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Vish Kanya by Bhumika | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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विष कन्या by Bhumika in Hindi
Novels

विष कन्या - Novels

by Bhumika Matrubharti Verified in Hindi Novel Episodes

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  • 7.6k

  • 19.6k

  • 16

महाराज अगर आप ऐसे खाना पीना छोड़कर विशादमे ही डूबे रहेंगे तो कैसे चलेगा। में आपकी हालत समज रहा हूं पर आपका सर्व प्रथम दाइत्व आपके राज्य के प्रति और आपकी प्रजाके प्रति है, इस लिए शास्त्रों में कहा ...Read Moreहै कि एक राजाका विलाप या शोक में डूब जाना अनुचित हे। क्यों की प्रजा केलिए राजा उनके पिता, पालनहार, और भगवान के समान होता है। अतः आपका इस तरह विशाद मे डूब कर अपने रज्यके प्रति कर्तव्यों से विमुख हो जाना आप जैसे प्रजा वत्सल रजाको शोभा नहीं देता। राजगुरु ने शांति से अपनी बात को समझाने का प्रयास किया।

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विष कन्या - 1

(55)
  • 1.7k

  • 3.4k

महाराज अगर आप ऐसे खाना पीना छोड़कर विशादमे ही डूबे रहेंगे तो कैसे चलेगा। में आपकी हालत समज रहा हूं पर आपका सर्व प्रथम दाइत्व आपके राज्य के प्रति और आपकी प्रजाके प्रति है, इस लिए शास्त्रों में कहा ...Read Moreहै कि एक राजाका विलाप या शोक में डूब जाना अनुचित हे। क्यों की प्रजा केलिए राजा उनके पिता, पालनहार, और भगवान के समान होता है। अतः आपका इस तरह विशाद मे डूब कर अपने रज्यके प्रति कर्तव्यों से विमुख हो जाना आप जैसे प्रजा वत्सल रजाको शोभा नहीं देता। राजगुरु ने शांति से अपनी बात को

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विष कन्या - 2

(42)
  • 990

  • 2.2k

आगे हमने पढ़ा कि महाराज राजकुमारी वृषालि की बिमारिसे व्यथित है और राजगुरु उनको समजा रहे है। तभी बाहर से दरबान आके केहेता है कि बाहर कोई आया है जो अंदर आनेकी अनुमति मांग रहा है और कहे रहा ...Read Moreकि में तुम्हारी राजकुमारी को ठीक कर सकता हूं। महाराज उसे अंदर आने को कहते है और उसे देखकर उसका परिचय पूछते है अब आगे........ युवान ने हााथ जोड़कर महाराज और राजगुरु को कहा महादेव । राजगुरु और महाराज नेभी हाथ जोड़कर महादेव हर कहा। अपना परिचय दीजिए और यहां आने का तात्पर्य बताइए राजगुरु

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विष कन्या - 3

(42)
  • 789

  • 1.9k

आगे हमने देखाकि आने वाला युवान अपनी पहेचान बताते हुए कहता है कि में महान वेदाभ्याशी वेदर्थी का पुत्र मृत्युंजय हूं ओर इस बात को प्रमाण देते हुए एक अंगूठी राजगुरु सौमित्र के हाथ में देता है। फिर महाराज ...Read Moreसे वेदर्थी के बारे में पूछते है तो राजगुरु बताते हे की वो गुरुकुल मे साथ थे ओर परम मित्र थे , ओर फिर कैसे वो सोनगढ़ के प्रधान आचार्य बने ओर उनके साथ षडयंत्र करके उन्हे राज द्रोही प्रमाणित कर दिया गया अब आगे....... राजगुरु इतने व्यथित हो गए है कि अब वों आगे

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विष कन्या - 4

(37)
  • 726

  • 1.9k

आगे हमने देखाकि, मृत्युंजय बताता है की कैसे वेदर्थी उनके कुछ शिष्यों की मदद से निर्दोष पुरवार हुए ओर उन पर से लगा देशद्रोह का कलंक मिट गया। फिर अपनी पत्नी के मृत्यु के समाचार से वे व्यथित हो ...Read Moreओर सारे राजशी पद ओर गुरुकुल के प्रधान आचार्य का पद त्याग के मृत्युंजय को लेकर हिमालय की पहाड़ियों में जाकर बस गए। अब आगे........ राजगुरु का प्रश्न सुनते ही मृत्युंजय शांत हो गया। फिर कुछ क्षणके बाद बोला अगर वो आपको याद नहीं करते होते तो मे आपको इतनी जल्दी कैसे पहचान लेता। एसा

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विष कन्या - 5

(39)
  • 630

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आगे हमने देखा कि, मृत्युंजय राजगुरु सौमित्र के मनमे उठे अपने मित्रके प्रति हर प्रश्न का समाधान करता है। ओर राजगुरु उसको गले लगाकर इस बात की खुशी व्यक्त करते है की अब उन्हे विश्वास है कि राज कुमारी ...Read Moreठीक हो जाएगी। लेकिन राजकुमारी का उपचार शुरू करने से पहले मृत्युंजय बताता है कि उसकी कुछ शर्ते है। अब आगे....... मृत्युंजय की शर्तो वाली बात सुनकर महाराज ओर राजगुरु दोनों को आश्चर्य होता है। शर्तें? क्या शर्तें है मृत्युंजय आपकी कृपया बताए। मेरी बेटी को आपके उपचार की बहुत आवश्यकता

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विष कन्या - 6

(38)
  • 531

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आगे हमने देखा कि मृत्युंजय अपनी कुछ शर्ते रखता है राजकुमारी के उपचार करने से पहले। महाराज और राजगुरु दोनों उसे मान्य रखते है। मृत्युंजय राजकुमारी को देखने की इच्छा प्रगट करता है। अब आगे...... राजगुरु सबसे ...Read Moreचले पीछे महाराज के साथ मृत्युंजय और भुजंगा। महाराज को इतनी देर रात को ऐसे अपने कक्ष से बाहर आता देख सब सिपाई, दरबान विचार में पड़ गए। राजकुमारी के कक्ष में प्रवेश करते ही सब दासियां प्रणाम करके बाहर निकेल गई। कक्ष में एक छोटा सा दिया जल रहाथा। बस ना के बराबर धुंधली

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विष कन्या - 7

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  • 480

  • 1.5k

आगे हमने देखा कि महाराज और राजगुरु मृत्युंजय का परिचय राजवैद सुमंत से करवाते है। और राजवैध मृत्युंजय का परिचय अपनी सहायक और कनकपुर के राजवैध की पुत्री लावण्या से करवाते है। अब आगे......... मृत्युंजय के प्रश्न ...Read Moreराजवैद्य जी जरा मुस्कुराए। वहीं लावण्या गुस्से से लाल पीली हो गई। वो कतराकर मृत्युंजय की और देखने लगी। उसने अपने हाथ की मुठ्ठी इतनी जोर से भींस ली के उसमे जो औसधी थी वो पीस गई। कक्ष में अगर राजगुरु, और महाराज ना होते तो वो जरूर मृत्युंजय को पलटवार करती पर वो मर्यादा में

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विष कन्या - 8

(37)
  • 498

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आगे हमने देखा कि राजवैद्य सुमंत मृत्युंजय को अपनी उपचार पद्धति के विषय में बताते हे ओर मृत्युंजय अपनी पद्धति के विषय में। फिर सब जब वहां से चले जाते है तो मृत्युंजय लावण्या से थोड़ा व्यंग करता है ...Read Moreलावण्या क्रोधित होकर उत्तर देने जा रही है तभी उसकी नज़र कक्ष के द्वार पर पड़ती है और उसे आश्चर्य होता है। अब आगे...... मृत्युंजय के व्यंगात्मक शब्दों से लावण्या ज्यादा क्रोधित हो जाती है और वो उसका प्रत्युत्तर देने जा रही है तभी उसे कक्ष के द्वार पर भुजंगा और कुछ सेवक दिखाई

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विष कन्या - 9

(36)
  • 421

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आगे हमने देखा कि मृत्युंजय लावण्या से व्यंग करता है और लावण्या क्रोधित होकर वहां सेचली जाती है। वहीं महाराज को आशंका है की मृत्युंजय ने जिस उपचार पद्धतियों का वर्णन किया एसा होता है और क्या को लाभदाई ...Read Moreराजकुमारी केलिए। राजगुरु उनको विस्तार से समझाते है। तभी एक अनुचर आता है और समाचार सुनता है कि कुमारी चारूलता का कहीं पता नहीं चला अब आगे............ महाराज आप अपने साथ कुछ सैनिक लेकर जाइए। आप का इस तरह अकेले जाना उचित नहीं है। मैं आपकी बात से सहमत हूं राजगुरु किन्तु आज एक

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विष कन्या - 10

(36)
  • 327

  • 1k

आगे हमने देखा की, महाराज इंद्र्वर्मा अपने मित्र और प्रधान सेनापति वज्रबाहु से मिलने उनके भवन जाते है। महाराज प्रधान सेनापति को अपने पदभार को फिर से संभालने केलिए कहते है। राजमहल की वाटिका मे राजगुरु को देख मृत्युंजय ...Read Moreसमीप जाकर राजकुमारी के बारे में प्रश्न करता है अब आगे...... राजगुरु आम्र के वृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर बैठे है। मृत्युंजय उनके चरणों के समीप बैठा है। राजगुरु मृत्युजंय की ओर देखते हुए बोले, राजकुमारी वृषाली बहुत ही गुणवान, शुसिल और समजदार कन्या है। राजकुमारी अपने पिता से सर्वाधिक स्नेह करती है।

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विष कन्या - 11

(34)
  • 285

  • 918

आगे हमने देखा की, महाराज इंद्ववर्मा से राजगुरु प्रधान सेनापति की कुशलता के विषय में पूछते है तभी वहां उप सेनापति तेजपाल आते है। महाराज उन्हे कुमारी चारूलता को खोजने का कार्य सौंपते है। भुजंगा और मृत्युंजय चांदनी रात्रि ...Read Moreअपने कक्ष के जरुखे में खड़े बात कर रहे हैं तभी मृत्युंजय की नजर आकाश में उड़ते बाज पक्षी पर पड़ती है और वो चौंक जाता है। अब आगे........ मृत्युंजय वो बाज पक्षी है सर्पका शिकार करे उसमे इतना आश्चर्य कैसा। ऐसी बात अगर यहां नगरमे रहनेवाला कोई व्यक्ति करता तो समझ में आता किंतु

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विष कन्या - 12

(29)
  • 189

  • 531

आगे हमने देखा की मृत्युंजय और भुजंगा आपस में बात कर रहे हे। मृत्युंजय भुजंगा को सारिका के नाम से छेड रहा है। प्रातः लावण्या और सारिका जब राजकुमारी वृषाली के कक्ष में पहुंचते है तो देखते है की, ...Read Moreकक्ष में धूप की दिव्य सुवास प्रसरी हुई है और उसमे मृत्युंजय की धुंधली छवि हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में शिवजी हो ऐसा प्रतीत होती हे। अब आगे..... अचानक सारिका की आवाज लावण्या के कानो में पड़ी और वो चौंक गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने जादू करके कुछ क्षण केलिए उसकी दृष्टि को

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