Benzir - the dream of the shore by Pradeep Shrivastava | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - Novels Novels बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - Novels by Pradeep Shrivastava in Hindi Social Stories (285) 12.9k 30.2k 4 भाग -१ काशी नगरी के पॉश एरिया में उनका अत्याधुनिक खूबसूरत मकान है। जिसके पोर्च में उन की बड़ी सी लग्जरी कार खड़ी होती है। एक छोटा गार्डेन नीचे है, तो उससे बड़ा पहले फ्लोर पर है। जहां वह ...Read Moreपति के साथ बैठकर अपने बिजनेस को और ऊचांइयों पर ले जाने की रणनीति बनाती हैं। तमाम फूलों, हरी-भरी घास, बोनशाई पेड़ों से भरपूर गार्डेन में वह रोज नहीं बैठ पातीं, क्योंकि व्यस्तता के कारण उनके पास समय नहीं होता। जो थोड़ा बहुत समय मिलता है, उसे वहअपने तीन बच्चों के साथ बिताती हैं । जो वास्तव में उनके नहीं Read Full Story Download on Mobile Full Novel बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 1 1.3k 2.6k भाग -१ काशी नगरी के पॉश एरिया में उनका अत्याधुनिक खूबसूरत मकान है। जिसके पोर्च में उन की बड़ी सी लग्जरी कार खड़ी होती है। एक छोटा गार्डेन नीचे है, तो उससे बड़ा पहले फ्लोर पर है। जहां वह ...Read Moreपति के साथ बैठकर अपने बिजनेस को और ऊचांइयों पर ले जाने की रणनीति बनाती हैं। तमाम फूलों, हरी-भरी घास, बोनशाई पेड़ों से भरपूर गार्डेन में वह रोज नहीं बैठ पातीं, क्योंकि व्यस्तता के कारण उनके पास समय नहीं होता। जो थोड़ा बहुत समय मिलता है, उसे वहअपने तीन बच्चों के साथ बिताती हैं । जो वास्तव में उनके नहीं Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 2 741 1.3k भाग -२ अम्मी ने यह पता चलते ही कोहराम खड़ा कर दिया। लेकिन तब वह पांच छोटे-छोटे बच्चों के साथ अब्बू की ज्यादतियों के सामने कमजोर पड़ गईं। अब्बू के झांसें में आकर वह अपना जमा-जमाया काम-धंधा पहले ही ...Read Moreचुकी थीं। उन्होंने अब्बू से सारे रिश्ते-नाते खत्म कर घर छोड़ने के लिए कहा। 'खुला' देने की भी धमकी दी। लेकिन अब्बू टस से मस ना हुए, जमे रहे मकान में। अम्मी, बच्चों को बस जीने भर का खाना-पीना देते थे। लाज ढकने भर को कपड़े। अम्मी के लिए अपने वालिद को खोने के बाद यह सबसे बड़ा सदमा था, Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 3 591 1.5k भाग -३ अम्मी के बहुत दबाव पर जब आगे बढे तो कुछ इस तरह कि, कई जगह रिश्ते बनते-बनते ऐसे टूटे कि अम्मी आपा खो बैठीं। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि, 'तुम जानबूझकर लड़कियों का निकाह नहीं होने देना ...Read Moreतुम इनकी कमाई हाथ से निकलने नहीं देना चाहते।' इस बात पर अब घर में खूब हंगामा होने लगा। कई महीने बड़े हंगामाखेज बीते। फिर अचानक ही एक जगह अम्मी के प्रयासों से दो बड़ी बहनों का निकाह एक ही घर में तय हो गया। एक ही दिन निकाह होना तय हुआ। अम्मी को परिवार बहुत भला लग रहा था। Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 4 522 1.1k भाग -४ देखते-देखते पूरा घर छान मारा गया। लेकिन दोनों अप्पी नहीं मिलीं। 'कहाँ गईं, जमीन निगल गई या आसमान ले उड़ा । या अल्लाह अब तू ही बता कहां हैं दोनों...।' अम्मी माथा पीटते हुए जमीन पर बैठ ...Read Moreअब्बू ने न आव देखा ना ताव हम दोनों ही बहनों को कई थप्पड़ रसीद करते हुए पूछा, ' तुम चारों एक ही कमरे में थीं, वो दोनों लापता हैं और तुम दोनों को खबर तक नहीं है। सच बताओ वरना खाल खींच डालूंगा तुम दोनों की।' हम दोनों ही छोटी बहनें मार खाती रहीं, लेकिन कुछ बोले नहीं, सिवाय Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 5 510 1k भाग - ५ 'जब आप इतना उतावले हो रहे हैं, तो बिना बताए कैसे रह सकती हूं। मैंने देखा कि बीवी तकिया लगाए सीधे लेटी थी। छत वाला पंखा पूरी स्पीड में चल रहा था। ना मियां के तन ...Read Moreएक कपड़ा था और ना बीवी के। छोटा बच्चा मां की छाती पर ही लेटा दूध पी रहा था। मियां की चुहुलबाजी चालू थी। वह दूसरी वाली छाती से बच्चा बन खेल रहा था। दोनों के हाथ भी एक दूसरे की शर्मगाहों में खेल रहे थे। जब बच्चा सो गया तो उसे दीवार की तरफ किनारे लिटा दिया। उसकेआगे देखने Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 6 441 948 भाग - ६ बेनज़ीर हल्की मुस्कान लिए बोलीं, ' और आप फिर से स्टेच्यू बन गए तो।' ' मैं पूरा प्रयास करूँगा कि ऐसा ना हो।' ' ठीक है। तो जब काम पीछे छूटने लगा तो कई ऑर्डर भी ...Read Moreसे फिसल गए। अम्मी की दवा का खर्च बढ़ता जा रहा था। मुझे लगा कि चिकन से ज्यादा दुकान पर ध्यान दूं तो अच्छा है। वैसे भी अम्मी से नहीं हो पा रहा है। मैं यही करने लगी, पर अम्मी दिल से यह कत्तई नहीं चाहती थीं। लेकिन हालात ने उन्हें अपने कदम पीछे करने के लिए मजबूर कर दिया। Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 7 (13) 417 885 भाग - ७ वही ज़ाहिदा-रियाज़, फिर अपने कपड़ों के साथ जंग । उतार-उतार कर उन्हें दीवारों पर रात भर के लिए दे मारना। फिर अपने ही तन बदन को देख-देख कर इतराना। और आखिर में मायूसी के दरिया में ...Read Moreकर खूब आंसू बहाना कि, हाय रे मेरा मुकद्दर। मेरे संग ऐसा क्यों कर रहा है? और जमीन पर ही पड़े-पड़े सो जाना रात भर के लिए। और चिकनकारी, वह भी मेरी तरह मायूस रात भर जमीन पर पड़ी रहती। सवेरा होता तो दीवारों से टकरा-टकरा कर जख्मी पड़े, अपने कपड़ों को फिर उठाती। रात के अपने गुनाहों के लिए Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 8 (11) 393 1.2k भाग - ८ उनकी तकलीफ देखकर मेरे मन में आया कि, आग लगा दूं टीवी को, जिसके कारण अम्मी को इतना दुख मिल रहा है। एकदम अफनाहट में मैंने झटके में बोल दिया कि, 'अम्मी किराएदार से बोलो कि, ...Read Moreज्यादा जगह इतने कम में ना मिल पायेगी । इसलिए किराया बढाओ और कुछ महीने का एक इकट्ठा पेशगी दो।' मेरी बात सुनते ही अम्मी खीजकर बोलीं, ' क्या बच्चों जैसी बातें करती हो। ऐसे नहीं होता है समझी।' मैंने, अम्मी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। किस्त की तारीख निकल गई। एजेंसी से कई Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 9 (12) 405 1k भाग - ९ इस बीच चिकनकारी और कम हो गई। खाना-पीना, अम्मी का काम, दुकान का भी कुछ ना कुछ देखना पड़ता था। इन सब से रात होते-होते इतना थक जाती थी कि, रात में उंगलियां जल्दी ही जवाब ...Read Moreलगतीं।' '.. और ज़ाहिदा-रियाज़, यह टाइम तो उनका भी होता था।' यह सुनते ही बेनज़ीर हंस पड़ीं । फिर गहरी सांस लेकर बोलीं, '....ज़ाहिदा-रियाज़ उफ... दोनों मेरे लिए एक अजीब तरह की बला बन गए थे। यह बला पहले मुझे खूब मजा देती, लेकिन जब छूटे हुए कामों की तरफ ध्यान जाता तो बड़ा कष्ट देती। समझ ही नहीं पा Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 10 423 924 भाग - १० पिछली बार की तरह दरवाजे की आड़ में नहीं गई, लेकिन अम्मी की आड़ में जरूर बैठी रही। अम्मी ने उसे शुक्रिया कहा तो मुन्ना ने कहा, 'अरे चाची इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है। ...Read Moreकी मेहनत का ही है सब। यह अपने काम में बहुत माहिर हैं । मुझे पता ही नहीं था। नहीं तो मैं पहले ही संपर्क करता। जो पैसे बाहर किसी को दे रहा था वह घर के घर में ही रहते।' 'बेटा क्या करें। समय के आगे हम कुछ नहीं कर पाते। जिस चीज का समय जब आता है, वह Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 11 351 807 भाग - ११ मैं घूमना चाहती थी। खूब देर तक घूमना चाहती थी। रास्ते भर कई बार मैंने बहुत लोगों की तरफ देखा कि, लोग मुझे देख तो नहीं रहे हैं। मैं दोनों हाथों में सामान लिए हुई थी। ...Read Moreआगे बढ़ती चली जा रही थी। मैं इतनी खुश थी कि कुछ कह नहीं सकती। खुशी के मारे ऐसा लग रहा था, जैसे कि मैं लहरा कर चल रही हूं। मन में कई बार आया कि, घर की कोठरी में कैद रहकर हम बहनों ने कितने बरस तबाह कर दिए। कम से कम ज़िंदगी के सबसे सुनहरे दिन तो हम Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 12 354 816 भाग - १२ ' जीवन, दुनिया की खूबसूरती देखने का आपका नजरिया क्या है?' 'अब नजरिया का क्या कहूं, मैं जल्द से जल्द सब कुछ बदलना, देखना, चाहती थी। तो मैं हर महीने कोई ना कोई ऐसा सामान लाने ...Read Moreजिससे घर में रौनक दिखे। रहन-सहन का स्तर कुछ ऊंचा हो। फ्रिज का ठंडा पानी पीने को हम पूरा परिवार तरस गए थे। लेकिन अब्बू उसे भी न जाने किस पागल, जाहिल के कहने पर मुसलमानों के लिए हराम मानते रहे। जबकि मुहल्ले के सारे मुसलमान परिवारों के यहां यह सब ना जाने कब का आ चुका था। अम्मी ने Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 13 348 780 भाग - १३ उस रात को मैंने अम्मी से खाना खाने के बाद बातचीत की। उन्हें विस्तार से सारी बातें समझाईं। मेरी बातों को सुनकर अम्मी एकदम से चिंता में पड़ गईं। लेकिन मेरे काम को देख कर उन्हें ...Read Moreपर अटूट भरोसा भी हो चुका था। आखिर बड़ी मान-मनौवल के बाद मानीं। लेकिन अगले ही पल फिर समस्या खड़ी कर दी कि किसके साथ जाओगी, उसके पहले मैंने नहीं बताया था कि मैं मुन्ना के साथ ही आऊँगी-जाऊँगी। पूछने पर मैंने स्पष्ट बता दिया कि, 'और कौन है जिसके साथ में आ-जा सकती हूं। शहर के बाहर कभी अकेले Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 14 348 1k भाग - १४ मैंने तुरंत बात का रुख बदलते हुए देर होने की बात छेड़ दी, उन्हें बात समझाने के लिए मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। उससे कहीं ज्यादा मशक्कत तो वहां पर जो भी काम-धंधा था उसे समझाने ...Read Moreकरनी पड़ी। लेकिन इसके बाद उन्होंने फिर बाकी जितने दिन वहां पर जाना हुआ, जाने दिया। कभी मना नहीं किया। जबकि पूरी तरह कार्यक्रम शुरू हो जाने के बाद रोज घर पहुंचते-पहुंचते रात ग्यारह बज जाते थे, क्योंकि देर शाम को कार्यक्रम खत्म होता था। फिर सब कुछ बंद करवाने, अगले दिन के लिए भी कुछ तैयारियां करवाने में मुन्ना Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 15 327 774 भाग - १५ उनकी यह बात सुनकर सोचा कि, अम्मी तुम और जो हुआ वह जानकर ना जाने क्या कहोगी । मगर मुझे खुद पर कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि मैं पक्के तौर पर कहती हूं कि मैंने कुछ ...Read Moreनाज़ायज़ नहीं किया। उस समय मेरे मन में चाहे जितनी उथल-पुथल थी, लेकिन पुरस्कार की खुशी उस पर भारी थी। तो मैंने सबसे पहले ग्यारह हज़ार रुपये और ट्रॉफी उनके हाथ में देते हुए कहा, 'अम्मी, मुझे वहां बहुत सारे लोगों के बीच यह पुरस्कार दिया गया। इसकी असली हकदार तुम्हीं हो। तुमनेअपना हुनर ना सिखाया होता तो मुझ अनपढ़ Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 16 348 768 भाग - १६ काशी जाने की तैयारी में मुन्ना जो-जो बताते जा रहे थे, मैं वो-वो करती जा रही थी। मेरे सामानों की ऑनलाइन सेल भी बढ़ती जा रही थी। एक दिन मैं अपने कमरे में काम कर रही ...Read Moreसाथ ही मोबाइल पर एक यूट्यूब चैनल भी देख रही थी। वह किसी विदेशी औरत का चैनल था। उसमें वह महिलाओं के जो कपड़े खुद डिज़ाईन करती, सिलती थी, उन्हें पहन कर दिखाती भी थी कि शरीर पर कैसा फबता है। उसके चैनल को देखने वालों की संख्या लाखों में थी। उसको देखकर मेरे मन में आया कि अपने कपड़ों Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 17 387 891 भाग - १७ मेरी इस लापरवाही को अम्मी निश्चित ही मेरी बदतमीजी ही समझ रही होंगी। सीधे-सीधे यही कह रही होंगी कि, 'बेंज़ी अब पहले वाली बेंज़ी नहीं रही। कैसा सब अपनी मनमर्जी का किये जा रही है। चौदह-पन्द्रह ...Read Moreके लिए इतनी दूर जाने के लिए जोर लगा रही है। लेकिन एक बार भी नहीं कहा अम्मी तू खायेगी- पियेगी कैसे? कौन देखभाल करेगा?' यह सब सोचकर मैं अपनी जान बड़ी सांसत में पा रही थी। लेकिन जाने की जिद ऐसी थी कि मैं मसले का हल निकालने के लिए तड़पने लगी। ऐसे जैसे कि, पानी से कोई मछली Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 18 (11) 360 969 भाग - १८ मुश्किल से दो घंटा हुआ होगा कि मुझे लगा जैसे मेरे घुटनों के पास कुछ है। मैं उठने को हुई तभी मुन्ना धीरे से बोले, 'कुछ नहीं, मैं हूं।' मैं शांत हो गई। मैं डरी कि, ...Read Moreकी बर्थ पर कई लोग सो रहे हैं। कोई जाग गया तो कितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। कंबल थोड़ा हटाकर नीचे देखा तो राहत की सांस ली, नीचे कोई नहीं था। मुन्ना के हाथ हरकत कर रहे थे। मेरा हाथ भी उसके हाथों के ऊपर पहुंच गया था। देर नहीं लगी उनके हाथ ऊपर और ऊपर तक आए तो मैं भी Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 19 306 768 भाग - १९ बेनज़ीर की बात से मैंने खुद को बड़ा छोटा महसूस किया। वह अपनी बात को आगे बढ़ाती हुई कहती हैं, 'जिस दुकान के सामने उसने रिक्शा रोका, वह एक ठीक-ठाक दुकान लग रही थी। अंदर एक ...Read Moreपन्द्रह-सोलह लोगों के बैठने की जगह थी। मुन्ना ने उसे भी अंदर चलने के लिए कहा तो वह हाथ जोड़कर बोला, 'बाबू जी, मीठा हमरे लिए जहर है। हमें सूगर है।' बहुत कहने पर वह समोसा खाने को तैयार हुआ। दो समोसा, बिना शक्कर की चाय लेकर बाहर रिक्शे पर ही बैठकर खाने लगा। मैंने और मुन्ना ने लवंगलता खाई Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 20 393 813 भाग - २० पंडाल काफी बड़ा था। भीड़ भी काफी थी। हमें निकलने में छः सात मिनट लग-गए। पंडाल के अन्दर मैं अचानक ही बहुत घुटन महसूस करने लगी थी तो मुन्ना के कहते ही मैं ऐसे बाहर आई, ...Read Moreबेसब्री से इसी का इंतजार कर रही थी कि, मुन्ना कहें और हम चलें। बाहर आकर मैंने इस तरह गहरी सांस ली, मानो बहुत देर से रोके हुए थी। मैंने तुरन्त कहा, 'यहां पूरे समय बैठे रहने से अच्छा है कि बड़ी तेज़ी से अपना रंग-रूप बदल रहे शहर को देखा जाए। अपने काम की मार्केट तलाशी जाए।' मुन्ना ने Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 21 330 837 भाग - २१ एक मुराव परिवार वहां रहता है। भला परिवार है। हमारे यहां भी आता-जाता है। उनके तीन लड़का हैं। सब सब्जी बेचने के काम में लगे रहे। करीब चार-पांच बरस पहले एक लड़का ऑटो-रिक्शा चलाने लगा । ...Read Moreचलाते हुए छः सात महीना ही बीता होगा कि एक दिन एक कोरियन लड़की टूरिस्ट उसे मिली। दिन भर के लिए उसे बुक कर लिया। दिन भर घूमी-फिरी। शाम को पैसा देते समय थोड़ा चख-चख की लेकिन साथ ही अगले दिन के लिए भी बुक कर लिया। उसका नंबर ले लिया। अगले दिन भी वह पूरे दिन शहर घूमी, शहर Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 22 348 771 भाग - २२ ....तो हम दोनों गए तो थे कार्यक्रम में भाग लेने, लेकिन पहुँच गए लल्लापुरा। हमने बनारसी साड़ी, उसके व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी की। यह सब करने में हमें तीन घंटे लग गए। इस बीच ...Read Moreहमारे साथ एक रिक्शेवाला, गाइड से ज्यादा दोस्त बन कर रहा। मैं और मुन्ना वहां का व्यवसाय, कारीगरी देखकर दंग रह गए। वहां से जब निकले तो मैंने कहा, 'यहाँ तो इतना कुछ है कि मेरा तो सिर ही घूम गया है। कैसे क्या करा जाएगा, क्या-क्या करा जाएगा ?' मुन्ना ने कहा, 'परेशान ना हो सब हो जाएगा। तुम्हें Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 23 378 720 भाग - २३ बात पूरी कर बेनज़ीर मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगीं। मैं बिलकुल शांत सोचने लगा कि, कुछ भी रिपीट कराने का तो कोई चांस छोड़ा ही नहीं। सच कहूं तो मैंने उनसे बात करने से पहले ...Read Moreसोचा ही नहीं था कि, वह अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में इतनी सहजता से खुल कर ए-टू-जेड वर्णन करेंगी। हिन्दी बेल्ट के किसी व्यक्ति, वह भी किसी महिला से तो यह उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती। लेकिन वह लगातार किये जा रही थीं। इसलिए मुझे तारीफ करने में भी संकोच नहीं हो रहा था। मैंने, 'कहा, 'मार्वलस! आप Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 24 315 759 भाग - २४ खाना खाने के बाद हाथ-मुंह धोकर बाहर आते हुए मुन्ना ने कहा, 'कॉन्फिडेंस बढ़ाने का रास्ता मिल गया है।' मैंने कहा, 'खाना खाते ही मिल गया।' हाँ, मैं कह रहा था ना कि, भूखे पेट भजन ...Read Moreनहीं होता।' 'कौन सा रास्ता है, बताओ।' डिस्पोजेबल बर्तन बटोरते हुए मैंने कहा। 'अरे मिस मॉडल जी, मुंह पर लगा खाना तो साफ करके आओ, जल्दी क्या है। अभी पूरी रात बाकी है।' अपनी बात मुन्ना ने बड़ी अर्थ भरी नजरों से मुझे देखते हुए कहा और हल्के से आंख मार दी। उसका आशय समझने में मुझे देर नहीं । Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 25 282 684 भाग - २५ 'लेकिन! जब निश्चिंत हो गई हो तो फिर मन में लेकिन क्यों बना हुआ है?' 'नहीं मेरा मतलब है कि तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को मान लेंगे, अगर ना माने तो, तब क्या होगा, तब ...Read Moreकहीं पीछे तो नहीं हट जाओगे ?' 'देखो मैंने घर वालों से पूछकर तुम्हें नहीं अपनाया, ठीक है। मैंने अपनी मर्जी से तुम्हें अपनाया। इसलिए अब किंतु-परंतु का कोई मतलब नहीं है। हमारे रिश्ते को मानेंगे तो ठीक है, नहीं तो अलग रहेंगे। अपनी दुनिया अलग बसायेंगे। इतनी सीधी सी, सामान्य सी बात को तुम अपनी परेशानी का कारण क्यों Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 26 327 663 भाग - २६ मेरी बात पूरी होने से पहले ही मुन्ना ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और कहा, ' क्या मूर्खों जैसी बात कर रही हो, जान देने से बढ़ कर ना कोई कायरता है, ना मूर्खता। ...Read Moreहर हाल में, हर परिस्थितियों के पार जाकर जरूर जीतने की कोशिश करनी चाहिए। हर हाल में जीतना ही चाहिए। जीतने के अलावा और कुछ सीखना ही नहीं चाहिए। दिमाग में हारने की बात लानी ही नहीं चाहिए।' 'तुम सब ठीक कह रहे हो लेकिन।' 'लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, दोबारा बोलना तो क्या अपने मन में यह बात सोचना भी नहीं। Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 27 303 741 भाग - २७ उन्होंने स्थिति साफ करते हुए कहा, 'देखो तुम अभी मॉडलिंग की दुनिया की, भीतर की दुनिया जानती नहीं। जब जान जाओगी तो मुझे पूरा यकीन है कि उल्टे पांव भाग खड़ी होगी । तब कहीं तुम ...Read Moreका शिकार ना हो जाओ। खुद मैं भी बहुत ज्यादा नहीं जानता कि मॉडलिंग की दुनिया में क्या-क्या है। मगर जितना जानता हूं उससे तो परिचित करा ही सकता हूं। उतनी ही बातें काफी होंगी कि, तुम यह तय कर सको कि, तुम्हें क्या करना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'देखो उस दिन तुमने जो मॉडलिंग की, उस हिसाब से तुम मॉडलिंग Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 28 (12) 249 675 भाग - २८ मैं सबेरे चाय-नाश्ता लेकर पहुंची, तो देखा कि रोज जल्दी उठने वाली अम्मी लेटी हुई हैं और कराह रही हैं। पूछा तो बड़ी मुश्किल से इतना ही बता सकीं कि, छाती में बड़ा दर्द हो रहा ...Read Moreमैंने जल्दी से उन्हें दवा खिलाई, लेकिन वह उसके बाद पानी भी पी नहीं सकीं, बेहोश हो गईं। मैं घबरा उठी कि क्या करें। हर बार की तरह इस बार भी मुन्ना, उनके परिवार को याद किया। सब ने हमेशा की तरह मदद की। हॉस्पिटल में एडमिट करवाने के बाद मुन्ना ने कहा, ' इन्हें सीवियर हार्टअटैक पड़ा है। हालत Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 29 255 660 भाग - २९ ' मैं जानती हूँ कि, तुम मेरा ख्वाब पूरा कराने में मेरा साथ जरूर दोगे । एक तुम ही हो जो अब मेरे जीवन में मेरे ख्वाबों को सजाओगे-संवारोगे। सुनो इसी से जुड़ी एक और बात ...Read Moreचाहती हूं।' 'क्या, बताओ।' 'देखो तुम काशी में कह रहे थे कि, अपने काम-धाम के हिसाब से लखनऊ से ज्यादा मुफीद काशी है।' ' हाँ, कहा था।' 'तो मैंने यह तय किया है कि, अब हम यहां से काशी ही जाकर बसेंगे। वहीं नए सिरे से अपना काम-धाम शुरू करेंगे, वहीं शादी करके...।' मैं इतना कहकर चुप हो गई। बात Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 30 234 546 भाग - ३० जब रात एक बजे हम निकले तो पूरे मोहल्ले में सन्नाटा था। निकलने से पहले मैं ज़ाहिदा-रियाज़ को देखना नहीं भूली। अब उस दरवाजे के पास वह बड़ा बक्सा नहीं था, जिस पर बैठकर मैं उनके ...Read Moreमें, उनको झांका-देखा करती थी। आखिरी बार खड़े-खड़े ही देख रही थी। हमेशा की तरह लाइट जल रही थी। बेटा सुरक्षित दिवार की तरफ सो रहा था। वह दोनों भी बहुत ज्यादा रोशनी की ही तरह बहुत ज्यादा बेपरवाह थे। ज़ाहिदा लेटी थी। रियाज़ अधलेटा था उसी के बगल में। चेहरे से चेहरा मिलाकर दोनों कुछ बातें कर रहे थे। Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 31 222 702 भाग - ३१ मकान मालिक भी बहुत खिसियाए हुए से बोले, 'मैंने सोचा कि, आप लोग लंबा सफर करके आए हैं। उपद्द्रव में अलग परेशान हुए हैं। थके हुए होंगे, कुछ चाय-नाश्ता लेता चलूं।' यह कहते हुए उन्होंने ट्रे ...Read Moreटेबिल पर रख दी, जो हमसे कुछ ही दूरी पर रखी हुई थी। फिर बहुत ही विनम्रता से बोले, ' आप लोग चाय-नाश्ता करके आराम करिए, फिर बातें होंगी।' जाते-जाते मुन्ना को देखते हुए बोले, 'मुझे क्षमा करिए, मुझे आवाज देकर आना चाहिए था।' 'अरे भाई साहब इसमें क्षमा की कोई बात नहीं, हो जाता है ऐसा। आपने हमारा इतना Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 32 192 555 भाग - ३२ मुन्ना की बात सुनकर मैंने सिर ऊपर किया। आंखों में भरे आंसुओं को पोंछती हुई बोली, 'लेकिन उन्होंने जिस श्रृंगार की बात की है, वह तो शादी के बाद ही करते हैं। और हमने तो अभी ...Read Moreकी ही नहीं है। कोई रस्म पूरी ही नहीं की है। बस अपनी रजामंदी से साथ हैं।' 'मेरे दिमाग में यह सारी बातें उसी समय थीं, जब लखनऊ से यहां आने की बात तय हुई। यहां आने के बाद अगला कदम शादी करके उसे रजिस्टर कराने के बारे में मैं पहले ही सोचे हुए हूँ। जिससे कानूनी तौर से भी Read बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 33 - अंतिम भाग (12) 231 996 भाग - ३३ मेरेअब कई-कई घंटे, कई-कई दिन, ऐसे ही दीवार के उस पार ज़ाहिदा के परिवार को सोचते-सोचते गुजरते जा रहे थे। मुन्ना भी अक्सर ऐसी रातों के इस गहन सन्नाटे में मेरे साथ होते। एक दिन उन्होंने ...Read Moreकि, यह घर तो अब बड़ा, बहुत ही बड़ा होता जा रहा है। पता नहीं अभी और कितना बड़ा होता जाएगा।' उनकी इस बात में छिपे, उनके दर्द ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैं अपने को रोक नहीं सकी, कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, 'सुनो, अब यह घर और बड़ा नहीं होने दूँगी। जो सोचकर, जिस सपने Read More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Novel Episodes Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Humour stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Social Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything Pradeep Shrivastava Follow