Radharaman vaidya-adhunik bhartiy shikaha ki chunautiyan book and story is written by राजनारायण बोहरे in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Radharaman vaidya-adhunik bhartiy shikaha ki chunautiyan is also popular in Human Science in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
राधारमण वैद्य-आधुनिक भारतीय शिक्षा की चुनौतियाँ - Novels
by राजनारायण बोहरे
in
Hindi Human Science
जहाँ तक शिक्षा में आमूल परिवर्तन की बात है, वह बहुत कठिन कार्य है, क्योंकि इसमें पर्याप्त श्रम, समय, धन और अन्वेषणों की आवश्यकता है। पहले शिक्षक बदले, तब शिक्षा बदले। एकाएक आमूल परिवर्तन सम्भव नहीं। केवल शिक्षा प्रणाली की पुनर्रचना करना ही लाभदायक नहीं। आधुनिक भारतीय शिक्षा के लक्ष्यों, उद्देश्यों और आदर्शो में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है।
शिक्षा में पुनर्ररचना करना तभी ठीक होगा, जब समाज अभिभावक विद्यालय प्रबंधकों, अध्यापकों, छात्र-छात्राओं और सरकार के दृष्टिकोणों में अनुरूप परिवर्तन कर लिया जाय। आज जनतांत्रिक लोक-कल्याण के सिद्धान्तों को दृष्टि में रखना आवश्यक है, जिनके आधार पर भारतीय संस्कृति, भारतीय आदर्श के साथ-साथ सामयिक आवश्यकताओं, वैज्ञानिक तथा भौतिक प्रगति में सामंजस्य उत्पन्न करना भी पुनर्रचना की आवश्यकता है।
आधुनिक भारतीय शिक्षा की चुनौतियाँ जहाँ तक शिक्षा में आमूल परिवर्तन की बात है, वह बहुत कठिन कार्य है, क्योंकि इसमें पर्याप्त श्रम, समय, धन ...Read Moreअन्वेषणों की आवश्यकता है। पहले शिक्षक बदले, तब शिक्षा बदले। एकाएक आमूल परिवर्तन सम्भव नहीं। केवल शिक्षा प्रणाली की पुनर्रचना करना ही लाभदायक नहीं। आधुनिक भारतीय शिक्षा के लक्ष्यों, उद्देश्यों और आदर्शो में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है। शिक्षा में पुनर्ररचना करना तभी ठीक होगा, जब समाज अभिभावक विद्यालय प्रबंधकों, अध्यापकों, छात्र-छात्राओं और सरकार के दृष्टिकोणों में अनुरूप परिवर्तन कर लिया जाय। आज जनतांत्रिक लोक-कल्याण के सिद्धान्तों को दृष्टि में रखना
भूमण्डलीकरण का संदर्भ और शिक्षा सामाजिक विकास के लिए शिक्षा का महत्व जग जाहिर है। समाज में बेहतर बदलाव तब आता है, जब जन (सामान्यजन) ...Read Moreचीन्हनें लगे। उत्पीड़ितजन अंधेरों में धंधकने वाली ताकतों को पहचानने लगे। ’तमसो मां ज्योतिर्गमय’’ प्रकाश पुंज, यानी बेहतर समाज, क्योंकि जब हम चीजों को समझने लगते हैं, तब उन्हें बेहतर बनाने की कल्पना शुरू की जाती है। समझने के लिए सीखना पड़ता है और सीखने के लिए पढ़ना पडता है। परम्परागत रूप से विद्यालय पूर्व शिक्षा को छोड़ दे, तो हम लगभग हर शिक्षा-व्यवस्था में तीन स्तरीय ढांचा पाते है- (अ)
हम क्या करें ? -श्री राधारमण बैद्य आज निहित स्वार्थो से प्रेरित राष्ट्रीयता और आत्म ...Read Moreउभारा जा रहा है, संस्कृति की दुहाई दी जा रही है या बाह्य सज्जा और लुभावने रूप के आधार पर शिक्षा की दुकानें चल रही हैं। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने-पढ़ाने का ऐसा उन्मादआया है कि अपनी सामथ्र्य और अपनी परिस्थिति का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं अपने वैभव प्रदर्शन के लिए गर्व से इन संस्थाओं में अपने बालकों के पढ़ने की चर्चा करते हैं। कुछ नासमझ ’’देखा-देख पड़ौसिन की’’ अपने बच्चों को इन विद्यालयों में भेज रहे हैं, जिससे वे तो आर्थिक
शिक्षा-संसार में हो रही 1998 में हो रही हलचल पर एक दृष्टि भारतीय जनता पार्टी के सत्ताच्युत होने के कुछ दिनों बाद तक शिक्षा के ...Read Moreपर चल रही बहस में उत्तेजना का ताप बना रहा, पर धीरे-धीरे शिक्षा को लेकर हमारे समाज की चिरपरिचित उदासीनता दिखाई देने लगी। अगर सारे घटनाक्रम पर गौर करें, तो लगता है कि बहस जितनी शिक्षा पर थी, उससे कहीं ज्यादा राजनीति पर थी। पर बहस सार्थक फिर भी हो सकती थी, अगर धीरज के साथ शिक्षा और राजनीति या शिक्षा और विचारधारा के रिश्तों की कुछ और गहराई से पड़ताल की
बाजार की शिक्षा या शिक्षा का बाजार शिक्षा का स्वरूप समाज का निर्माण करता है और सामाजिक प्रयोजन शिक्षा के स्वरूप को बदलता है। शिक्षा का अस्तित्व ...Read Moreसे अलग नहीं होता। शिक्षा सदैव समाज सापेक्ष होती है। इसलिए शिक्षा का विकास समाज के विकास से कटा हुआ नहीं हो सकता। पर समाज शब्द बड़ा ’वेग टर्म’ (अस्पष्ट अवधारणा) है। यह नियन्ता के अधीन है। यह नियन्ता सरकार या प्रशासक अथवा समाज का प्रभुत्वशाली वर्ग और वर्चस्व-सम्पन्न समुदाय होता है। उसी का निहित हित शिक्षा को स्वरूप प्रदान करता है। इधर पिछले दस-पन्द्रह सालों में देश की शिक्षा