ख़ौफ़ की वो रात - Novels
by Vaidehi Vaishnav Vatika
in
Hindi Fiction Stories
घोर काली अंधियारी रात...दूर -दूर तक रोशनी का बिंदु तक नज़र नहीं आ रहा। रात मानो काले सागर सी चारों ओर लहरा रही हो , उस पर सांय - सांय करती हवा का शोर और शोर से खड़कते सूखे ...Read Moreबदन में कपकपी पैदा कर रहे थे। हर कदम पर ख़ौफ़ औऱ जान का ख़तरा बरकरार था।
मन कौस रहा था उस पल को जब वह कॉल आया था कि जल्दी मुझसें मिलने आ जाओ , कुछ बहुत जरूरी बात बतानी है।
उत्सुकता भी लालच से कम नही होती। हम निकल पड़ते है बिना सोचे - समझे महज यह जानने के लिए कि आखिर माजरा क्या है .?
भले ही खोदो पहाड़ निकले चुहिया पर हम तो ऐसे मशक्कत करने लगते है जैसे किसी ने खजाने का पता बता दिया हो। पर आज यदि आकाशवाणी भी मुझसें कहे कि इस घने जंगल में खजाना गड़ा हुआ है तो भी मैं कहूंगा कि कृपया खजाने की बजाय यहाँ से बाहर जाने का रास्ता बताएं।
मन को स्थिर रखने के लिए हास्य - विनोद , तर्क - वितर्क सब व्यर्थ लग रहें थे। बस एक रस से मन भर रहा था और वो है भयानक रस। जहन में डरावनी आवाजों का शोर सुनाई दे रहा था जो वास्तव में आ ही नहीं रही थी। मन जब भयभीत होता है तभी सारी भूतिया फिल्मों के सीन याद आने लगते है ,जो मन को और अधिक ख़ौफ़ज़दा कर देते है।
घोर काली अंधियारी रात...दूर -दूर तक रोशनी का बिंदु तक नज़र नहीं आ रहा। रात मानो काले सागर सी चारों ओर लहरा रही हो , उस पर सांय - सांय करती हवा का शोर और शोर से खड़कते सूखे ...Read Moreबदन में कपकपी पैदा कर रहे थे। हर कदम पर ख़ौफ़ औऱ जान का ख़तरा बरकरार था। मन कौस रहा था उस पल को जब वह कॉल आया था कि जल्दी मुझसें मिलने आ जाओ , कुछ बहुत जरूरी बात बतानी है। उत्सुकता भी लालच से कम नही होती। हम निकल पड़ते है बिना सोचे - समझे महज यह जानने
अब तक आपने पढ़ा कि एक लड़का अपने दोस्त के बुलावे पर चला आता है , और घने जंगल में भटक जाता है। रात गहरा जाती है औऱ उसे काली अंधियारी रात में दो चमकती आंखे दिखती है।अब आगें....बस ...Read Moreही दिखाई दे रही थी। ये भी पहचान पाना मुश्किल था कि यह आँखे इंसान की है या हैवान की। बड़ी भयानक आँखे लग रही थीं। मैं पैर को सिर पर रखकर वहाँ से भागा।अब भी लग रहा था कि वह आंख मुझें ही घूर रही है। दौड़ते - दौड़ते मैं एक कुँए के पास पहुंच गया। लगातार भागने के
अब तक आपने पढ़ा - अपने दोस्त गौरव के बुलाने पर राहुल उससे मिलने चला आता है और फ़िर घने जंगल में भटक जाता है। कुछ देर बाद उसे एक महिला मिलती है जो राहुल को एक जर्जर से ...Read Moreतक ले आती है।अब आगें...हम्म...हुंकार में उत्तर देकर मैं चुपचाप उस महिला के पीछे चलता रहा। थकान से अब मन ने सोचना भी बंद कर दिया। कुछ ही देर बाद हम एक जर्जर से मकान के सामने पहुंच गये।सिर से लकड़ियों का गट्ठर गिराकर वह महिला बोली - लो साहब आ गया घर । आप मुंह हाथ धोकर आराम करो
अब तक आपने पढ़ा - राहुल अधेड़ उम्र की महिला के साथ एक जर्जर से मकान में आ जाता है।अब आगें...अरे साहब ! हम है मुड़िया । माचिस की तीली खत्म हो गई है। आपके पास माचिस है क्या ...Read Moreमेरा दिल जोर- जोर से धड़क रहा था। हाथ-पैर कांप रहे थे। मैंने कांपते हाथों से अपनी जीन्स की दोनों जेब टटोली । एक जेब मे लाइटर मिल गया। लाइटर देते हुए मैंने उस महिला से कहा - माचिस नहीं है इसी से काम चला लो। "हो साहेब" - लाइटर लेकर वह महिला कमरे से बाहर चली गई। मैं फ़िर
अब तक आपने पढ़ा राहुल जंगल की ओर चल पड़ता है जहां उसका सामना भूतिया मुड़िया से हो जाता है।अब आगें...महिला ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया। जैसे-जैसे हाथ आगे बढ़ता उसकी लम्बाई भी बढ़ती जाती। हाथ राहुल के ...Read Moreतक आया । राहुल हिल पाने में भी असमर्थ था जैसे वह जम गया हो , जैसे किसी ने उसे कसकर बांध दिया हो। हाथ गले तक आया लेकिन गले के पास आते ही हाथ ऐसे थर्राया जैसे बिजली का झटका लग गया हो। हाथ तेज़ी से पीछे चला गया और उसी के साथ वह आकृति भी जो कुँए की
अब तक आपने पढ़ा- मुड़िया के रूप को देखने के बाद गौरव की तलाश में राहुल एक बार फिर से उसी जर्जर मकान के पास जाता है।अब आगें....रात के क़रीब ढाई बज रहे थे। रात और गहरा गई थी। ...Read Moreमे जल रहे लालटेन बुझ गए थे। चारों और घुप्प अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था।जो होगा देखा जाएगा ऐसा सोचकर मन को मजबूत करके राहुल ने घर मे प्रवेश किया।वह सबसे पहले रसोईघर में दाखिल हुआ। चूल्हें में अब भी गर्म नारंगी अंगारे दहक रहे थे। चूल्हे पर रखी हांडी से राहुल ने ढक्कन हटाया तो गर्म भाँप के
अब तक आपने पढ़ा कि राहुल अपने दोस्त गौरव की तलाश में फिर से उसी घर मे आ जाता है जहां उसे मुड़िया लेकर आई थी। तलाशी के दौरान राहुल को कई सुराख़ मिलते हैं और रहस्यमयी सीढ़िया भी ...Read Moreदेती है।अब आगें...राहुल ने लालटेन लिया और सीढ़ी उतरने लगा। यह तहखाना जरूर बहुत से रहस्यों से पर्दा उठाएगा ऐसा सोचकर राहुल तेज़ कदमो से सीढी उतरने लगा। वह दो-चार सीढ़ी उतरा ही था कि अचानक उसका पैर फिसल गया और लुढ़कता हुआ वह तहख़ाने के फ़र्श पर आ गया। लालटेन का कांच टूट गया और उससे केरोसिन रिसकर फ़र्श