Koyla bhai na rakh book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Koyla bhai na rakh is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कोयला भई ना राख - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Women Focused
ये कहानी है एक ऐसी बेटी की हैं , जिसने अपने परिवार की खातिर एक ऐसा कदम उठा लिया जो कि किसी साधारण लड़की के वश की बात नहीं थी,पहले तो उसे उसके माँ बाप ने गरीबी की दुहाई देकर उसे इस दलदल में धकेला फिर अपनी ही इज्जत की खातिर उस बेटी से मुँह मोड़ने लगें......
फिर उस बेटी को उस दलदल में धकेलकर उससे किनारा कर लिया और वो लडकी अपनी समस्याओं से सूझती रही ,स्वयं को सम्भालती रही,उसे अपने शरीर से नफरत हो गई थी इसलिए उसने अपने प्रेमी से भी विवाह करने के लिए मना कर दिया,क्यों वो लड़की अपने अतीत को भूलकर अपने जीवन में आगें बढ़ पाईं,देखते हैं कि उस के साथ फिर क्या हुआ?
मुम्बई का नानावती हाँस्पिटल,जहाँ अम्बिका एक प्राइवेट और लग्जरी रूम में अपने बेड से टिककर खिड़की की ओर झाँकते हुए आसमान में उड़ते हुए पंक्षियों को देख रही है और सोच रही है कितने खुश हैं ये ,इन्हें कोई भी सामाजिक बंधन नहीं,जब चाहें किसी भी साथी के साथ फुर्र से उड़ जाते हैं,एक मैं हूँ जिसके पास सब कुछ है,लेकिन इच्छा नहीं है और जीने की,इतनी शर्मिन्दा हूँ मैं स्वयं से कि नज़रें नहीं मिला सकती,निराधार जीवन जिएं जा रही हूँ,
स्टोरीलाइन.... ये कहानी है एक ऐसी बेटी की हैं , जिसने अपने परिवार की खातिर एक ऐसा कदम उठा लिया जो कि किसी साधारण लड़की के वश की बात नहीं थी,पहले तो उसे उसके माँ बाप ने गरीबी की ...Read Moreदेकर उसे इस दलदल में धकेला फिर अपनी ही इज्जत की खातिर उस बेटी से मुँह मोड़ने लगें...... फिर उस बेटी को उस दलदल में धकेलकर उससे किनारा कर लिया और वो लडकी अपनी समस्याओं से सूझती रही ,स्वयं को सम्भालती रही,उसे अपने शरीर से नफरत हो गई थी इसलिए उसने अपने प्रेमी से भी विवाह करने के लिए मना
डाँक्टर शैलजा के जाने के बाद अम्बिका ने बाक़ी के रूपये उठाएं और उन्हें गौर से देखते हुए बोली.... तेरे लिए मैं क्या से क्या बन गई?काश तू इस दुनिया में ना होता तो लोंग इतना नीचें कभी ना ...Read Moreतो ईश्वर का दर्जा ले लिया है,तू ईश्वर तो नहीं लेकिन ईश्वर से कम भी नहीं,क्या क्या नाच नचवाता है तू लोगों को,ख़ैर अब खिलखिला मत मेरे पर्स में जाकर आराम कर और अम्बिका ने उन रूपयों को अपने पर्स में आराम करने के लिए छोड़ दिया और फिर मन में सोचने लगी... स्त्री का घर नहीं होता, वो तो
अम्बिका रात भर सोचती रही और जब सुबह डाक्टर शैलजा उसके पास आई तो वो बोली.... मैनें फैसला कर लिया है डाक्टर! कैसा फैसला? डाक्टर शैलजा ने पूछा।। यही कि मैं उन बच्चों के साथ कुछ दिन रहूँगी,अम्बिका बोली।। ...Read Moreतुमसे ऐसी ही उम्मीद थी,डाक्टर शैलजा बोलीं... लेकिन मेरी एक शर्त है,अम्बिका बोली।। कैसी शर्त? डाक्टर शैलजा बोलीं यही कि मैं भारत छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगीं,अम्बिका बोली।। ठीक है,मैं उनसे बात करके तुम्हें बताती हूँ,डाक्टर शैलजा बोली।। जी! आप बात करके मुझे बताइएं कि वें क्या चाहते हैं? अम्बिका बोली।। और फिर डाक्टर शैँलजा अम्बिका के कमरें से चली गईं,दोबारा
स्त्री का घर नहीं होता, वो तो शरणार्थी है. ये सब बचपन से सुनते आ रही थी कि बेटी पराया धन है, बेटे वंशधर होते है,स्त्री के पास अपना कुछ नहीं होता-ना घर ना सरनेम ना परिवार ना इज़्ज़त ...Read Moreजाति ना धर्म, सब कुछ पुरुष का दिया हुआ, बहुत घबराहट-सी थी मन में पर मैं तो एक मिशन पर निकली थी इससे मन के सारे दूराग्रहों को निकाल फेंक लम्बी सांस ले तन कर बैठ गई, एयरकंडिशन क्लास में बैठने का ये पहला मौक़ा था, रास्ते भर बचपन हिलोरे लेता रहा, कब मुंबई सेंट्रल स्टेशन आ गया पता ही