुछ नहीं बीता? अच्छा बुरा क्या कुछ नहीं किया? जाने अभी और क्या देखना बाकी था? फटाफट मुँह पर पानी डाला और किनारे पड़े बेंच की ओर सीढ़ियां चढ़ने लगी। करीब तीन हफ्ते
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 6 by Iqbal Rizvi इकबाल रिजवी एक नदी की वापसी ऋषिकेश में गंगा का प्रवाह बनारस के मुकाबले काफी तेज़ है, पानी भी साफ़ रहता है. बेला ...Read Moreनज़रें लगातार पानी के बहाव पर टिकी हुई हैं. बेला को पूरी ताकत लगानी पड़ी थी उस सदमे से बाहर आने में जो बनारस में उसने झेला था. अब किसी हद तक वो सामान्य होती जा रही थी. बरसों बाद आज उसे मां की याद शिद्दत से आ रही थी. हालांकि मां को लेकर उसके अनुभव अच्छे नहीं थे. लेकिन स्वाभाविक
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 7 by Amrita Thakur अमृता ठाकुर हवाओं के रुख ने बदल दी राह ‘आग और पानी में गजब का आकर्षण होता है! नज़र कैसे दोनों पर टिक ...Read Moreजाती है। एक आरंभ है और एक अंत। मां के गर्भ में पानी से ही बच्चा पहली बार रू
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 8 by विधुरिता पटनायक (Vidhurita Patnaik) जिंदगी और एक कप कॉफी मां...मां..मम्मा...!!!! 3 साल की रिया के नन्हे हाथों ने बेला को ट्रांस से निकाला... पैकर्स ...Read Moreखोले सामानों से कमरा बिखरा पड़ा था। तबादले में एक और शहर जुड़ गया अब उसकी ज़िन्दगी से। खिड़की से सामने समंदर को अपलक देख रही थी ...समंदर की लहरें दादी के संगीत के उतार-चढ़ाव सी क्रमबद्ध अपना सर पटक कर वापस लौट जाती। इस महानगरी में आना बेला को काफ़ी अशांत सा कर गया था.. जुड़ नहीं पा रही थी
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 9 by Abhishek Mehrotra अभिषेक मेहरोत्रा आंखों का वो पानी... दिन बीत गया था, रात को अलसाई सी बेला ने खिड़की से बाहर देखा तो भागती-दौड़ती मुंबई ...Read Moreदेखकर उसे उस बनारस की याद आई, जहां कुछ दिन बिताने के बाद उसने पाया कि लोगों में कितना अपनापन है। वो अपनापन, वो सुकून जिसके चलते शायद मामूली सी चाय की चुस्कियां भी मुंह में नया स्वाद घोल जाती। मुंबई की मीठी चाय, मुंह में बस मीठा स्वाद छोड़ती है। शायद इसीलिए चाय की शौकीन बेला भी कब कॉफी
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Eposode 10 by Rinki Vaish रिंकी वैशदरख्तों पर पसर गए हैं साए आंखों से बहते खारे पानी ने ताज़ी लिखी इबारत को धो डाला था। अपनी टैगलाइन से ...Read Moreको सपने बेचने वाली बेला के खुद के सपने आंखों में चुभ रहे थे। कृष के साथ बिताए कुछ घंटों ने ज़िंदगी में उथल-पुथल मचा दी थी। वहीं सोफ़े से टिक कर देर तक रोना बेला को भला लगा। बचपन से ही आंसुओं से बेला की पक्की दोस्ती थी। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, दोस्ती कम होती गयी। ज़िंदगी से जद्दोजहद करते-करते
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 11 by Kamlesh Pathak कमलेश पाठक सायों में उलझी एक रात बेला के अंदर एक नदी लगातार बहती है , कभी शांत तो कभी उग्र । कभी ...Read Moreकी गंगा की तरह सीधी सरल तो कभी बनारस की गंगा की तरह बलखाती हुई । यही अंतर्धारा उसका संबल है जिसके सहारे वह बड़े से बड़े हादसों को झेल जाती है। आज ऑफिस से जल्दी निकल गई। मन में हजार सवाल थे। पापा, कृष, कृष, पापा… !!! पापा। दिल्ली जाना पड़ेगा। पापा इस तरह कभी नहीं बुलाते। बहुत जरूरी बात
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 12 by Shilpa Sharma शिल्पा शर्मा इस सुबह की शाम कब होगी ट्रेन तीव्रतम वेग से दौड़ रही थी और उससे कहीं तेज़ गति से बेला की ...Read Moreके आगे आ-जा रहे थे कई चेहरे-पापा, मौसी, समीर, पद्मा, इंद्रपाल, कृष, रिया। नेटवर्क ने सही मौक़े पर मोबाइल का साथ छोड़ दिया। कृष की बात सुनकर उसे अपने कानों पर भले ही विश्वास न हुआ हो, पर विश्वास की हिली हुई चूलों ने आंखों को कब नम कर दिया बेला भी नहीं समझ पाई। वह तुरंत अपनी ऊपर की बर्थ
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 13: Roopa Das रूपा दास जिंदगी के रंग अधूरे हैं अभी काफी देर से बेला अपनी मां के बारे में सोच रही थी। दिमाग में तूफान सा ...Read Moreथा। उसकी सबसे चहेती दादी ने भी उससे इतनी बड़ी बात कैसे छिपा ली? वे ऐसा कैसे कर सकती थीं? जब भी बेला अपनी मां के बारे में सोचती, उसकी आंखें भर आतीं। वह अपनी मां से हमेशा दूर रहा करती थी, काश, वह उस वक्त उन्हें समझ पाती। काश, काश, काश… अपने ख्यालों में मशगूल वह दिल्ली में अपने
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 14 by Rajlaxmi Tripathi राजलक्ष्मी त्रिपाठी जुड़ रहे हैं दो किनारे बेला एकटक खिड़की से बाहर देख रही थी। रात होने को थी। जबसे रिया को घर ...Read Moreकर आई है, दिमाग में ढेरों बातें चल रही है। सबसे पहले डॉ पंखुरी को फोन किया, उसने रिया को गोद दिलवाने में उसकी काफी मदद की थी। दिल में छेद… सूई भर का। पंखुरी खुद अवाक रह गई। देर तक फोन पर कोई आवाज नहीं आई। फिर अपने आपको समेट कर और बेला को ढांढस बंधाते हुए बोली, ‘सब
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 15 by Dhyanendra Tripathi ध्यानेंद्र त्रिपाठी घाटों के गलियारों से पक्के महाल की सीलन भरी जादुई गलियों के कुछ कोनों ने ताउम्र सूरज की रोशनी नहीं देखी। ...Read Moreइर्द-गिर्द शान से खड़ी पुरातन हवेलियां भी तकरीबन इन्हीं के जैसी हैं। भुवन भास्कर की रोशनी से महरूम और रहस्यमई जानलेवा आकर्षणों से गलियों के गिर्द झांकती, सदियों से बनारस के लोगों को महफूज रखतीं, वक्त के थपेड़ों से निस्पृह, अपने ही मोहपाश में स्पंदित। सुधीर बाबू की मिठाई की दुकान बनारस की इन्हीं गलियों के जादू का स्वाद है,
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 16 by Harish Pathak हरीश पाठक ठहरी हुई शाम बेला के कदम आगे बढ़ने से इंकार कर रहे थे।उसकी सांस फूल गयी थी और हाथ की मुट्ठियां ...Read Moreगयी थीं। एक क्षण लगा वह आगे बढे और इन्द्रपाल को तब तक मारती रहे जब तक वह लहूलुहान हो जमीन पर गिरकर छटपटाने न लगे।तब भीड़ जुटेगी, लोग पूछेंगे क्या हुआ और वह चीख-चीख कर इन्द्रपाल को बेनकाब कर देगी।पुलिस आएगी, उससे तहकीकात करेगी और चिल्ला-चिल्ला कर बेला इन्द्रपाल की असलियत सबको बता देगी। ...पर पापा को यह क्या
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 17by Era Tak इरा टाक मन ना भये दस-बीस बेला के मन में पद्मा को लेकर एक अजीब सी वितृष्णा है। पद्मा को अपने प्रेमी की पत्नी ...Read Moreरूप में स्वीकार कर पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। पद्मा ही थी जिसकी वजह से बनारस में उसकी ज़िन्दगी में भूचाल आया था, जिसकी वजह से वो समीर से मिली उसकी शादी हुई । और अब कृष सब जानते हुए भी उसकी ज़िन्दगी में दस्तक देने क्यों आया है? क्यों अब अपने प्यार का इजहार कर उसके करीब
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 18 by Suman Bajpai सुमन बाजपेई कैनवास पर उभरने लगे हैं कुछ रंग रिया जैसे ही पार्क से लौटी उसने उसने कसकर उसे सीने से लगा लिया। ...Read More” कह कर वह भी उसे बेतहाशा प्यार करने लगी। “ आई मिस्ड यू मम्मी।” “
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 19 by Sumita Chakrobarty सुमिता चक्रवर्ती कुछ तेरी-कुछ उसकी कहानी फिर दादी… दादी के अलावा जिंदगी के सूत्र और किसी ने दिए ही नहीं। वो कहा करती ...Read Moreहर सवाल का जवाब नहीं होता। कुछ सवाल खुद अपने आप में जवाब होते हैं। बेला की उम्र रही होगी, बारह साल। वह अपने स्कूल में कथक की डांस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही थी। मन था कि पापा और मां भी उसे देखने आएं। पर आईं, सिर्फ दादी। उसकी दादी शानदार दिखती थीं। छोटे कटे झक सफेद मुलायम से
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 20 by Sonali Mishra सोनाली मिश्रा चांद भी अकेला है अबूझ पहेली बनती जा रही है पद्मा। अचानक बेला का बहुत मन करने लगा था पद्मा से ...Read Moreका। अपने बचपन के दिनों में दादी से कितना लड़ा करती थी कि उसकी दूसरी सहेलियों की तरह उसके भाई-बहन क्यों नहीं है? उसकी सबसे अच्छी दोस्त सकीना की छोटी बहन थी नूरी। बेला को बहुत प्यारी लगती थी, हमेशा अपनी दीदी सकीना से चिपट कर चलती थी। एक दिन नूरी का हाथ पकड़ कर घर ले आई और दादी
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 21 by Priya Singh प्रिया सिंहनींद के गांव में जबसे आई है पद्मा, बस सोए जा रही है। बस घर आ कर उसने कहा था, मुझे ठंडा ...Read Moreपिला दो। समीर ने इशारे से बेला से कहा कि उसके लिए कुछ खाने को ले आए। पर बेला के आने से पहले वह सोफे पर लुढ़क चुकी थी। गहरी नींद में। बेला ने उसका चेहरा देखा। इस वक्त कोई तनाव नहीं था। शांत लग रही थी। समीर ने कहा, ‘बेला, इसे सोने दो। तुम भी अंदर कमरे में जा कर सो
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 22 by Sana Sameer सना समीर किस गली बिकती है वफाएं? कृष की आवाज़ सुनकर बेला के मन में एक तूफ़ान सा उमड़ आया। अचानक कुछ ...Read Moreताज़ा हो उठीं। बेला को अपनी एक नज़्म याद आ गयी - " अरमां की बारात लिए, आशाओं में कौन जिए, जिनके लिए बस कांटे हैं, उनका दामन कौन सिये, कृष्ण कन्हैय्या आ जाओ, मीरा कब तक ज़हर पिए " बेला लिखती थी लेकिन केवल एक शख्स के लिए। कृष की बात सुनकर वह बीते दिनों के सैलाब में समा गयी। कृष का
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode-23 by Amrendra Yadav अमरेंद्र यादव जब मिलीं दो नदियां बेला ने देखा। वो परिचित कदम इंद्रपाल यादव के थे। वो बनारस के उस क़ैदखाने में बिताए दिनों ...Read Moreइन क़दमों के आहट की अभ्यस्त हो गई थी। अपने कमरे में चुपचाप पड़ी रहती। इन कदमों की आहट होते ही समझ जाती कि उसे अगवा करनेवाला आ गया है। इंद्रपाल काफ़ी ग़ुस्से में लग रहा था। ‘कैसा बदला? वो भी अपनी बहन से।’ बेला कुछ सोच पाती, या इसके पहले कि वो बेला तक पहुंचता समीर तेज़ी से उसकी
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 24 by Shilpi Rastogi शिल्पी रस्तोगी भटक रहा है आधा चांद बेला को लगा था, अब जिंदगी ढर्रे पर आ गई है। ऐसे में दिल्ली से आशा ...Read Moreचिंता भरा फोन। दोपहर को बता चुकी थीं उन्हें कि वह अब पद्मा की चिंता न करें वह बिल्कुल ठीक है। रिया भी बहुत खुश है अपनी पद्मा मौसी के साथ। वाकई बेला को लगने लगा था शायद अब ग्लेशियर पर ढकी बर्फ जैसे पिघलने लगी है। लेकिन वो तो कुछ और ही कह रही थीं—बेला, कैसे कहूं बेटी? वो,
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 25 by Tushar तुषार और फिर एक दिन… बेला बैंक से बाहर निकल आई, दोनों हाथों से कस कर उसने एक पैकेट पकड़ रखा था, आंखों में ...Read Moreसा सवाल। एक और नई बात? किससे कहें? मां, पापा, पद्मा? क्रिष? शायद वह इस सवाल का जवाब दे पाए। क्रिष का मोबाइल अभी भी स्विच्ड ऑफ आ रहा था। बेला थोड़ा खीझ गई—वो है कहां? एक सप्ताह से उसका कोई अता-पता नहीं है। वह इतना गैरजिम्मेदार कैसे हो सकता है? बेला ने समीर को फोन लगाया। कॉल उसके वॉइस मेल
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 26 by Gayatri Rai गायत्री रायदर्द धुआं धुआं आशा ने धीरे से क़दम बढ़ाया। दबे पांव बेला को सोते देख लौट ही जाना चाहती थी कि बेला ...Read Moreआवाज़ दी, मां... आशा चुपचाप बेला के पास आकर बैठ गई। शाम का सन्नाटा पूरे कमरे में बिखरा था। कोई आवाज़ नहीं, बस लॉन से आती मोंगरे की भीनी-भीनी ख़ुशबू चारों ओर तैर रही थी। बेला आशा की गोद में सिर रखकर उसका हाथ पकड़ आंखें बंद किए बिल्कुल मुर्दा सी पड़ी थी। दोनों का दर्द बिना कुछ कहे एक-दूसरे
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 27 by Shuchita Meetal शुचिता मीतल गवाही दे रहा है चांद आशा चौंककर अपने मन की भूलभुलैया से बाहर आई। ''हां, क्या कह रही थीं, दीदी? सॉरी, ...Read Moreज़रा भटक गया था,'' आशा ने संभलते हुए कहा। नियति ने ग़ौर से उसके चेहरे को देखा। उसकी प्यारी, नटखट, पहाड़ी नदी सी चंचल बहन कब और कैसे इस धीर-गंभीर औरत में बदल गई थी! नियति ने तो कभी उसके मन की थाह लेने की कोशिश ही नहीं की थी। बस अपने में, अपने रंगों में मगन रही। बचपन से
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 28 by Piyush Jain पीयूष जैन लौट आया खुशबुओं वाला चांद लड़ियां उतारी जा रही थीं। बिखरे फूलों का कोने में ढेर लगा था। हवा में खुशबू ...Read Moreभी थी। सब काम ठीक से हो गए थे। रिश्तेदार जा चुके थे। बहुत दिन बाद सब खुश थे।घर के सूने पड़े कोनों पर नए रंग थे। ढोलक की थापें थीं। मंगलगीत गाए गए थे। और उन आवाजों में कुछ सच्चे-झूठे गिले शिकवे भी घुल गए थे। पहले आशा और पुष्पेन्द्र ने एक दूसरे को माला पहनायी थी। बिलकुल सादे
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Episode 29 by Nalini नलिनी सुब्रमण्यम इस शाम की कब होगी सुबह? दिल्ली की एक खूबसूरत शाम। थोड़ी देर पहले बारिश हो चुकी थी। मिट्टी से आती वो ...Read Moreसी खुशबू। लॉन में झूले पर रिया लंबी पेंगे लगा रही थी। उसे झुला रहे थे कृष और पद्मा। कृष बार-बार पद्मा की तरफ झुकते हुए कुछ कह रहा था और हर बार पद्मा के गालों पर हलकी सी सुर्खी आ जाती। बरामदे में गोल कॉफी टेबल पर बैठे पुष्पेंद्र और आशा। आशा की मांग में हलका सा सिंदूर। माथे
30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 30 by Sudarshana Dwivedi सुदर्शना द्विवेदी एक थी बेला " मैं मर जाऊंगा, भूख से जान निकल रही है मेरी। और सब तेरी वजह से रोहित।" भुक्कड़ ...Read Moreसचमुच पेट पकड़ रखा था। रोहित बिना उसे देखे आगे बढ़ गया, मगर इला उसके पास रुक गयी। "थोड़ी हिम्मत कर, ज़रूर कुछ मिलेगा। कोई तो रहता होगा यहां।" "भूत ,भूत रहते होंगे और वे हमें खाना देंगे नहीं, खाना बना लेंगे। कितना कहा था उस पकोड़ी वाले की दुकान पर रुक जाते, मगर उसका तेल काला था। काला था