सोई तकदीर की मलिकाएँ - Novels
by Sneh Goswami
in
Hindi Fiction Stories
देशों में प्यारा , न्यारा , सबसे सुंदर देस पंजाब । पाँच पानियों की धरती । गुरूओं पीरों की धरती । इसी पंजाब के सीमावर्ती इलाके में है कोटकपूरा । कोटकपूरा पंजाब का बङे गांवनुमा कस्बा है जिसमें नवाब कपूर खान का बनवाया कोट यानि किला आज भी मौजूद है और इसके नाम को सार्थक करता है । मुगलों को समयसे ही यह आढत की मंडी रही है । इस कोटकपूरा से तेरह किलोमीटर दूरी पर बसा है मोहकलपुर किसी मोहकल सिंह राजा की बसाई हुई नगरी जिसे आज लोग सूफी संत बाबा फरीद के नाम पर फरीदकोट कहते हैं । इस तेरह किलोमीटर के बिल्कुल बीचोबीच , कोटकपूरा से सात किलोमीटर और फरीदकोट से करीब छ किलोमीटर दूरी पर बसा है एक गाँव संधवां जिसे शायद संधु जाटों ने बसाया होगा । अब यहाँ करीब पचास घर बसते हैं जिसमें सभी जातियों के लोग शामिल हैं । आजकल इस गाँव की ख्याति इस बात से है कि भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह इसी गाँव से थे । अभी भी उनके वंशज इसी गाँव में रहते हैं । उनका घर गुल्लीघङों का घर कहलाता है । गाँव में एक शूगरमिल है । चार पाँच कपास और बिनौले अलग अलग करने की फैक्ट्रियाँ हैं । एक कपास से सूत बनाने की सरकारी फैक्ट्री भी है । गाँव के बाहरवार एक ईंट भट्टा है । एक अदद हाईस्कूल भी है जहाँ हाजरी सिर्फ रजिस्टरों में लगती है । वरना इस गांव के बच्चे या तो स्कूल जाते ही नहीं , दिन भर भैंसों को जोङङ में नहलाने जाते हैं । गलियों में पतंगें उङाते हैं , कंचे या गुल्ली डंडे जैसे खेल खेलते हैं या फिर कोटकपूरा या फरीदकोट के अंग्रेजीदां किसी पब्लिक स्कूल में पढने जाते हैं । हाँ स्टेशन छोटा सा पर खूबसूरत बना है । जहां के बैंचों पर गाँव के बुजुर्ग अधलेटे बतियाते रहते हैं या फिर ताश खेलते हैं ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 1 देशों में प्यारा , न्यारा , सबसे सुंदर देस पंजाब । पाँच पानियों की धरती । गुरूओं पीरों की धरती । इसी पंजाब के सीमावर्ती इलाके में है कोटकपूरा । कोटकपूरा ...Read Moreका बङे गांवनुमा कस्बा है जिसमें नवाब कपूर खान का बनवाया कोट यानि किला आज भी मौजूद है और इसके नाम को सार्थक करता है । मुगलों को समयसे ही यह आढत की मंडी रही है । इस कोटकपूरा से तेरह किलोमीटर दूरी पर बसा है मोहकलपुर किसी मोहकल सिंह राजा की बसाई हुई नगरी जिसे आज लोग सूफी संत
सोई तकदीर की मलिकाएं 2 बेचारा भाई , इतनी जमीन जायदाद है । इतनी बङी महल जैसी हवेली । घर में चार भैंसें और दो गाय बंधी हैं । न दूध खत्म होता है न लस्सी । ...Read Moreइतना कि कोई हिसाब ही नहीं दोनों हाथ से लुटाएँ फिर भी खत्म न हो पर भगवान ने खाने पहनने के लिए कोई वारिस ही नहीं दिया । बसंत कौर का रूप अभी भी दहकता अंगारे जैसा है । बच्चे की आस मन में लिए लिए अब पचास के आसपास तो हो ही गयी होगी । बेचारी पाँच पूरणमाशी
3 अभी तक आपने पढा , सिंधवां फरीदकोट और कोटकपूरा के बीचोबीच बसा एक छोटा सा गाँव है । इस गाँव के जाने माने जमींदार परिवार का बेटा है भोला सिंह उर्फ बलजिंदर । भोला सिंह पचपन साल की ...Read Moreमें नयी शादी करके आया है । गाँव पङोस में इसकी चर्चा है । अब आगे ... बङी बहु कुलजीत ने कहा - बेचारा भाई , इतनी जमीन जायदाद है । इतनी बङी महल जैसी हवेली । घर में चार भैंसें और दो गाय बंधी हैं । न दूध खत्म होता है न लस्सी । पैसा इतना कि कोई हिसाब
सोई तकदीर की मलिकाएँ 4 भोला दोनों भाइयों में बङा था । इस नाते वह शुरू से ही जिम्मेदार था । भोले ने स्कूल से आठवीं पास की थी । वह लंबे तगङे जुस्से का मालिक था । कद ...Read Moreछ फुट । कबढ्डी में उतरता तो जिस टीम की ओर से खेलता , उस टीम का जीतना पक्का होता । गतका खेलने मैदान में उतरता तो लङकियाँ उसकी बांहों की मछलियाँ देख कर होंके भरना शुरु कर देती । दूध घी का शौकीन था । यारों का यार । आठवीं के बाद उसने भी पढाई छोङ दी और बाप
सोई तकदीर की मलिकाएँ 5 अगर एक क्षण की भी देरी हो जाती तो लङकी ने धङाम करके नीचे धरती पर गिर जाना था । गिर जाती तो चोट लग जाती । थोङी देर पहले वह तलवारों की जद ...Read Moreथी । अगर भोले ने न रोका होता तो वह भी अपने परिवार के बाकी सदस्यों की तरह खून के समन्दर में डूबी तङप रही होती । पर उसके नसीब नें इतनी आसानी से मरना नहीं लिखा था । मौत उसे छू कर करीब से लौट गयी थी क्योंकि उसकी सांसों का तानाबाना अभी अधूरा था इसलिए भोले के भीतर
सोई तकदीर की मलिकाएँ 6 भोला सिंह का भूख के मारे बुरा हाल था पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नीचे उतरे इसलिए ऊपर ही बैठा ऊपर से नीचे के हालात का जायजा ले ...Read Moreथा । अभी तक तो स्थिति नियंत्रण में थी पर कब तूफान आ जाए , क्या पता । इसी डर में आज वह पूरा दिन काम का बहाना करके बाहर भटकता रहा था । पूरा दिन बसंत कौर और बेबे के सामने आने से बचता रहा था । पर रोटी तो खानी थी । आखिर उसने हिम्मत जुटाई और
सोई तकदीर की मलिकाएँ 7 चार महीने तक पूरे देश में अफरा तफरी का माहौल रहा । लोग जत्थे के जत्थे पाकिस्तान से आते रहे । फौज के जवान वहाँ फँसे लोगों को मिल्ट्री ट्रक में ...Read Moreभर कर देश में ला रहे थे । हर बङे शहर में शरणार्थी शिविर लगे थे जहाँ इन्हें रखा जा रहा था । सरकार जी जान से इन विस्थापित लोगों की मदद के लिए जुटी थी । लोग रो रहे थे । बिलख रहे थे । अपनी जमीन और जङों से बिछुङे इन लोगों को नये सिरे से बसाना
सोई तकदीर की मलिकाएँ 8 बसंत कौर केसर को उसी तरह नलके के पास बैठा छोङ रोटी के जुगाङ में लग गयी । बेबे जी के लिए यह बहुत बङा सदमा था । उन्हें ब भी न ...Read Moreकी बात पर विश्वास हो रहा था न बसंत कौर की । ऐसा कैसे कर सकता था भोला । केसर वैसे ही घुटनों में सिर दिये बैठी रही । इस बीच उसे दो उल्टियाँ और हो चुकी थी । पीला रंग सफेद हो गया था । वह सोच रही थी , इससे अच्छा वह भी अपने घर वालों के
9 अब तक आप पढ चुके हैं -- सिंधवा गाँव में भोला सिंह अपनी पत्नी बसंत कौर और माँ के साथ सुख पूर्वक रह रहा था । बसंत कौर एक सलीकेदार संभ्रांत महिला है । सब कुछ ...Read Moreसे चल रहा था कि अचानक देश आजाद हो गया । आजादी के साथ आई विभाजन की आँधी । देश तीन भागों में बँट गया । हिंदोस्तान , पाकिस्तान और पूर्वी बंगाल । पाकिस्तान से हिंदु भाग भाग कर हिंदुस्तान आने लगे । फिर पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने लगे । हर तरफ मारकाट मच गयी । औरतों
10 गेजा माया को बुलाने चला गया पर बेबे को चैन नहीं आ रहा । वह बेचैन होकर पूरे घर में घूम रही थी । बार बार दरवाजे तक जाकर गली में देख आती । केसर बेबे ...Read Moreयूँ परेशान होकर उठते बैठते देखती रही । उसे समझ नहीं आया कि अब क्या हो गया वह तो खुश थी कि हर महीने की समस्या से पीछा छूटा । हर बार चार पाँच दिन परेशानी में गुजरते थे । कमर अलग दर्द करती रहती थी । पर ये बुढिया इतनी बेचैन क्यों हो रही है । माया आ
सोई तकदीर की मलिकाएँ 11 गेजे जरा जाकर माया को उसके घर तक छोङ आओ । - बेबे ने गेजे को बुलाया ।जी बेबे जी । अभी जाता हूँ । चलो चाची जी , चलें । ...Read Moreने अपनी साइकिल निकाली । उसके हैंडल पर आटे और गुङ वाले लिफाफे टांगे । कैरियर पर माया को बैठाकर उसके घर छोङने चल दिया । माया तो सारा सामान लेकर चली गयी पर केसर आँगन में ही खङी रह गयी । उसको यह सारा माजरा अभी तक समझ में नहीं आया था । उसने माया और बङी सरदारनी
सोई तकदीर की मलिकाएँ 12 शहर के बङे डाक्टर के जवाब दे देने पर भोला के पास कोई चारा ही नहीं था । वह बेबे को घर ले आया । बेबे की इस अज्ञात बीमारी से घर ...Read Moreमाहौल उदास हो गया था । गम धुआँ बन कर भीतर फेफङों तक भर गया था । हर पल चिंता बनी रहती । क्या बेबे ... ? इसके आगे सोचने से भी उन्हें डर लगता । वे एक झटके से बुरे ख्यालों को बाहर निकाल फेंकते । मन को ईश्वर के चरणों में लगाने की कोशिश करते । सतगुरु
सोई तकदीर की मलिकाएँ 13 केसर के साथ हुए हादसे ने बेबे जी को ऐसा गमगीन कर दिया कि जीवन की कोई भी बात उन्हें चारपाई से उठाने में असमर्थ रही । कोई दवा दाऱू , ...Read Moreदान पुण्य उन्हें ठीक न कर सके । एक गहरी उदासी उन पर हावी हो गयी थी । वे बार बार पछताती । उन्होंने इस गरीब बच्ची को पाकिस्तान भेजने का कोई इंतजाम क्यों नहीं किया । अगर नहीं किया था तो उन्होंने उसकी सुरक्षा के बारे में क्यों नहीं सोचा । भोले पर नजर क्यों नहीं रखी ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 14 वक्त नदी की धारा जैसा होता है । निरंतर प्रवाहमय । चिरंतन गतिशील । हमेशा आगे की ओर बहता हुआ । अब यह लोगों पर निर्भर होता है कि वे बहती नदी में ...Read Moreचाहेंगे या किनारे से सूखे लौट जाएंगे । चुल्लू में पानी भर कर अपनी प्यास बुझाएंगे या उस नदी के बहते पानी में डूब मरेंगे । नदी का काम बहना है । वह सदियों से इसी तरह बह रही है । लोग आते हैं । नदी के पानी से किलोल करते है पर नदी पर कोई प्रभाव नहीं पङता
सोई तकदीर की मलिकाएँ 15 भोले ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसर हाल पूछने आए उससे यूं लिपट जाएगी । उसने घबराकर दरवाजे की ओर देखा । कहीं कोई अचानक कोठरी में आ जाए ...Read Moreउसे तो डूब मरने की जगह भी नहीं मिलेगी । बाहर गेजा घूम रहा है । किसी भी समय इस कोठरी में चला आएगा । चौके में उसकी ब्याहता , इस घर की मालकिन बैठी रसोई का काम कर रही है और यह केसर ... इस समय इस पर पागलपन का दौरा पङा हुआ है । उसने एक झटके
सोई तकदीर की मलिकाएँ 16 पथकन से लौट कर केसर को कोठरी में आते ही अपनी सुबह की बेवकूफी फिर से याद हो आई । उसने अपनेआप को जी भर कर कोसा – ये आज हो क्या ...Read Moreथा उसे । ऐसे कैसे उसने शरम हया बेच खाई थी कि भोले के गले से लिपट गई । गले से चिपकी तो चिपकी , चिपक कर रो भी दी । पता नहीं सरदार ने इस सब का क्या मतलब निकाला होगा । क्या सोचा होगा उसने । यह सब ऊटपटांग बातें उसके दिमाग में आई कहाँ से ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 17 आधी रात तक वह अंधेरी सीलनभरी कोठरी और वह चारपाई भोला और केसर के प्रेम की कहानी सुनती रही । केसर तो शर्म के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी ...Read Moreउसकी तप्ती हुई सांसें उसके प्रेम की साक्षी हो रही थी । सांसों का इकतारा बजता रहा जिसकी धुन पर उनकी देह नृत्य करती रही । देर तक वे एक दूसरे में खोए रहे । आसमान में आधा निकला चाँद और तारे इस महफिल के साक्षी रहे । फिर इन्हें एकान्त देने के लिए चाँद भी कहीं जा कर
सोई तकदीर की मलिकाएँ 18 सूरज हर रोज चढता रहा छिपता रहा । रात आती रही जाती रही । गर्मी आई फिर बरसात आई । वर्षा आई फिर सर्दी दाँत किङकिङाती हुई आई और चली गई ...Read Moreइसी तरह मौसम आते रहे , जाते रहे । जो छोटे बच्चे थे , वे बङे हो गये । जो बङे थे , वे बूढे हो गये । जो बूढे थे , वे परलोक सिधार गये । उनकी जगह नवागतों ने ले ली । इसी तरह दिन सप्ताह में बदले । सप्ताह महीने में और महीने साल में बीत
सोई तकदीर की मलिकाएँ 19 भोला सिंह हर पल जिस सवाल से बचने की कोशिश करता फिर रहा था , अपने मन के सामने भी जिस सवाल को छिपा रहा था , वह सवाल आज उसके सामने ...Read Moreसिंह ने फिर से लाकर खङा कर दिया था । पिछले एक साल से लगातार वह इसी सवाल से जूझ रहा था । जब भी वह अपने खेत में जाता तो दूर दूर तक फैली फसलें देख कर उसके आँसू भर आते । कल इन फसलों का मालिक कौन होगा । जिंदगी का क्या भरोसा ? आज है ,
सोई तकदीर की मलिकाएँ 20 भोला सिंह अब हर पल बेचैन रहता । न उसे रात को चैन आती न दिन में । हमेशा औलाद न होने का दुख उसकी आत्मा पर हावी हो जाता । ...Read Moreसिंह और उसके भाई की बातें उसे टिकने न देती । वह अपने मन को बार बार समझाता कि वह अपनी पत्नी से बहुत मोह करता है । उसे कोई तकलीफ नहीं देना चाहता पर संतान तो उसे चाहिए । और अगर कोई भला परिवार उसे इस उम्र में भी अपनी बेटी के लायक समझता है तो ... ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 21 सुखे के लिए अपनी बहन और जीजा जी की बात को टालना मुश्किल काम था । वैसे भी वह उसके घर की भलाई के लिए ही तो सोच रही थी ...Read Moreउनका मान रखने के लिए उसने कह दिया – ठीक है जैसे तुझे ठीक लगे । सुन कर कंतो की खुशी का ठिकाना न था । वह खुशी खुशी अपने घर गयी । इस बात के बारह दिन बाद पूर्णमाशी थी , उस दिन ये सारा परिवार लङकी देखने उनके शहर गया । लङकी देखने भालने में ठीकठाक थी तो
सोई तकदीर की मलिकाएँ 22 22 उस दिन चरण सिंह और शरण सिंह ने जो भोला सिंह के मन की पीङा सुनी तो मन में एकदम जयकौर का ख्याल आया । इतना अमीर और रसूख वाला सरदार ...Read More। अगर कहीं यह बात सिरे चढ जाय तो उनके दिन फिर जाएंगे । गाँव में होने वाली निंदा चर्चा से भी छुटकारा मिल जाएगा । अभी तो नाते रिश्तेदारी के साथ साथ पूरे गाँव में दंतकथा चल रही है कि भाई और भाभियों को मुफ्त की नौकरानी मिली हुई है तो शादी ब्याह क्यों करेंगे । आँख के
सोई तकदीर की मलिकाएँ 23 रिश्ते की बात तो जब पक्की होगी तब होगी , न भी हो तो कोई चक्कर नहीं । फिलहाल तो ट्रैक्टर का मिलना पक्का हो गया है , यही बहुत बङी बात है ...Read Moreपहले ट्रैक्टर के लिए गाँव के जमींदारों की मिन्नतें करते करते फसल बोने का समय बीतने वाला हो जाता था तब जाकर ट्रैक्टर का जुगाङ हो पाता , वह भी बङा अहसान जता कर । इस बार ट्रैक्टर मिल जाने की उम्मीद तो बंधी , अब फसल समय से बोई जाएगी । - चरण का मन इस समय बल्लियों
सोई तकदीर की मलिकाएँ 24 भोला सिंह मंजे पर लेटा सितारे देख रहा था । इन सितारों में से कोई तारा उसकी बेबे होगी । काश उसकी आवाज ऊपर आसमान तक पहुँच पाती तो वह एक बार ...Read Moreही लेता – बता बेबे , इतनी जमीन जायदाद का क्या करूं । पर बेबे तो सुरगों में चली गयी और भोला सिंह को अभी धरती पर रहना है । तो वह करे तो क्या करे । हाँ करे या न करे । उसकी सारी रात इसी सोच विचार में बीत गयी पर भोला सिंह अपनी सोच से बाहर
सोई तकदीर की मलिकाएँ 25 चारों जन सिर जोङ कर बैठे । सलाह यही बनी कि जैसे भी हो , आज ही यह काम निपटा देना है । कल का क्या भरोसा । बात बिगङने में ...Read Moreलगते हैं । सौ सज्जन तो दो सौ दुश्मन होते हैं । क्या पता , कौन बनी बनायी बात बिगाङने जाय । इसलिए जो होना है , आज ही हो जाय । फैससला होते ही शऱण सिंह तुरंत गुरद्वारे चल पङा । वहाँ उसने भाई जी से दो घंटे बाद आंनंदकारज कराने का आग्रह किया । भाई जी को
सोई तकदीर की मलिकाएँ 26 साढे पाँच बजते बजते जयकौर की विदाई हो गई । दोनों भाभियाँ जयकौर को गले लगा कर रो पङी । पता नहीं ननद के विछोह का गम था या उसके छोङे ...Read Moreको पूरा कर पाने या न कर पाने का डर कि उनके आँसू सूख ही नहीं रहे थे । जयकौर को इस समय अपने माँ बापू बहुत याद आ रहे थे । अगर वे जिंदा होते तो इस तरह अचानक उसे घर से विदा न होना पङता । साथ ही उसे याद रहा था सुभाष जो आज जरूरत के
सोई तकदीर की मलिकाएँ 26 साढे पाँच बजते बजते जयकौर की विदाई हो गई । दोनों भाभियाँ जयकौर को गले लगा कर रो पङी । पता नहीं ननद के विछोह का गम था या उसके छोङे ...Read Moreको पूरा कर पाने या न कर पाने का डर कि उनके आँसू सूख ही नहीं रहे थे । जयकौर को इस समय अपने माँ बापू बहुत याद आ रहे थे । अगर वे जिंदा होते तो इस तरह अचानक उसे घर से विदा न होना पङता । साथ ही उसे याद रहा था सुभाष जो आज जरूरत के
सोई तकदीर की मलिकाएँ 27 जयकौर हवेली के आँगन में हैरान परेशान खङी थी । भोला सिंह उसे हवेली का फाटक पार करा कर पता नहीं कहाँ लापता हो गया था । वह आदमी जो कार चलाकर ...Read Moreयहाँ लेकर आया था , वह भी हवेली में घुस कर कहीं खो गया था । अब वह यहाँ किसी को जानती पहचानती तो है नहीं तो किसी से बात करे । कहाँ बैठे या यों ही खङी रहे । अभी तक कोई द्वार चार के लिए आई नहीं थी और वह खुद ही आँगन तक चली आई थी
सोई तकदीर की मलिकाएँ 28 अमरजीत एक आस से आई थी कि हवेली में घुसते ही उसे कोई नयी नयी जानकारी मिल जाएगी जो वह जाकर अपनी सास को सुनाएगी । पर वह आस तो पूरी न ...Read More, हाँ हवेली की नवी नकोर दुल्हन की झलक उसे मिल गई । उसने आग वाली चप्पन पकङी और घर की ओर निकल गई । उसके आग लेकर जाते ही बसंत कौर सीधी अपने चौबारे में चली गयी । ऊपर जाते ही वह पलंग पर जाकर लुढक गयी और पलंग पर टेढी होकर रोने लगी । वह जाने कब
सोई तकदीर की मलिकाएँ 29 अब तक आपने पढा ...भोला सिंह सिधवा गांव का बङा अमीर सरदार है जिसके खेत गाँव में दूर दूर तक फैले हैं । बङी सी हवेली है । कई गाय भैंसे हैं । ...Read Moreऔर समझदार बीबी बसंत कौर है । नौकर चाकर हैं । दिल बहलाने के लिए और घर के छोटे मोटे काम करने के लिए केसर है । घर में धन दौलत की कोई कमी नहीं है । कमी है तो बस एक कि शादी के बीस साल बीत जाने पर भी उसके कोई औलाद नहीं है । वह आजकल
सोई तकदीर की मलिकाएँ 30 जयकौर और उसका भाई चरण सिंह अंदर कमरे में एकदूसरे से बहस रहे थे । चरण सिंह जयकौर को शांत करने की कोशिश कर रहा था । उसे समझा रहा था ...Read Moreजयकौर पना रोष प्रकट कर रही थी , तब तक बसंत कौर चौंके में सामान इधर उधर करती रही । आखिर बहन भाई का आपसी मसला था । जयकौर के कई गिले शिकवे थे । पर मुश्किल से दो चार मिनट ही बीते होंगे कि चरण सिंह भीतर से तमतमाया हुआ निकला और मेन दरवाजे की ओर बढ गया ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 31 बसंत कौर के जवाब न देने से रख्खी का हौंसला पस्त नहीं हुआ । उसने हाथ नचाते हुए कहा – बाहर निकल कर देखो , सारा गाँव मुंह जोङ जोङ कर बातें ...Read Moreरहा है । इस उम्र में शादी की बात किसी को हजम नहीं हो रही । ऐसे कैसे माँ बाप हैं जिन्होंने यह मेल मिला दिया । माँ बाप नहीं हैं बहन । उन्हें मरे तो दस बारह साल हो गये । दो भाई है । दोनों ब्याहे हुए । बाल बच्चेदार । तभी मैं कहूँ । बेगानी बेटियों को
सोई तकदीर की मलिकाएं 32 भोला सिंह जो बात जयकौर से जानना चाहता था , भाभी के आ जाने से वहीं छूट गयी । भोला सिहं रख्खी के सामने जयकौर से बात न कर सका और घबरा ...Read Moreचौबारे जा चढा । उसे ऊपर भेज कर रख्खी पूजा की तैयारी में जुट गई । सबसे पहले उसने झाङू लाकर चौंका साफ किया । लोटे में साफ पानी लाकर चारों तरफ छिङकाव किया । फिर उसने दो उपले लिए । उन्हें मिट्टी के चप्पन पर रखा । गुग्गल की बत्ती बनाई , धूप जलाई । एक कङछी भर
सोई तकदीर की मलिकाएँ 33 थोङी देर पहले जब गली के बच्चे दोनों भाइयों को बुलाने गये तो चरण सिंह घबरा गया । कहीं जयकौर ने उसके लौट आने के बाद भी रोना धोना जारी रखा हो ...Read Moreउसके रोने धोने से घबरा कर भोला सिंह उसे यहाँ छोङने चला आया हो । जिस तरह से कल वह लङ पङी थी , उससे तो इस बात की संभावना ज्यादा लगती है । यदि ऐसा हुआ तो उसे ट्रैक्टर तुरंत वापिस करना पङेगा । और जमीन खरीदने के लिए मिले पैसे भी खटाई में पङ जाएंगे । या
सोई तकदीर की मलिकाएँ 34 पूरे पाँच दिन अस्पताल में धक्के खाने और जी भर पैसे लुटाने के बाद जब डाक्टर को लगा कि अब निचोङने के लिए मरीज और उसके घर वालों के पास कुछ नहीं ...Read Moreतो उसने मरीज को घर ले जाने की इजाजत दे दी । डाक्टर की बात सुन कर परिवार ने सुख की सांस ही ली थी । इन पाँच दिन रात तो घर के दोनों मर्द सुभाष समेत घर और अस्पताल के बीच चक्करघिन्नी बने हुए थे । बुढिया बच्चों को संभालती संभालती अलग हलकान हुई पङी थी । सुरजीत
सोई तकदीर की मलिकाएँ 35 सुभाष को जैसे ही अपने गाँव की गली दिखाई दी , उसके सुस्त ढीले पङ गये कदमों में गति आ गय़ी । तेज तेज चलते हुए वह गली के मुहाने पर आ पहुँचा ...Read Moreगली में इस समय कोई नहीं था । गाँव के बच्चे या तो आंगनवाङी और स्कूल गये होंगे या गाय भैंसों को जोहङ पर नहलाने के साथ साथ खुद भी पानी में गोते लगा रहे होंगे । पुरुष सब खेतों में होंगे या हाट बाजार करने फरीदकोट गये होंगे और औरतें चूल्हा चौका समेटने , कपङे धोने या अनाज
सोई तकदीर की मलिकाएँ 36 सुभाष वहीं गली में खङा सोच में डूब उतरा रहा था कि रौंदू के कहने का मतलब क्या हुआ । ये जयकौर अचानक बङी सरदारनी कैसे बन गई । आज उसे गये ...Read Moreजमा छ दिन ही तो हुए है । तब तक तो परिवार में कहीं लङका देखने जाने की भी बात नहीं थी । दोनों भाइयों को जयकौर की चिंता है , ऐसा उनकी किसी बात से जाहिर नहीं हो रहा था । फिर अचानक वह बङी सरदारनी कैसे हो गयी और अब ये रज्जी कह गयी कि उसे संदेश
सोई तकदीर की मलिकाएँ 37 37 सुभाष इस समय पूरी तरह से बौखलाया पङा था । जयकौर की शादी हो गयी और उसे पता ही न चला । चार दिन के लिए वह गाँव से बाहर क्या ...Read Moreगया , इतना बङा कांड हो गया । ये उसका मन तीन दिन से शायद इसी लिए उचाट हो रहा था । उसका वहाँ मन ही नहीं लग रहा था । बार बार बेचैनी हो रही थी । घबराहट के मारे बुरा हाल था । जब काबू ही नहीं हुआ तो माँ को वहीं छोङ कर वह गाँव लौट
सोई तकदीर की मलिकाऐँ - 38 बस अड्डे से बातें करते हुए वे गाँव के बीचोबीच आ पहुँचे थे । गाँव के कुछ कच्चे कुछ पक्के घरों के दरवाजें खुले हुए थे मानो सब घर द्वार सुभाष ...Read Moreजी आयां नूं कह रहे हों ।आसमान में एक आवारा बदली इधर उधर भटक रही थी जैसे बरसने के लिए उचित सी जगह ढूंढ रही हो और आगे ही आगे भटक कर चल दी हो । हवा में हल्की ठंडक उतर आई थी । सूरज ने धीरे से किरणों को धरती पर उतार दिया था । उनके धरती पर चहल
सोई तकदीर की मलिकाएँ 39 जब तक सुभाष ने हाथ मुंह धोए , तब तक जयकौर ने चाय बना ली और पीतल के तीन गिलासों में छान ली । चूल्हे के पास रखे छाबे में ( बांस की ...Read Moreरखने वाली छोटी टोकरी ) में दो तीन रोटियाँ पोने में लपेटी हुई रखी थी और पत्थर के कूंडे में थोङी सी ढक कर रखी चटनी । उसने दो रोटियों पर चटनी रखी और सुभाष को रोटी और गिलास भर चाय पकङा दी । सुभाष रोटी खाने लगा तो उसने रस्सी पर टंगा अपना तौलिया उठाया । साथ ही उसका
सोई तकदीर की मलिकाएँ 40 40 सुभाष बस का डंडा पकङ कर खङा खङा अपने भाग्य या दुर्भाग्य के बारे में सोच रहा था । किस्मत ने उसे प्रेम डगर की ओर पहुँचा दिया था । जयकौर ...Read Moreचलते उसकी जिंदगी में आकर उसकी रूह में बस गयी थी । वे हर रोज खेत इकटठे जाते । इकट्ठा ही मिल कर चारा काटते । उनका गट्ठर बनाते और चारा काट कर बातें करते हुए गाँव की फिरनी तक इकट्ठे लौटते . वहां से लग अलग गर लौट आते । इससे ज्यादा लेने के बारे में उसने कभी
सोई त 41 सरोज ने देवर का चेहरा गौर से देखा । वहाँ गहरा प्रेम औऱ दृढ विश्वास साफ दिखाई दे रहा था । सरोज डर गयी । उसने पंजाबी जाटों के इश्क , उस इश्क के चलते बदले ...Read Moreबदले के लिए की गई हत्याऔं के सैंकङों किस्से सुने थे । उसके अपने मायके में रहने वाले बराङों को जैसे ही बहन के किसी लङके के साथ प्रेम संबंध का पता चला , बहन और उसके उस तथाकथित प्रेमी को कुल्हाङी से काट डाला और खुद दोनों का सिर हाथ में उठाए जाकर थाने में पेश हो गये
42 सुभाष की वह सारी रात सोते जागते करवट बदलते बीती । साथ वाले कमरे में भाई रमेश और भाभी सरोज सो रहे थे और बाहर बरामदे में माँ और बुआ भी बातें करती करती खर्ऱाटे भरने लगी थी ...Read Moreसब की जिंदगी में सुख चैन था , एक वही था जिससे नींद चार कोस पर रूठी बैठी थी । वह सारी रात सोचता रहा कि इन हालातों में उसे क्या करना चाहिए । एक तरफ तो उसका हृदय जयकौर के लिए बेचैन था । जयकौर के बोल बार बार उसके कानों में गूंजने लगते और वह उन्हीं में उलझा
43 भोला सिंह खेत में काम करवा कर लौट आए थे । गेजा आते ही नौहरे मे गया और गायों का दूध निकाल कर ले आया । शाम अपने पूरे जौबन पर थी । सूरज अपना दिन का ...Read Moreखत्म करके अब पश्चिम की यात्रा पर निकल पङा था । रात अपनी सितारों जङी चुनरी अपने चौगिर्द बिखेरे धीरे धीरे धरती पर पग बढा रही थी । जयकौर ने आसमान की ओर आजिजी से देखा । सुभाष को संधवा से गये हुए छब्बीस घंटे हो गये थे और अभी तक उसके लौटने की कोई खबर न थी ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 44 सरोज का दिल बुरी तरह से धड़क रहा था । पता नहीं वहाँ सुभाष का क्या हाल होगा । कितना भी भला और सीधा इंसान क्यों न हो , अपनी ब्याहता किसी ...Read Moreके साथ रिश्ता जोड़े , सरेआम गुलछर्रे उड़ाए , यह कौन मर्द बर्दाश्त करेगा । यह जयकौर को भी पता नहीं क्या हो गया है , जायज नाजायज जैसी बातें उसे क्यों नहीं सूझ रही । अच्छे खासे गुरु के सिक्खों की बेटी है , इतनी अक्ल तो उसे होनी चाहिए कि लड़कियों के साथ दो परिवारों की इज्जत जुड़ी
45 उस दिन सुभाष घर से बस अड्डे के लिए निकला । कम्मेआना से साढे दस बजे निकली बस करीब डेढ घंटा चली और बारह बजने से पहले ही संधवा बस अड्डे पर जा लगी । कंडक्टर ने पुकारा ...Read Moreकम्मेआना वालो , उतरो भाई जल्दी । संधवा आ गया है । कंडक्टर के पुकारने पर सुभाष बस से उतरा और धीमे धीमे पैदल चलता हुआ हवेली की ओर चल दिया । रास्ते में कई लोग खेतों में काम निपटा कर घर लौट रहे थे , कुछ लोग इधर उधर आ जा रहे थे पर उसका परिचित कोई नहीं
46 रात को देर से सोने के बावजूद रोज के अभ्यास के चलते सुभाष की नींद अलस भोर में ही खुल गई । उसने धीरे से सिर उठाया और आँगन में झांका । बाहर अभी आसमान सुरमई रंग ...Read Moreही था । सूर्य भगवान ने अपनी बंद आँखें अभी खोली न थी । वे अपना कोहरे का कम्बल लपेटे ऊँघ रहे थे । चाँद अपना काम खत्म करके घर जा चुका था ।तारे लोप हो चुके थे । आसमान में शुक्र तारा अभी भी अपनी पूरी शुभ्रता के साथ चमक रहा था । हाँ सप्तऋषि अपनी चारपाई बिल्कुल
47 सुभाष को यूं बेतहाशा हँसता देख कर जयकौर भी हँसने लगी । दोनों पेट पकङ के इतना हँसे कि हँसते हँसते आँखों से आँसू बहने लगे पर हँसी थमने का नाम ही नहीं ले रही थी तभी ...Read Moreसीढियों पर पदचाप सुनाई दी । आवाज सुनते ही दोनों चौंक उठे । सरदारनी बसंत कौर तो थोङी देर पहले ही गुरद्वारे में गई थी । अभी वहाँ से लौटी न थी तो सीढियों पर यह कौन चल रहा था । ठहाके लगाते वे दोनों एकदम सहम कर चुप हो गये । दोनों की हालत चोरी करते पकङे गये
48 भोला सिंह और सुभाष रोटी खाकर खेत की ओर चल पङे । अभी सुबह के आठ साढे आठ ही बजे थे । धूप अपनी पीली चूनर धरती को ओढा बिछा चुकी थी । सूरज का तेज अभी ...Read Moreनहीं हुआ था इसलिए हवा में न हुमस थी, न गर्मी । मौसम बङा सुहावना था । बङी प्यारी शीतल समीर बह रही थी जिसकी ताल पर पेङ पौधे झूम रहे थे । किसी घर की मुंडेर पर कबूतरों का जोडा आँखें मूंदे गुटर गूं गुटर गूं का सुर छोड रहा था । पेङों की टहनियों पर छाई हुई
49 चिङिया को अपना आहार निगलते देख कर सुभाष दार्शनिक हो गया था । सौभाग्य या दुर्भाग्य क्या है , बस वक्त का फेर । एक का सौभाग्य अक्सर दूसरे का दुर्भाग्य हो जाता है । जैसे शरण ...Read Moreजयकौर के ब्याह के एवज में जमीन और ट्रैक्टर का मालिक हो जाना । जैसे भाइयों के सौभाग्य के बदले जयकौर का भोला सिंह की ब्याहता हो जाना । जैसे जयकौर के हवेली में आ जाने के बाद बसंत कौर ... ।अपनी सोचों में खोया हुआ सुभाष भलविंदर सिंह उर्फ भोला सिंह के पीछे पीछे चलता रहा । करीब
50 सुभाष को पानी के नक्के मोङते , खेत में पानी देते सुबह से शाम हो गई थी । परछाइयां ढलने लगी थी । पंछी अपने घोंसलों को लौटने लगे थे । सूरज धीरे धीरे पश्चिम की ओर मुङ ...Read Moreथा । खेतों में काम करते कामगरों ने भी अपने घरों का रुख कर लिया था । कंधे पर कुदालें फावङे उठाए एक हाथ में ताजा तोङी सब्जी लिए आपस में दुख सुख करते हुए वे अपने अपने घरों की ओर चल दिए थे । निक्के ने सडक से सबको पुकारा – आज के लिए काम बहुत हो गया
सोई तकदीर की मलिकाएँ 51 जयकौर लगी तो हुई थी रसोई के काम धंधे में पर उसका पूरा ध्यान अब भी बाहर के दरवाजे से दिखाई देती खडौंजा सङक पर टिका था । रह रह कर वह ...Read Moreझांक लेती । बीतते वक्त के साथ साथ उसकी झुंझलाहट बढ रही थी । छ बजने को हो आए । सूरज छिपने को है और इस भले बंदे का अभी तक कोई पता ठिकाना नहीं है । सुबह का निकला हुआ है । पीछे की कोई फिक्र ही नहीं है कि कोई पलकें बिछाए बैठा इंतजार कर रहा है ।
52 बसंतकौर को ऊपर चौबारे में भेज कर जयकौर ने ढक कर ऱखी थाली सीधी की और रोटी खाने बैठी पर आज रोटी उससे खाई न गई । शायद जब हम बहुत उदास होते हैं या बेइंतहा खुश ...Read Moreहैं तब हमारी भूख ऐसे ही मर जाती है । जैसे तैसे उसने एक रोटी निगल ली और लोटा भर पानी पी कर उसने बची हुई दोनों रोटियां खल वाले बर्तन में डाल दी । कटोरे की दाल को एक ही सांस में हलक में डाल कर उसने नलके पर जाकर हाथ धोए । केसर उसके रोटी खा चुकने
सोई तकदीर की मलिकाएँ 53 सुबह सुबह भाई को आया देख कर सुभाष खुश होने की बजाय चिंता से भर गया । घर में खैर सुख तो है न । सारे सकुशल हों हे भगवान । बिना ...Read Moreमजबूत कारण के भाई ऐसे कैसे आधी रात को ही घर से चल दिया वह भी बिना कोई सूचना दिए । पर शक्ल से तो सब ठीक लग रहा है । उदास या घबराया हुआ तो दिख नहीं रहा फिर यों अचानक इस तरह चला क्यों आया ।सोचों में डूबा डूबा सुभाष हाथ मुँह धोकर आया और रमेश के पास
54 जयकौर और सुभाष कम्मेआना के लिए घर से निकले और बस अड्डे पहुँच गये । वहाँ पहले से ही बीसेक लोग खङे थे पर न वे उनमें से किसी को पहचानते थे न कोई उन्हें पहचानता था ...Read Moreअगर एक भी उन्हें पहचानने वाला निकल आता तो अब तक उनके पास आकर हजारों सवाल पूछ चुका होता और इस समय जयकौर किसी के भी सवालों का उत्तर देने की मनस्थिति में नहीं थी । करीब दस मिनट के इंतजार के बाद कम्मेआना की बस आकर अड्डे पर लगी । भीङ में से पांच सात आदमी बस में चढे
55 कम्मेआना पहुँचते पहुँचते दिन ढलने लगा था । बस से उतरते ही सुभाष को अपने दो चार दोस्त मित्र मिल गये तो वह वहीं रुक कर उनसे बातें करने लगा । जयकौर ने उसे वहाँ मस्त ...Read Moreतो अकेली ही घर की ओर चल पङी । कदम आगे बढाती थी पर पैर मानो पीछे जा रहे थे । एक एक पैर मन भर का हो गया लगता था । एक महीने से थोङे दिन ऊपर हो गये उसका ब्याह हुए , अगर इसे ब्याह मानें तो , पर अब तक उसके मायके से न तो कोई
सोई तकदीर की मलिकाएँ 56 भाभियों और बच्चों को सौगातों में उलझा छोङ कर जयकौर बाहर निकली और कुछ देर गली में आस पङोस में घूमती रही । सभी घरों में उसकी खूब आवभगत हुई पर उसका ...Read Moreउचाट हो गया था , उचाट ही रहा । वह कहीं भी टिक नहीं रहा था । वह दो दो चार चार मिनट बैठती और अचानक चौंक कर उठ जाती । पङोसने उसे रुकने का आग्रह करती रही । वे उससे उसकी ससुराल के किस्से सुनने के लिए अधीर हो रही थी पर जयकौर मौन रह कर मुस्काती रहती
सोई तकदीर की मलिकाएँ 57 चाँद अपना दामन समेटता हुआ गायब हो गया । तारे पहले ही सोने चल पङे थे । सूर्य देव ने अपना सात घोङों वाला रथ निकाला और जग भ्रमण के लिए चले । ...Read Moreसे सोने के बावजूद जयकौर भोर की पहली किरण के साथ उठ बैठी । नल पर जाकर पानी के छींटे मारे । आँचल के पल्लू से ही मुँह पौंछती हुई जयकौर एक बार फिर दरवाजे से निकल कर गली में निकल आई । गली में लोगों का आना जाना शुरू हो चुका था । लोग उसे वहाँ देख दो
सोई तकदीर की मलिकाएं 58 जयकौर और सुभाष भीतर हाल में पहुँचे । भीतर रंलवे स्टेशन के जनरल वेटिंग रूम जैसा माहौल था । लोगों की भीङ जमा थी । हर एक मरीज के साथ लगभग तीन चार ...Read Moreआए हुए थे । किसी किसी के साथ तो पाँच सात भी । सारे बैंच कुर्सियाँ लोगों से लदी हुई थी । लोग दीवारों से लगे खङे थे । नीचे फर्श पर भी एक दो मरीज और उनके साथ के लोग बैठे थे । रिस्पेशन पर बैठी लङकी उन्हें भीतर आया देख कर देख मुस्कुराई और मेज पर पङी
59 जयकौर को जब तक बस अड्डे पर खङा सुभाष दिखाई देता रहा , वह उसे देखती रही पर जलदी ही वह धुंधला दिखने लगा और फिर आँख से ओझल हो गया । मोटरसाइकिल ऊँची नीची सङक पर ...Read Moreखाती आगे बढती रही । लङके ने मौन तोङने के लिए पूछा –चाची , आप कहीं गयी थी क्या ? हाँ , मायके गयी थी परसों सुबह ।चाचा नहीं गया आपके साथ ? आप अकेली गई थी ?उसके मुँह से निकलने वाला था कि अकेली क्यों , मेरा सुभाष गया था न मेरे साथ पर तुरंत संभली – उन्हें
सोई तकदीर की मलिकाएं 60 जयकौर का वह पूरा दिन सुभाष का इंतजार करते करते बीता । समय काटने के लिए वह सारा दिन खुद को काम में झोंके रही । बस मन में एक उम्मीद थी ...Read Moreशाम होते होते वह आ जाएगा । आखिर दिन ढल गया । शाम हो गई । शाम बीती फिर धीरे धीरे गाँव के आंगन में रात उतर आई । चारों ओर घना अंधेरा छा गया । अमावस की काली बोली रात थी । चाँद को तो आज आना ही न था । चाँदनी के अभाव मे तारे भी अपना
61 दिन धीरे धीरे ऊँचा होने लगा था । सूरज की रोशनी चौगिर्दे फैलनी शुरु हो गई थी । पशुओं की धार निकाली जा चुकी थी । उन्हें चारा डाला जा चुका था । केसर ने नौहरा साफ ...Read Moreके गोबर पाथ दिया था और अब नलके के पास बैठी सर्फ में कपङे भिगो रही थी । बसंत कौर ने दही बिलो ली थी । मक्खन निकाल कर छन्ने में रख दिया था और अब चूल्हे पर परांठा सेक रही थी । भोला सिंह नहा धो कर रोटी खाने बैठा तो बसंत कौर ने धीरे से बात छेङी
सोई तकदीर की मलिकाएं 62 गेजा दिन ढलने से पहले कम्मेआना जाकर लौट आया । आकर उसने भोला सिंह और बसंत कौर को बताया कि सरदार जी , सुभाष तो घर गया ही नहीं । परसों ...Read Moreकम्मेआना से कोटकपूरे वाली बस ली और छोटी सरदारनी के साथ ही बस में सवार हुआ था । उसके बाद का गाँव में किसी को कुछ पता नहीं । उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि वह यहाँ छोटी सरदारनी जी को बस अड्डे पर उतार कर कहीं चला गया है । आपके दिए पैसे मैंने माँ को पकङाए
63 हवेली में जिंदगी फिर से सामान्य हो चली थी । दिन पहले की तरह निकलता और छिप जाता । रात पहले की तरह उतरती और अंधेरा बिखेर कर चली जाती । नौकर चाकर पहले की तरह खेत ...Read Moreमें मजदूरी कर रहे थे । गेजा और जोरा उसी तरह से हवेली की गाय भैंसों की देखभाल कर रहे थे । केसर उसी तरह से हर रोज नौहरा साफ करती , पाथियां , उपले बनाती , बरतन मांजती , कपङे धोती और जब खाली होती तो चरखा कातती । बसंत कौर और भोला सिंह भी पहले की तरह
64 बसंत कौर चारपाई के पास हैरान परेशान खङी थी । रात तो जयकौर भली चंगी थी । रौटी बनाई सबको खिलाई । दूध समेटा । फिर सब सोने चले गये । रात रात में ऐसा भाना ...Read Moreगया । जयकौर ये दुनिया छोङ कर जा चुकी थी , इस बात पर बसंत कौर को विश्वास करना कठिन था पर सच को झुठलाया कैसे जाय । सामने जमीन पर जयकौर लेटी थी अडोल , निश्चल । उसी तरह जैसे पहले दिखती थी । वैसा ही रूप रंग । राई रत्ती भी अंतर नहीं आया था । केसर
65 चरण सिंह रह रह कर गुस्से से तिलमिला रहा था । कितने अरमान से उसने अपनी बहन का ब्याह यहाँ इस घर में किया था । सोचा था , जयकौर वहाँ हवेली में राजरानी बन कर रहेगी और ...Read Moreभी राज कराएगी । खुद भी सोने से मढी रहेगी और अगर किस्मत ने साथ दिया तो अंग्रेज और छिंदर के बदन पर भी गहने सजने लगेंगे । पर इस बेअकल लङकी ने सब मटियामेट कर दिया । भला उस मेहरो के लङके को यहाँ हवेली में ला कर बसाने की क्या जरूरत थी । पता नहीं कब से