वह अब भी वहीं है - Novels
by Pradeep Shrivastava
in
Hindi Fiction Stories
समीना तुमसे बिछुड़े हुए तीन बरस से ज़्यादा होने जा रहा है। मगर ऐसा लग रहा है मानो अभी तुम इस रमानी हाउस के किसी कमरे से जोर-जोर से मुझे पुकारती हुई सामने आ खड़ी होगी और मुझे डपटते हुए कहोगी, 'ओए विलेन-किंग कुछ काम भी करेगा या ऐसे ही मतियाया (आलसियों की तरह) पड़ा रहेगा।'
तब तुम्हारी यह बात और आवाज़ मुझे बुरी लगती थी। तुम्हारी आवाज़ चीख लगती थी, एक कर्कश चीख। मगर इन बरसों में ऐसा कौन-सा दिन बीता होगा, जब तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी वह बात सुनने का मन न हुआ हो और तुम्हारी वह आवाज़ घंटियों सी मधुर न लगी हो।
देखो यह भी कैसा संयोग है कि, बाकी सब कुछ तो याद है, लेकिन मुझे इस सिनेमा नगरी में आए हुए अब कितने बरस पूरे हो गए हैं, इसका ठीक-ठीक हिसाब नहीं लगा पा रहा हूँ । क्योंकि वह तारीख नहीं याद आ रही जिससे सटीक हिसाब लगा सकूँ। बस इतना याद है कि जब आया था तब अपना देश पड़ोसी पिस्सू जैसे कमीने देश पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में जूतों तले कुचल चुका था।
देश अपने विजय का उत्सव मना रहा था। ट्रेन में विशेषज्ञ बहसबाज़ पिछली सरकारों को कोस रहे थे, गरिया रहे थे कि इन भ्रष्ट निकम्मी सरकारों ने अपनी झोली भरने, सत्ता सुख में देश को भी दांव पर लगाने के बजाय ईमानदारी से देश को सैन्य ताकत बनाया होता, तो दुनिया के फेंके टुकड़ों पर पलने वाला यह पिस्सू परजीवी जैसा देश चौथी बार धोखे से भी हमला करने का दुस्साहस नहीं कर पाता।
प्रदीप श्रीवास्तव कॉपी राइट:लेखक प्रथम संस्करण:२०२१ आवरण चित्र: धीरेन्द्र यादव 'धीर ' आवरण मॉडल: अधरा शर्मा आवरण सज्जा: प्रदीप श्रीवास्तव कम्प्यूटर टाइपिंग:धनंजय वार्ष्णेय ले-आउट:नवीन मठपाल समर्पित पूज्य पिता ब्रह्मलीन प्रेम मोहन श्रीवास्तव एवं प्रिय अनुज ब्रह्मलीन प्रमोद कुमार ...Read Moreसत्येंद्र श्रीवास्तव की स्मृतियों को पूज्य पिता श्री प्रिय प्रमोद प्रिय सत्येंद्र -------------- भूमिका एक मुट्ठी सपने के लिए हर उपन्यास, कहानी के पीछे भी एक कहानी होती है. जो उसकी बुनियाद की पहली शिला होती है. उसी पर पूरी कहानी या उपन्यास अपनी इमारत खड़ी करती है. यह उपन्यास भी
भाग - 2 मेरी भाभी असल में बहुत खुशमिजाज, खुले दिमाग वाली साफ ह्रदय महिला थीं। और मैं उनकी हंसी-मजाक का अर्थ कुछ और ही लगा बैठा था। विलेन बनने के अपने सपने को लेकर मैं उनसे बतियाता था। ...Read Moreजल्दी ही उन्होंने यह समझाना शुरू कर दिया कि, 'ये विलेन-ईलेन बनने का पागलपन छोड़ो, काम-धंधा आगे बढ़ाओ। वहां बड़े-बड़े जाकर ठोकरें खाते हैं। दर-दर भटकते हैं।' मैं कहता, 'सब खाते होंगे। मैं नहीं खांऊगा, क्योंकि मैं फ़िल्मों में जितने विलेन देखता हूं, उन सबसे शानदार है मेरा शरीर। मैं छः फिट से ज़्यादा लम्बा हूं।' फिर मैं उन्हें अपने
भाग - 3 कहने को वह धर्मशाला था, लेकिन वास्तव में वह शराबियों-मवालियों का अड्डा था। मैं जिस कमरे में था उसमें आमने-सामने छह तखत पडे़ थे, सब के सिरहाने एक-एक अलमारी बनी थी। सफाई नाम की कोई चीज ...Read Moreथी। अजीब तरह की गंध हर तरफ से आ रही थी। न जाने कितने बरसों से उसकी रंगाई-पुताई नहीं हुई थी। खैर बहुत थका था, तो पसर गया तखत पर। धर्मशाला का इंचार्ज बाबूराम को जानता था। इससे मुझे सिर्फ़ इतना फायदा हुआ कि, कहां पर सस्ता और अच्छा खाना मिल जाएगा, उसने यह बता दिया। मैंने शाम सात बजे
भाग - 4 समीना तुम मुझे हमेशा नहीं, बल्कि शुरू के दो-तीन सालों तक आए दिन ऐड़ा-टट्टू कहा करती थी। लेकिन नहीं-नहीं समीना, मैं हर वक़्त हर क्षण अपने सपने को पूरा करने के लिए बेचैन रहता था। अब-तक ...Read Moreजितने काम किए। जितने तरह के काम किए वह सब केवल अपने सपने को पूरा करने के लिए रास्ता बना सकूं, सिर्फ़ इसलिए किए। बाबूराम द्वारा ठगा जा रहा हूं, यह जानते हुए भी मैं अगले दिन सेठ के पास पहुंचा। क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं था। वहां पहुंचने पर अपने को और ठगा हुआ पाया। जानती
भाग - 5 मैंने देखा कि मैं संकुचा रहा था और वह बेखौफ, बिंदास थी। मैं अब-तक यह सोचकर परेशान होने लगा कि, आखिर ये इसकी दोस्त कैसे हो गई? रातभर दूसरे मर्द के साथ क्या कर रही है? ...Read Moreहै तो ये दोस्त क्यों बता रहा है। मुझे लगा फितरती बाबूराम कुछ नया खेल, खेल रहा है। वह मुझे ज़्यादा कुछ सोचने का मौका दिए बिना तेज़ी से बाहर गया और दो पॉलिथिन लिए हुए वापस लौट कर बोला, 'विशेश्वर मैं होटल से खाना लेकर आया हूं, आओ खाते हैं।' यह कहते हुए उसने बिना किसी संकोच के साथ
भाग - 6 समीना फिर वह दिन भी आया, जब मेरा मन सेठ के प्रति घृणा से भर गया, और मैं तन्खवाह मिलते ही रात में ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर रफूचक्कर हो लिया। इतनी घृणा इसलिए हुई कि, ...Read Moreमजदूरों के साथ मैंने खाया-पिया था, उनमें से एक किसी अनजान-सी बीमारी के कारण देखते-देखते तीन-चार दिन में चल बसा। बाकी मजदूरों के पास उसके संस्कार के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे, तो उन लोगों ने सेठ से उधार मांगा, मगर उसने साफ मना कर दिया। ज़्यादा कहने पर फटकार भी दिया। यह देखकर मैंने अपने पास से जितना हो
भाग - 7 समीना मुझे लगता है कि, तुम सामने होती तो कछाड़ मारने वाली बात बिल्कुल न समझ पाती। क्योंकि तुम तो सहारनपुर की थी, हमारे बड़वापुर में यह शब्द प्रयोग होता है। होता क्या है कि, इसमें ...Read Moreकिसानी आदि का काम करते समय अपनी धोती का एक सिरा दोनों पैरों के बीच से खींचकर पीछे कमर में कसकर खोंस लेती हैं। जिससे काम करते समय धोती बाधक नहीं बनती। यहां महाराष्ट्र में कछाड़मार धोती पहनकर एक लोक-नृत्य भी होता है। तो उस ड्रेस में वह छरहरी महिला एकदम अलग ही तरह की दिख रही थी। उसकी पूरी
भाग - 8 मगर मेरा यह सारा सोचा-विचारा धरा का धरा रह जाता, जब साहब को देखता। इस बीच मैं हर तरह से यह भी जानने में लगा रहा कि आखिर ये करते क्या हैं ? इसी सब में ...Read Moreमहीने और बीत गए। दूसरे मैं लाख कोशिश करके भी कुछ नहीं बोल सका। तीसरे महिने बाद मैंने पूरा जोर लगाया और एक दिन काम खत्म होने के बाद जब देखा कि, साहब फ़ोन पर किसी से हंस-हंसकर बात कर रहे हैं, तो मुझे लगा कि उनका मूड सही है, आज बात कर ही लूँ । यह सोच कर मैं
भाग - 9 मेरे यह कहते ही उन्होंने क्षण-भर को मुझे देखकर कहा, 'सुबह आ जाएंगे। तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।' उनकी इस बात ने मेरी सारी आशाओं को पैदा होते ही खत्म कर दिया। इस बीच ...Read Moreकॉल आ गई और मैडम फ़ोन पर लग गईं। सोहन मुझे लेकर लॉबी में आ गया। मुझे समझाते हुए बोला, 'घबड़ाने की जरूरत नहीं, मैडम बहुत अच्छी हैं। वो काम करने वालों को अपने परिवार के सदस्य की तरह रखती हैं। उन्होंने कह दिया तो सामान सुबह आ जाएगा।' मैंने कहा, 'लेकिन मैं इस समय क्या पहनूंगा ?' ‘अगर तुम्हें
भाग - 10 अपनी तरह की खूबसूरत, सेक्सी, बिंदास महिला के साथ टेबिल लाइट डिनर का सपना चूर-चूर हो गया। सामने हमारा खाना रखा था। समीना मैं सपने में भी अन्न का अपमान नहीं करता, क्योंकि दुनियां में सब-कुछ ...Read Moreइसी के लिए ही तो होता है। लेकिन उस क्षण मेरा मन उस खाने को देखकर घृणा, क्रोध से उबल पड़ा। मन में आया कि, उसे उठाऊं और अंदर महंगी शराब के नशे में चूर होती जा रहीं सुन्दर हिडिम्बा के चेहरे पर नहीं, उसकी छाती पर खींच कर मारूं। छाती पर इसलिए कि, जिससे वह सब-कुछ आसानी से देख
भाग - 11 सुबह मेरी नींद तब खुली जब तोंदियल ने उठाया। उसी ने बताया कि, साढ़े सात बज गए हैं। मैं घबरा कर उठा, मेरे सामने साहब और मैडम का चेहरा नाच गया। मैंने पूछा, 'मैडम उठ गईं ...Read Moreउसने कहा, 'नहीं, अभी सो रही हैं। दस बजे से पहले नहीं उठेंगी। जिस रात गड़बड़ करती हैं अगले दिन दस बजे से पहले नहीं उठतीं।' मैं जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो गया। अपने कपड़े पहने और तोंदियल के कपड़ों को धोकर मशीन में ही सुखाकर वापस रख दिया। हालांकि वह नम तब भी थे। तोंदियल यह सब शांति
भाग - 12 तोंदियल ने एक तरह से मुझे कपड़े की तरह धोकर, निचोड़कर तार पर लटका दिया था। मैं निचुड़ा हुआ बॉलकनी की रेलिंग पर खड़ा नीचे देखे जा रहा था। सोचा भी नहीं था कि यहां नौकरों ...Read Moreऐसे कैद कर दिया जाता है। कम से कम इस बिल्डिंग में तो सारे नौकर कैद ही थे। करीब पांच बजे कॉल-बेल बजी। तोंदियल के प्रति मुझमें अब-तक कुछ सम्मान भाव पैदा हो चुका था। उसके उठने से पहले मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया। सामने साहब का एक ड्राइवर जिसे मैं पहचानता था, और करीब तीस-पैंतीस की उम्र की एक
भाग -13 उसी दिन मैंने देखा कि अपने लक्ष्य के लिए कैसे जुनूनी होकर कोशिश की जाती है, और लक्ष्य पाने के लिए कैसे अपने को फिट रखा जाता है। मैडम केवल सप्ताह के दो-दिन खूब जम के खाती-पीती ...Read Moreमस्ती करती थीं। सप्ताहांत होने की पहले वाली शाम और रात, अगले दिन पूरी छुट्टी, बाकी दिन यदि रात में दो-तीन पैग शराब को छोड़ दें, तो बड़ा संयम से रहती थीं, कड़ी मेहनत करती थीं। समीना दो-चार दिन बाद मेरा मन वहां लगने लगा। साहब के यहां की तरह यहां एक खास तरह का भय हावी नहीं रहता था।
भाग -14 उन्होंने बातचीत में छब्बी को यह भी बताया था कि, वह जो भी हैं, वह ''मां वैष्णों देवी'' के ही कारण हैं। और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है, जिसके उच्चारण करने से इंसान को स्वस्थ जीवन, समृद्धि ...Read Moreही मिलते हैं । आदमी रातों-रात शिखर पर पहुँच जाता है। यह मंत्र छब्बी ने उन्हीं से सुन कर याद कर लिया था। अपनी कुछ ही देर की यह पूजा करने के बाद मैडम बेड पर आ जाती थीं, और कभी पंद्रह तो कभी बीस मिनट बाद एक सिगरेट जला कर अपने खूबसूरत होंठों के बीच फंसा कर, गिलास में
भाग -15 अपने प्रति उसका यह लगाव, अधिकार देख कर मैं भावुक हो उठा। क्षणभर उसकी आंखों में देखा जो भरी-भरी सी थीं। जिनमें खुद के लिए प्यार ही प्यार और उतना ही अधिकार भी उमड़ता देख रहा था। ...Read Moreमैंने भावावेश में आकर उसे बांहों में जकड़ लिया। हम-दोनों उस क्षण डूब जाना चाहते प्यार के सागर में बिल्कुल गहरे, एकदम तल तक। लेकिन तोंदियल रोड़ा बना हुआ था। हम-दोनों को उस पर बड़ी गुस्सा आ रही थी, लेकिन विवश थे। किच-किचा कर रह गए। लेकिन अब सोचता हूँ कि उस बेचारे की भी क्या गलती थी, अलग हटने
भाग -16 दयनीय हालत के चलते किसी भी भाई-बहन की पढ़ाई-लिखाई भी अच्छे से नहीं हो पाई। सरकारी स्कूलों, सरकारी मदद से जितना पढ़ा जा सकता था, सारे बच्चों ने उतनी पढाई पूरी मेहनत, ईमानदारी से की। लेकिन घर ...Read Moreदयनीय स्थिति के चलते, समझदार होते-होते सभी कमाने-धमाने के लिए विवश हो गए। इसलिए सरकारी बैसाखी पर चल रही सबकी पढाई और कमजोर हो गई। बड़ा भाई जब चौदह-पंद्रह का हुआ तो मां को कुछ राहत मिली। वह धीर-गंभीर ही नहीं, मां, हम-सब को प्यार भी बहुत करता था।' समीना, छब्बी बीते दिनों को इतनी गहराई में उतर कर याद
भाग -17 पहले तो मैं समझ नहीं पाई, लेकिन जब जल्दी ही गलत ढंग से छूने, पकड़ने की कोशिश करने लगा तब उसकी मंशा समझी, और फिर समझते ही मैंने उसे धिक्कारते हुए कहा, '' बाप की उमर के ...Read Moreऔर मुझ पर ऐसी नज़र रखते हो। आज के बाद मेरे सामने भी न पड़ना, नहीं तो मैं चिल्ला कर पूरा मोहल्ला इक्ट्ठा कर लूंगी।'' मैंने घर में मां-भाई को भी बता दिया। उन लोगों ने भी उन्हें अलग बुला कर खूब टाइट किया। अब तक रोज-रोज, लड़ाई-झगड़े, तमाम दुश्वारियों का सामना करते-करते हम सब निडर हो गए थे। यह
भाग -18 यह सुनने और गर्दन पर उसके हाथों की जकड़ से मेरा दम घुटने लगा था। मैं एकदम टूट गई और हांफते हुए खुद को उसके ही हाथों में एकदम ढीला छोड़ दिया। इसके बाद उसने, मेरा पेटीकोट, ...Read Moreमुझे दे दी। मैंने रोते हुए उन्हें जितनी जल्दी हो सका पहन लिया। मुझे उस समय बार-बार बाबू याद आ रहे थे। वह लाख नसेड़ी थे लेकिन रिश्तों के बारे में बड़ा मुंहफट कहते थे कि, ''जोड़े-गांठें के रिश्ते में कोई गर्मीं नहीं होती, पानी होता है पानी, कब बह जाए कुछ पता नहीं।'' यह बात वह इसी घिनौने आदमी
भाग -19 भाई ने जल्दी-जल्दी लिखा था कि, ''तुम-दोनों वहां ठेला वगैरह सब बेच कर वापस आ जाओ। तुम्हारी भाभी के परिवार में केवल उनकी भाभी और एक तीन साल का बच्चा ही बचा है। मां-बाप, उनका भाई और ...Read Moreबच्चे एक्सीडेंट के चार दिन बाद ही चल बसे। भाभी अब भी गंभीर हैं । तीन महीने से पहले बिस्तर से उठ पाना भी मुश्किल है। बच्चा भी गंभीर है। अब इस हालत में उन्हें छोड़कर आ पाना संभव नहीं है।'' उन्होंने लकड़बग्घे को यह भी लिखा था कि, ''यदि तुम वहीं रुकना चाहते हो तो ठीक है, तब सामान
भाग -20 मारे खुशी के वह भाई के गले से लगकर फफक-फफक कर रो पड़ी। भाई को अंदर ला कर बैठाया। पहले तो भाई इस बात पर गुस्सा हुआ कि, उसको फ़ोन क्यों नहीं किया? वह कितना इधर-उधर भटकता ...Read Moreउसे कहां-कहां नहीं ढूंढ़ा। आज भी संयोग से ही एक पुराने साथी ने बताया। फिर छब्बी ने जब रो-रोकर अपनी आप-बीती बताई और यह भी कहा कि, अब जो भी हो, वह इस नियति को स्वीकार कर चुकी है, उसे पति मान चुकी है, उसके बच्चे की मां बनने जा रही है। इसलिए अब तुम भी हमारी इस स्थिति को
भाग -21 उस दिन छब्बी का रोना-धोना बहुत देर तक चला। उसे दो बातों का दुःख सबसे ज्यादा था। पहला बच्चों का, दूसरा भाई का। कि उस भाई ने भी उसे गलत समझा, जिसने उसके, पूरे परिवार के लिए ...Read Moreजिम्मेदारियां निभाईं जो बाप की थीं। वह उसे एक बाप की ही तरह मानता, प्यार करता था। उसका आखिरी बार अत्यधिक दुखी होकर रोते हुए जाना वह भूल नहीं पा रही थी। भाई के लिए उसका कलेजा वैसे ही छलनी होता था, जैसे बच्चों की याद आने पर होता था। समीना उस रात हमने, छब्बी ने एक दूसरे को अपने
भाग -22 समीना, छब्बी उस समय घृणा की आग में धधकती एक मूर्ति सी लग रही थी। मुझे लगा कि, जैसे उसने मेरी सारी चोरी पकड़ कर दुनिया के सामने मुझे एकदम नंगा कर दिया है। मुझसे कुछ बोला ...Read Moreजा रहा था। उसका मर्दों के प्रति बरसों से भरा गुस्सा एकदम से मुझ पर ही फूट पड़ा था। मेरी गलती थी तो सिर्फ़ यह, कि एक दिन पहले मैंने उसे प्यार करते समय, उसके शरीर के ऊपरी और निचले कुछ हिस्से को फ़िल्मी हिरोइनों की तरह सर्जरी कराके खूबसूरत बनाने की बात कह दी थी। जिसे पहले मैं पत्रिकाओं
भाग -23 मैं और छब्बी इंतजार ही करते रह गए कि, वो हमें डांटे-फटकारें, नौकरी से बाहर कर दें। उनके आने के दूसरे ही दिन तोंदियल भी आ गया। अब हम-दोनों कई दिन तक बड़ा अटपटा सा महसूस करते ...Read Moreज़िंदगी फिर पुराने ढर्रे पर आने लगी। देखते-देखते कई महीने बीत गए लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी मुझे अपने काम के लिए घंटे भर का भी समय नहीं मिला। अंततः छब्बी और मैंने यह योजना बनाई कि, हर हफ्ते छुट्टी वाले दिन वे हमें बाहर घूमने-घामने दो-चार घंटे के लिए जाने दिया करें। हमने सोचा इस दो-चार घंटे में
भाग -24 मुझ मूर्खाधिराज का भी ध्यान इस ओर बाबू राम के एक बम्पर शराबी और बढ़िया लेखक साथी की बातों से गया था। पता नहीं वह किस सनक के चलते बाबू राम, हम-जैसे लोगों के साथ किसी भी ...Read Moreजगह बैठ कर जमकर मयनोशी करता था, बल्कि शराब चढ़ जाने के बाद ऐसी फूहड़ भद्दी-भद्दी बातें करता था कि हम-लोग भी दांतों तले ऊँगलियाँ दबा लेते थे। जब-तक वह शराब के ऊपर होते तब-तक तो अपनी किताबों, अपने सिद्धांतों की ही बातें करते थे, जिन्हें हम मूर्खों की तरह उन्हें देखते हुए केवल सुनते ही रहते थे, कुछ बोलते,
भाग -25 उसकी बातें काफी हद तक सही थीं, तो मैं कुछ बोल नहीं सका। सिर्फ़ इतना कहा कि, ' ठीक है चलना। हो सकता है हम-दोनों को एक साथ ही काम मिल जाए।' तो वह बोली, ' ए...सपना ...Read Moreबड़ा भी न देख कि यदि टूट जाए तो संभल ही न पाएं और हार्ट फेल हो जाए।' मैंने कहा, 'तू साथ रहेगी तो मेरा फेल हार्ट भी चल पड़ेगा।' तो उसने कहा, 'अच्छा अब ज़्यादा तेलबाजी ना कर।' उसकी इस बात पर मैंने उसे बाहों में जकड़ कर कहा, 'अरे! जाने-मन तेरे को तेल नहीं लगाऊंगा तो किसे लगाऊंगा।
भाग -26 उस दिन जब छब्बी रात एक बजे मैडम की मसाज वगैरह करके, सुला के, ऊपर आई तो बोली, 'सुन, बड़ी मगज़मारी, हाथ-पैर जोड़ने के बाद मोटी बोली कि, तू अकेले ही जाएगा। मैं नहीं जाऊँगी। यहां काम ...Read Moreकरेगा? तेरा काम भी कल मुझे ही करना है।' छब्बी यह भी बोली कि, 'मैडम कह रही थीं कि, ऐसे फ़िल्म निर्माता यहां गली-कूचों में भरे पड़े हैं। ये सब या तो सी ग्रेड एडल्ट मूवी बनाते हैं या धोखे में रख कर पॉर्न मूवी और मार्केट में बेचकर रफूचक्कर हो लेते हैं।' मैडम की इस बात ने मेरा और
भाग -27 समीना अंदर वह मकान नहीं, राजसी ठाठ-बाट वाला एक महल सा था। अपने से पहले गए लोगों में से कईयों को मैंने रिहर्सल करते देखा। मुझे गुस्सा आई कि, सालों ने मुझे बताया नहीं, नहीं तो मैं ...Read Moreरिहर्सल करता। जल्दी ही मेरे पास एक अजीब चिरकुट सा दिखने वाला आदमी आया और नाम पूछ कर मुझे सीधे सीन समझाने लगा कि, मुझे सीढ़ियों से ऊपर बेडरूम में जाकर वहां सोई घर की मालकिन का रेप करना है। मैं इस घर के मालिक द्वारा अपमानित करके निकाला गया नौकर हूं। जो अपने अपमान का बदला लेने के लिए,
भाग -28 समीना उस समय मैं गुस्से से ज़्यादा अंदर से टूट रहा था, खुद को बड़ा कमजोर महसूस कर रहा था। मगर छब्बी एकदम टीचर की तरह बोली, 'सुन-सुन, मेरी सही-सही सुन, तुझे तेरे दोस्तों ने न चढ़ाया ...Read Moreझाड़ पर, और न तू झाड़ पर चढ़ा है। उन सबने भले ही तुम्हें झाड़ पर चढ़ाने के लिए ही सारी बातें कहीं थीं, लेकिन सारी बातें हैं बिलकुल सही। हां, अभी तू जो कर रहा है वह जरूर झाड़ पर चढ़ना है। मोटी के कहने पर तू चढ़ा जा रहा है, कि नहीं करनी ऐक्टिंग। मोटी तो चाहती ही
भाग -29 मैं समझ नहीं पा रहा था कि, उसके घर वालों को कैसे सूचना दूं। उनका कोई नंबर मेरे पास नहीं था। तोंदियल अपने घर के बारे में बड़ा पर्दा रखता था। उसका मोबाइल पानी में भीग कर ...Read Moreहो चुका था। मैं थोड़ी-थोड़ी देर में सुन्दर हिडिम्बा को फोन करता तो, वह कभी बात करतीं, कभी ना करतीं। जब कॉल रिसीव करतीं तो इतना ही बोलतीं, 'लोग पहुंच रहे हैं।' इंतजार करते-करते आधी रात को एक पुलिस जीप आकर रुकी। उसके पीछे एक लाश वाली गाड़ी भी थी। पुलिस ने आते ही मुझसे पूछताछ की। दुकान के सब
भाग -30 हमने देखा कि उनका मूड अच्छा-खासा खराब हो गया है। उनके जाने के बाद मैंने छब्बी से पूछा, 'अब ये नई कहानी क्या है? मुझे पहले कुछ बताये बिना अचानक सामने खड़ा कर दिया। और वो प्याज, ...Read Moreरंग की नौटंकी का क्या हुआ?' मेरे इतना कहते ही छब्बी बोली, 'तू अगर मेरी बात मानता चलेगा, तो यहाँ जो कुछ अपना है, वह सब-कुछ आराम से ले चलेंगे। किसी तरह की चिंता, कोई डर नहीं रहेगा। तुम ये तय मान लो कि अब ये साहब को आगे करेंगी, लेकिन अब मुझे उनकी भी चिंता नहीं, बहुत देखा है
भाग -31 डर, आवेश, घबराहट में मैं कुछ साफ बोल नहीं पा रहा था। मेरी बात पूरी होने से पहले ही सुन्दर हिडिम्बा के बोलने के बजाय इंस्पेक्टर बोला, 'वो एंबुलेंस में है। तुम्हारी लापरवाही के कारण उसकी डेथ ...Read Moreगई।' यह सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मैं जहां खड़ा था वहीं बैठ गया। तभी उसने एंबुलेंस वाले को इशारा कर दिया, ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और चल दिया। मैं जल्दी से उठा कि छब्बी के अंतिम दर्शन करूँ, मैंने रुकने के लिए आवाज भी दी। लेकिन ड्राइवर को नहीं सुनना था तो उसने नहीं सुना।
भाग -32 मैं कोशिश कर रहा था कि, मेरी आँखें एकदम सूख जाएं। एकदम पथरीली हो जाएँ, लेकिन जितना पोंछता वह उतना ही फिर भर आतीं। मुझे मौत के नाम के साथ-साथ इतनी विवशताभरी स्थिति पर रुलाई आ रही ...Read Moreकि, मेरी सुनने वाला कोई नहीं है। छब्बी जिसे मैं पत्नी ही मानता था। अगर पत्नी ना सही तो कम से कम उसे जीवन साथी मान कर तो चल ही रहा था, वह मर गई। उसे मैं आखिरी बार देख तक नहीं पाया। देखने ही नहीं दिया गया। उसका अंतिम संस्कार कहां होगा? कैसे होगा? कौन करेगा? होगा भी या
भाग -33 जमीन पर ही सही, कुछ देर लेट लेने से मुझे थोड़ी राहत मिल गई थी। मैं उठा और किसी तरह मंदिर के गेट पर पहुंच कर, हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। अंदर एक पुजारी आरती कर ...Read Moreथा। दूसरा पुजारी घंटा बजा रहा था। शंकर भगवान को मैंने भी प्रणाम किया। दस मिनट की आरती पूरी कर दोनों पुजारियों ने भगवान के चरण रज माथे पर लगाए। प्रसाद वाला डिब्बा उठाया चार क़दम पीछे चल कर मंदिर के बाहर आ गए। मैं मंदिर की चार सीढ़ियों के एकदम नीचे सड़क पर था। पुजारी ने मुझे प्रसाद देते
भाग -34 पहले मैंने समझा कि तुम काम पर नई-नई रखी गई हो। लेकिन पहले ही दिन से तुम्हारी चाल-ढाल से लगा कि नहीं, तुम यहां की पुरानी वर्कर हो। मेरा अनुमान सही निकला। तुम कई साल पहले से ...Read Moreरमानी परिवार का मुख्य हिस्सा बनी हुई थी। रमानी साहब के दूसरे मकान में रह रही थी। लड़का उसे भी चोरी से बेच रहा था, लेकिन ऐन टाइम पर रमानी साहब को पता चल जाने से बच गया था। उसमें लड़का ही अपनी एक भारतीय महिला मित्र के साथ रहता था। बाद में अमरीकन लड़की के चलते दोनों अलग हो
भाग -35 मगर तुम वो कहाँ थी, जो पीछा छोड़ देतीं हैं। मैं बाहर जाने लगा तो तुम बोली, 'अरे मैंने तो मजाक किया था। इतना काहे को लाल-पीला हो रहा है। फिर यहां साथ काम कर रहे हैं, ...Read Moreसामने तो आना ही पड़ेगा। मुंह फेर कर एक जगह कैसे रहा जा सकता है। ऐसे तो काम नहीं हो पाएगा, और तब ये रमानी बहनें ना, जैसे इन्होंने बाकियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया, वैसे ही हम दोनों को भी दिखा देंगी। इसलिए ये बात अच्छी तरह समझ ले कि सामने आना है, बार-बार आना है।' लेकिन मैं
भाग -36 'सच में पुलाव तूने बड़ा बढ़िया बनाया है। पता नहीं कितनी बार सुना था लोगों से खयाली पुलाव बनाना। हवाई किले बनाना। आज दोनों ही देख लिया दो मिनट में। जब मैं विलेन बनने की बात करता ...Read Moreघर पर, तो बाबू जी कहते थे, ''ढंग से पढाई कईके, काम-धंधा संभाला, जेसे कुछ मनई बन जाबा। सोहदन के नाहीं हवाई किला, बनाए-बनाए के जिंदगी बरबाद ना कर।'' तब उनकी बात ठीक से समझ में नहीं आती थी। मगर तूने समझाने को कौन कहे, दो मिनट में बना के दिखा दिया। जा, जा के सो, मुझे भी सोने दे।
भाग -37 मैं तुम्हारी कमर के गिर्द साड़ी लपेट कर पेटीकोट के अंदर खोंसने लगा तो तुम हंसने लगी। मेरा हाथ लगते ही तुम्हें गुदगुदी लगने लगती। तुम्हारी हंसी से मेरे मन में खुराफात सूझी। मैं जानबूझ कर साड़ी ...Read Moreढंग से अंदर खोंसता कि तुम्हें ज़्यादा गुदगुदी लगे। यह सब मैंने तब-तक किया, जब-तक कि तुम हंसते-हंसते दोहरी नहीं हो गई। तुम्हारी आंखों से पानी न आने लगा। आखिर मैंने किसी तरह तुम्हें करीब-करीब उसी तरह साड़ी पहना दी, जैसी रिसेप्सनिस्ट पहनती हैं। जैसी रमानी बहनों ने पहनने को कहा था। हालांकि बड़े अस्त-व्यस्त ढंग से ही पहना पाया
भाग -38 दोनों बेली नर्तिकियों के शरीर की थिरकन इतनी तेज़ थी कि बिजली भी शरमा जाए। वे पेट, नितंबों, स्तनों को ऐसे थिरका रही थीं, खासतौर से स्तनों, नितम्बों के कम्पन्न इतने तेज़ थे कि, आंखों की पलकें ...Read Moreहोना ही भूल गईं। दोनों डांस करती-करती मेहमानों के करीब जातीं, कभी उनके ऊपर ही एकदम झुक जातीं, कभी थिरकते स्तन करीब-करीब चेहरे पर लगा देतीं। कई मेहमान भी उनके साथ उठ-उठ कर थिरकने लगते। कुछ महिलाएं भी उठ-उठ कर थिरकती रहीं। उन्हें देख कर मेरे मन में आया कि, इन दोनों ने कपड़ों के नाम पर एक सूत भी
भाग -39 गुस्से में तुमको झिड़क कर मैं चला गया। उस समय मेरे दिमाग में यह बात भी आई कि, जो भी हो तुम छब्बी नहीं बन सकती। सारे मेहमान अगले दिन सुबह ही चले गए। मैं भी सुबह ...Read Moreदो घंटे काम करने के बाद अपने कमरे में आकर लेट गया। मैं अपने को बेहद अपमानित महसूस कर रहा था। वह महिला एक बड़ी अधिकारी, और उससे भी बड़ी अय्याश औरत थी, उसे मेरा साथ पसंद आया था, मैं इतना ही जान सका था। रमानी बहनें अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल हुई थीं। अपनी सफलता के लिए उन्होंने
भाग -40 'वाह कितना बढ़िया लेक्चर दिया है। मैं तो सोच रहा था कि, अभी पूरी तरह होश में ही नहीं हो, बात क्या बताओगी। मगर तुम्हारी बातों से तो लगता ही नहीं कि तुम शराब, ड्रग्स की खुमारी ...Read Moreहो।' 'क्या बताऊँ रे, मर्दों ने इतने जख्म दिए हैं, कि उनके सामने दुगुने होशोहवाश में रहने की आदत पड़ गई है।' 'पति के अलावा और किन मर्दों ने तुझे जख्म दिए, बात चली है तो लगे हाथ उन सबके भी नाम बता दे, क्यों अपने कपार (सिर) पर बोझा लादे हुए है।' मेरी बात पर तुम कुछ बताने के
भाग -41 रमानी बहनें पार्टी में हम-दोनों के काम को लेकर दो दिन बाद बोलीं, 'तुम-दोनों ने बढ़िया काम किया। आगे से तुम-दोनों और भी ज़िम्मेदारियाँ निभाओगे।' एक अपनी बात पूरी कर ही पाई थी कि तभी दूसरी बोली, ...Read Moreसे तुम-लोग हमेशा उसी तरह की ड्रेस पहनोगे जो उस दिन पहनी थी। तुम्हें और ड्रेस मिल जाएंगी।' मैं दोनों बहनों की चालाकी पर भीतर-भीतर कुढ़ रहा था। चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। उनसे यह कहने की सोच रहा था कि, ड्रेस के साथ-साथ पगार में भी कुछ बढ़ोत्तरी करती तो कोई बात है। जितना और जिस तरह का
भाग -42 मैं यह सब फालतू की बातें सोच ही रहा था कि, तुम चहकती हुई बोली, 'ऐ, तू मेरी बात सुन भी रहा है कि सो रहा है, या मुंगेरीलाल के सपने देख रहा है। अब सपने देखना ...Read Moreकर। विलेन-किंग नहीं, बिजनेस किंग बन, बिजनेस किंग।' 'सुन रहा हूं... ज़्यादा ना बोला कर समझी। जरा अपना दिमाग ठिकाने रख कर मुझे एक बात बता, दूसरी औरत के साथ मुझे संबंध बनाते देख कर, तेरे को बुरा नहीं लगता क्या?' 'मैंने तुमसे कितनी बार कहा कि, मुझे गरीबी, गुलामी से ज़्यादा और कुछ भी खराब नहीं लगता। समझे। जो
भाग -43 अगले दिन हमारी कोशिश फिर बेकार हुई। बहनों की बातों से हमें और भी पक्का यकीन हो गया कि वो हमें बरबाद करने की ही ठाने हुई हैं। हम-दोनों का हाथ-पैर जोड़ना भी उनके मन को बदल ...Read Moreसका। वो एक पैसा देने को तैयार नहीं हुईं। उल्टे खिल्ली उड़ाई। तब मैं बर्दाश्त नहीं कर सका। बिगड़ गया। साफ कह दिया कि, 'आप-दोनों ने हमें बरबाद करने के लिए यह सब किया। आप लोग नहीं चाहती थीं, तो पहले ही मना कर देंती। हमारे पैसे क्यों बरबाद कराए। हम-दोनों अब यहां काम नहीं करेंगे। हमारा हिसाब अभी कर
भाग -44 तुम्हारे नहीं कहते ही मैं गुस्से में बोला, 'चल हट, तुझसे कुछ नहीं होगा। तेरे साथ मैं भी पड़ा रहूंगा। हम-दोनों जिंदगी में जो कर सकते थे, वह कर चुके। अब जो ज़िंदगी बची है, उसमें ऐसे ...Read Moreअपना नाम, अस्तित्व खोने, जब-तक शरीर चले तब-तक गुलामी करने, और जब ना चले, तब एड़िया घिस-घिसकर मरना है, समझी। इसलिए अब से यह सब कहना-सुनना बंद। गुलामी जितनी कर सकते हैं, वही करें बस। अब चल उठ, तेरे कमरे का सामान यहां ले आएं। नहीं तो कमीनी बहनें निकाल देंगी।' यह कहते हुए मैं खड़ा हो गया। लेकिन तुमने
भाग -45 मेरे इस असमंजस से तुम खीझती हुई बोली, 'तेरे मगज में भी कब क्या भर जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अरे आदमी तो गलती करता ही रहता है। तभी तो बार-बार भगवान के पास जाकर माफी ...Read Moreरहता है, और भगवान इतने दयालु हैं कि, उसे माफ करते रहते हैं। उसे गलतियों को समझने, सुधारने के लिए अकल देते रहते हैं । बार-बार उसे ठोकर भी देते रहते हैं कि गलतियों से तौबा कर ले। लेकिन जब वह नहीं मानता, तब भगवान उसे ऐसी ठोकर देते हैं कि फिर वह कभी भी संभल नहीं पाता। सुन, अपने
भाग -46 'तुम्हारी बात पर मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा, 'तुझे ताना मारने के अलावा भी कुछ आता है क्या? जब देखो काम-काम, मेरे बिना कोई काम भी नहीं कर सकती ? जब देखो सिर पर सवार हो ...Read Moreहै। चल बता क्या है?' तुमने ने जो-जो काम बताए, उनमें से ज़्यादातर मैं कर ही चुका था। थोड़े बहुत रह गए थे, उन्हीं के लिए तुम अफना रही थी। मेरे गुस्सा दिखाने पर तुम बोली, 'चल ज़्यादा भाव मत खा। छोटकी का फ़ोन आ गया है। थोड़ी देर में दोनों आ रही हैं। फ़ोन पर ही चटक रही थीं,
भाग -47 यह कहते हुए तुम एकदम अड़ कर बैठ गई मेरे सामने । बात टालने की मेरी सारी कोशिश बेकार हो गई तो मैं बोला, बोला क्या उन्हीं प्रोफ़ेसर साहब की बात दोहरा दी। जो उम्र में हम ...Read Moreसे चार-छह साल ही बड़े थे, और हम-लोगों से क्लास के बाहर दोस्तों की तरह मिलते, बोलते-बतियाते थे। हर तरह की बातें। लेकिन छात्रों को हद से बाहर होते देखते ही, उन्हें ठेल कर हद में करने में देर नहीं लगाते थे। उनकी बातों में इतनी ताक़त होती थी कि, तब हम उनसे नज़र मिलाने की भी हिम्मत नहीं कर
भाग -48 उस समय तुम गुस्से से ज्यादा दुखी थी। मेरा रमानी बहनों के पास जाना तब तुझे बहुत ज्यादा अखरने लगा था। अपने ही जाल में तू खुद को फंसा पाकर व्याकुल हो रही थी। तेरी परेशानी देख ...Read Moreमैंने कहा, 'अगर तू तैयार हो तो अब यहां से कहीं और चलें। कहीं और अपना ठिकाना बनाएं। अपना काम शुरू करें। आखिर यह सब एकदिन तो करना ही पड़ेगा। कब-तक ऐसे इंतजार करते रहेंगे। काम-भर का तो पैसा इकट्ठा हो ही चुका है।' मगर मेरी सारी बातें फिर सिरे से बेकार हो गईं। तुमने जो बातें कहनी शुरू कीं
भाग -49 तुमने यही बात बहनों को समझाई। उनसे बिना हिचक कहा, 'पहले की तरह नौकरी मैं ही करूंगी। यह दिन भर बाहर कोई और काम-धंधा करेगा। हम दोनों पति-पत्नी हैं, इसलिए रहना तो एक ही जगह होगा।' दोनों ...Read Moreही नौकरी पर रखने के पक्ष में थीं, लेकिन मेरे इंकार, और तुम्हारी बातों से अंततः वो मान गईं। इसके बाद हफ्ते भर में यहां सारी व्यवस्था करके दोनों अमरीका रवाना हो गईं, भाई के पास। यहां की सारी फैक्ट्रियों की ज़िम्मेदारी उसी आदमी को सौंपी जो पहले इन दोनों के अमरीका जाने पर, डेली रमानी हाऊस दिन में एक
भाग -50 उस दिन जब लौटा तो तुम बहुत उदास थी। खाना मेरी वजह से बनाया था, नहीं तो शायद बनाती ही नहीं। साथ में बहुत कहने पर नाम-मात्र को खाया। खाते समय ही मैंने तय किया कि आज ...Read Moreतुमसे एक फैसला हर हाल में लेने को कहूंगा। लेकिन खाना खत्म होते ही तुमने कहा, 'शाम को फ़ोन पर तुमने कहा था कि, पैर में बहुत दर्द हो रहा है। ठीक ना हुआ हो तो आओ तेल मालिश कर दूं।' तुम्हारी इस बात पर मैं तुम्हें बड़ी देर तक देखता रहा, क्योंकि पहले भी कई बार तकलीफ हुई, लेकिन
भाग -51 एक दिन फैक्ट्री मैनेजर ने अचानक ही तुम्हारे लिए पूछ लिया कि, 'इसकी हालत क्यों खराब हो रही है?' तो मैंने उसे सब बताया। उस दिन उसने जिस तरह से बात की, उससे लगा कि यह ऊपर ...Read Moreभले ही सख्त, रूखे व्यवहार वाला दिखता हो, लेकिन वास्तव में है दयालु। वह बिहार के किसी जिले का रहने वाला था। उसी ने फिर एक बड़े डॉक्टर का पता दिया। कहा, 'अच्छे डॉक्टर को दिखाओ तभी ठीक से पता चल पायेगा कि कौन सी बीमारी है? बीमारी का ठीक-ठीक पता चलने पर ही सही ट्रीटमेंट हो पाएगा।' मैनेजर की
भाग -52 उनकी इस बात से मैं घबरा गया। मैंने सोचा कि इनसे कहूं कि मुझे अंदर तुम्हारे पास जाने दें । आखिर ऐसी कौन सी बात है कि, ना तो तुम दिख रही हो, और ना ही ये ...Read Moreअंदर जाने दे रहे हैं। लेकिन मेरे कुछ बोलने से पहले ही उनके मोबाइल की घंटी बज उठी, उन्होंने अंग्रेजी में बात की। रमानी बहनों के कारण उनकी अंग्रेजी में कही बातों का सारा अर्थ मैं समझ गया था। उन्होंने किसी को सारी बातें बताते हुए जल्दी ही पुलिस के आने की बात कही थी। पुलिस का नाम सुनते ही
भाग -53 मैंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कभी इन बर्छियों का जख्म भरेगा। यह जख्म देने वाले शौहर को कभी भूल पाऊँगी। काश देश में तीन तलाक पर कानून पहले बना होता तो मैं उस नामुराद ...Read Moreमज़ा जरूर चखाती। लेकिन तू ही देख न, सोच न कि जब तेरे साथ सुकून मिला। तुमने बेइंतेहा प्यार दिया । पैसा कमाने का जूनुन शुरू हुआ तो सब भूल गई। खो गई तुझी में। अब तू खुद को ही देख ले ना। जब मुझसे मिला तो शुरू में अपनी छब्बी की कितनी बातें करता था। थकता ही नहीं था।