Ishq Faramosh book and story is written by Pritpal Kaur in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ishq Faramosh is also popular in Love Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
इश्क फरामोश - Novels
by Pritpal Kaur
in
Hindi Love Stories
आसिफ बड़ी देर से बेचैनी के साथ ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहल कदमी कर रहा था. अब तक तो खबर मिल जानी चाहिए थी. देर क्यूँ हो रही है? कही कोई गड़बड़ तो नहीं? ये हस्पताल बहुत बेकार है. इतना तो महंगा है. वैसे इस बात की उसे कोई फिकर नहीं थी, वजह कि उसकी पत्नी जो इस वक़्त अन्दर थी, एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में अधिकारी है, सो सारा खर्चा उसकी कंपनी उठा रही थी. लेकिन इस देरी से उसे बेहद बेचैनी हो रही थी.
किरण को अन्दर गए लगभग एक घंटा हो चुका था. अभी तक कोई खबर नहीं. उसकी बेचैनी हर नए मिनट के साथ बढ़ती जा रही थी. थिएटर से निकलने वाले हर व्यक्ति की तरफ वह सवालिया निगाह उठाता, वह उसे अनदेखा कर के चला जाता तो फिर वह परेशान हाल अपनी जगह पर खड़ा हो जाता और दो पल ठहर कर फिर से चहल कदमी करने लगता.
मगर बेचैनी थी कि कम होने का नाम नहीं ले रही थी और अन्दर से कोई खबर नहीं आ रही थी. उसका दिल किया थिएटर का दरवाज़ा ठेल कर अन्दर ही घुस जाए और देखे कि ऑपरेशन किस तरह चल रहा है. लेकिन दरवाजे पर खडा छह फुटा तकड़ा गार्ड उसके इस इरादे को सोचते ही नाकाम कर देने के लिए काफी था.
1. बेटी या बेटा? आसिफ बड़ी देर से बेचैनी के साथ ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहल कदमी कर रहा था. अब तक तो खबर मिल जानी चाहिए थी. देर क्यूँ हो रही है? कही कोई गड़बड़ तो नहीं? ये ...Read Moreबहुत बेकार है. इतना तो महंगा है. वैसे इस बात की उसे कोई फिकर नहीं थी, वजह कि उसकी पत्नी जो इस वक़्त अन्दर थी, एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में अधिकारी है, सो सारा खर्चा उसकी कंपनी उठा रही थी. लेकिन इस देरी से उसे बेहद बेचैनी हो रही थी. किरण को अन्दर गए लगभग एक घंटा हो चुका था. अभी
2. बच्चा बदल गया एक हफ्ते बाद किरण बच्ची को लेकर घर पहुँची तो इंग्लैंड से माँ सुजाता का शायद तब तक ये सौंवा फ़ोन रहा होगा. अपनी खराब तबीयत के चलते वे किरण की देख-भाल के लिए आ ...Read Moreपाई थी और इस बात को लेकर उनके मन में भयंकर ग्लानी हो रही थी. किरण ये सब समझ रही थी और हर बार एक ही बात माँ को भी समझाती थी कि उनकी देख-भाल की उसे ज़रुरत नहीं है. हस्पताल में उसकी बहुत अच्छी देख-भाल हो गयी है और घर पर भी पूरा इंतजाम उसने पहले से ही कर
3. बेटा होता तो शाम को जब आसिफ दफ्तर से आया तब तक किरण खुद को कुछ हद तक संभाल चुकी थी और साथ ही मन में वे सवाल भी तय कर चुकी थी जो उसे आसिफ से पूछने ...Read Moreहालाँकि उसे अंदाज़ा भी था कि वो उनका क्या जवाब देगा, फिर भी मन की तसल्ली के लिए ये कवायद ज़रूरी थी. सुजाता का अगला फ़ोन आये और वह विस्तार से बात करे उससे पहले उसे जान लेना था कि वह किस ज़मीन पर खडी है. उसके पैरों के नीचे दलदल है या धरती या सिर्फ बादल; जो भ्रम तो
4. नींद से जागी सपने देखने की एक उम्र होती है. एक उम्र के बाद उन्हें साकार करने के वक़्त आता है. जब पहले के देखे सपने साकार होते हैं तब नए सपने भी आने शुरू हो जाते हैं. ...Read Moreका सिलसिला कुछ ऐसा है कि कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता. सपने जो सोते आदमी को और गहरी नींद में गाफिल कर के मदहोश खुमारी के आलम में ले आते हैं और फिर एक ही झटके के साथ उसे नींद से जुदा कर के हकीकत की तल्ख ज़मीन पर लावारिस छोड़ उड़न-छू हो जाते हैं. किरण की
5. यही कसर बाकी थी रौनक छाबड़ा इस वक़्त एन.सी.आर. के एक मशहूर इलाके नॉएडा की एक पुलिस चौकी में बैठा हुआ है. दरअसल ये एक रिहायशी फ्लैट है, तीन कमरों वाला. जिसे पुलिस चौकी में तब्दील कर दिया ...Read Moreथा. अन्दर के दोनों बेडरूम के दरवाजे खुले थे. उनमें से अन्दर लगी कुर्सियाँ और मेज़ देखे जा सकते हैं. साथ ही दीवार से लगी लकड़ी और लोहे की बेतरतीबी से लगी अलमारियां और उनमें लगी धूल भरी फाईलें. अन्दर के किसी भी कमरे में कोई नहीं था. देखने से लगता था उनमें से एक तो थानाध्यक्ष के दफ्तर के