Cholbe Na book and story is written by Rajeev Upadhyay in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Cholbe Na is also popular in Comedy stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
चोलबे ना - Novels
by Rajeev Upadhyay
in
Hindi Comedy stories
चच्चा खीस से एकमुस्त लाल-पीला हो भुनभुनाए जा रहे थे मगर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। मतलब एकदम चुप्प! बहुत देर तक उनका भ्रमर गान सुनने के बाद जब मेरे अन्दर का कीड़ा कुलबुलाने लगा। अन्त में वो अदभुत परन्तु सुदर्शन कीड़ा थककर बाहर निकल ही पड़ा। कुलबुलाहट का रोग ही ऐसा है। बिना निकले रहा नहीं जाता।
‘चच्चा! कुछ बोलोगे भी कि बस गाते ही रहोगे? मेरे कान में शहनाई बजने लगी है; पकड़कर शादी करा दूँगा आपकी अब!’
चच्चा खीस से एकमुस्त लाल-पीला हो भुनभुनाए जा रहे थे मगर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। मतलब एकदम चुप्प! बहुत देर तक उनका भ्रमर गान सुनने के बाद जब मेरे अन्दर का कीड़ा कुलबुलाने लगा। अन्त में वो ...Read Moreपरन्तु सुदर्शन कीड़ा थककर बाहर निकल ही पड़ा। कुलबुलाहट का रोग ही ऐसा है। बिना निकले रहा नहीं जाता। ‘चच्चा! कुछ बोलोगे भी कि बस गाते ही रहोगे? मेरे कान में शहनाई बजने लगी है; पकड़कर शादी करा दूँगा आपकी अब!’ चच्चा हैरान होकर मेरी तरफ देखने लगे। जब मैंने एक बुद्धिजीवी की तरह प्रश्नात्मक मुद्रा में उनकी ओर देखा
मैं सुबह-सुबह ‘रमता जोगी, बहता पानी’ की तरह बहता ही जा रहा था। एकदम बरसाती नदी की तरह! कि ना जाने कहाँ से चच्चा अचानक ही मेरे सामने प्रकट हो गए। एकदम ही रामायण और महाभारत में दिखाए गए ...Read Moreकरने वाले किरदारों की तरह! मैं भी हैरान होकर शक्तिमान की तरह गोल-गोल घूमने के बाद उनकी ओर आँखे फाड़कर देखने लगा परन्तु जैसे ही उनकी किलविश के जैसी फटी-फटी आँखों को देखा तो मैं गिलहरी की तरह अपने डर को कुतरते हुए बोला, ‘क्या बात है चच्चा? आज कुछ ज्यादे ही नाराज लग रहे हो! देश में कहीं कुछ
टीवी खोला ही था कि एक धमाका हुआ। एक जबरदस्त धमाका। धमाका देखकर मेरे बालमन का मयूर नाच ही उठा। जवानी के बालमन का मयूर होता ही ऐसा है। जब तक उटपटांग घटनाओं पर नाचे उसे संतोष ही नहीं ...Read Moreहै। विघ्नसंतोषी सा जो होता है। वैसे मयूर भी कई प्रकार के होते हैं। एक बालमन का, एक युवामन का, तो एक अधेड़मन का। ये चर्चित मयूर हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है कि वृद्धमन का नहीं होता है परन्तु बहुत ही कम वृद्धों का मयूर नृत्य करता है। खैर! बालमन का मयूर था तो नर्तक का नौसिखिया होना तो लाजमी
कल अचानक ही रवीश भाई से मिलना हो गया। कौन? अरे भाई! वही अपने रवीश भाई जी! कमाल है अभी भी आप नहीं समझे! अरें भई रवीश कुमार के बारे बात कर रहा हूँ। अब तो आप ...Read Moreगए न! हाँ तो फिर ठीक है। तो हुआ ये कि कल रवीश भाई से मिलना हुआ। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उनसे मिल रहा था। एकदम्मे भक्क मार दिया था मुझे। उनको देखकर मुँह खुला का खुला रह गया था। फिर खुद को यकीन दिलाने के लिए हाथ पाँव मारा तो पता चला कि मैं उनसे
सुबह सुबह की बात है (कहने का मन तो था कि कहूँ कि बहुत पहले की बात है मतलब बहुत पहले की परन्तु सच ये है कि आज शाम की ही बात है)। मैं अपनी रौ में सीटी बजाता ...Read Moreरहा था। टहल क्या रहा था बल्कि पिताजी से नजर बचाकर समय घोंटते हुए मटरगश्ती कर रहा था (इसका चना-मटर से कोई संबंध नहीं है परन्तु आप भाषाई एवं साहित्यिक स्तर पर कल्पना करने को स्वतंत्र हैं। शायद कोई अलंकार या रस ही हो जिससे मैं परिचित ना होऊँ और अनजाने में मेरे सबसे बड़े साहित्यिक योगदान को मान्यता मिलते-मिलते