ऐसे थे मेरे बाऊजी - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Moral Stories
वो कहते हैं ना कि माँ हमेशा चाहती है कि उसके बेटे का पेट भरा रहें लेकिन एक बाप हमेशा चाहता है कि उसके बेटे की थाली हमेशा भरी रहें,माँ की ममता और बाप की बापता में इतना ही ...Read Moreहोता है कि माँ की ममता की छाँव बच्चों को हमेशा शीतलता प्रदान करती है और बाप की कठोरता उसे धूप में जलना सिखाती है,जीवन से संघर्ष करना सिखाती है,
माँ का बच्चे के जीवन में एक अलग स्थान होता है,लेकिन पिता बच्चे की रीढ़ होता है,जो बच्चे को कभी भी झुकने नहीं देता,माँ को बच्चे का पहला गुरू कहा जाता है,लेकिन गुरू भी ईश्वर की ही उपासना करता है,तो पिता का अस्तित्व और योगदान उतना ही होता है बच्चे के जीवन में जितना कि माँ का....
वो कहते हैं ना कि माँ हमेशा चाहती है कि उसके बेटे का पेट भरा रहें लेकिन एक बाप हमेशा चाहता है कि उसके बेटे की थाली हमेशा भरी रहें,माँ की ममता और बाप की बापता में इतना ही ...Read Moreहोता है कि माँ की ममता की छाँव बच्चों को हमेशा शीतलता प्रदान करती है और बाप की कठोरता उसे धूप में जलना सिखाती है,जीवन से संघर्ष करना सिखाती है, माँ का बच्चे के जीवन में एक अलग स्थान होता है,लेकिन पिता बच्चे की रीढ़ होता है,जो बच्चे को कभी भी झुकने नहीं देता,माँ को बच्चे का पहला गुरू
इधर ब्याह की तैयारियाँ हो रही थीं और उधर दुर्गेश की आत्मा प्रयागी के लिए तड़प रही थी,ज्यों ज्यों ब्याह की तिथि नजदीक आती जा रही थी दुर्गेशप्रताप का दिल डूबता जा रहा था,आखिरकार ब्याह का दिन आ ही ...Read Moreऔर उसने गैर मन से हल्दी और तेल चढ़वाया मण्डप वाले दिन,मायने वाले दिन भोज हुआ और फिर तीसरे दिन बारात चल पड़ी अपनी अपनी बैलगाड़ियों में और ट्रैक्टरों में क्योकिं लड़की नजदीक के गाँव की थी उसका गाँव यही कोई सोलह सत्रह किलोमीटर ही दूर था उसके गाँव से .... बुझे मन से दुर्गेश ने फेरे पड़वाएं,सब नेगचार