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Nafrat ka chabuk prem ki poshak by Sunita Bishnolia | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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नफ़रत का चाबुक प्रेम की पोशाक by Sunita Bishnolia in Hindi
Novels

नफ़रत का चाबुक प्रेम की पोशाक - Novels

by Sunita Bishnolia Matrubharti Verified in Hindi Love Stories

(34)
  • 12.7k

  • 27.2k

  • 3

पूरे मोहल्ले में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो 'म्माली' काकी को जानता नहीं था या उनसे बातचीत नहीं थी। मैं समझने लगी तब उनकी उम्र पचास -पचपन की रही होगी। ...Read More नाटा कद, तीखे नयन-नख्श और गेहुंआ रंग। दोनों हाथों में चांदी के एक-एक कड़े कड़े । जिन्हें देख-देख जिया करती थी काकी मैंने कभी ना उन कड़ों को हाथ से उतारते देखा ना कभी बदलते । कुर्ती-कांचली और घेरदार घाघरे पर सदा हल्के रंग की ओढ़़नी उन पर खूब फबती थी। तेल पिला-पिलाकर चूं-चर्र की आवाज करती चमकती हुई जूतियां पहनकर जिधर से भी वो निकलती उनके सम्मान में लोग हाथ जोड़ दिया करते । उम्र के इस दौर में भी जब वो हँस दिया करती तो सबको बाँध लेती थी अपने आकर्षण में । सुबह आठ बजे तक घर के सारे काम निपटा लेती और जैसे ही ‘बन्ने खाँ’ को आवाज लगाती, बन्ने खां भी हिनहिना उठता। बन्ने खां को तांगे से जोतकर माली काकी हाथ में हंटर लेकर बैठ जाती तांगे की ड्राइविंग सीट पर और निकल पड़ती सवारी को हाँक लगाती। सुबह आठ बजे की घर से निकली माली काकी दोपहर को साढ़े-बारह-एक बजे स्कूल के बच्चों की फिक्स सवारियों को घर छोड़ते हुए आती अपने घर। घर आते ही बीमार बेटे को खाना खिलाती और थोड़ी देर आराम करके तीन साढ़े तीन बजे तक फिर निकल जाती रेलवे स्टेशन की तरफ जहाँ बाहर से आए यात्रियों को मंजिल तक पहुँचाती। स्टेशन पर दो तीन फेरों के बाद साढ़े छह-सात बजे के बीच वापस घर आ जाती और बीमार बेटे को संभालती ।

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नफ़रत का चाबुक प्रेम की पोशाक - Novels

नफ़रत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 1
नफ़रत का चाबुक प्रेम की पोशाक पूरे मोहल्ले में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो 'म्माली' काकी को जानता नहीं था या उनसे बातचीत नहीं थी। मैं समझने लगी तब उनकी उम्र पचास -पचपन की रही होगी। नाटा कद, ...Read Moreनयन-नख्श और गेहुंआ रंग। दोनों हाथों में चांदी के एक-एक कड़े कड़े । जिन्हें देख-देख जिया करती थी काकी मैंने कभी ना उन कड़ों को हाथ से उतारते देखा ना कभी बदलते । कुर्ती-कांचली और घेरदार घाघरे पर सदा हल्के रंग की ओढ़़नी उन पर खूब फबती थी। तेल पिला-पिलाकर चूं-चर्र की आवाज करती चमकती हुई जूतियां पहनकर जिधर से
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 2
माली काकी ने अपने घर के बाहर एक घंटी टांग रखी थी और एक रस्सी से उसे बांध रखा था रस्सी का दूसरा छोर उसने बेटे की खाट से बांध रखा था ताकि जरूरत पड़ने पर वो उसे खींच ...Read Moreघंटी बजा दे। उसका बेटा यों तो लगभग तीस साल का था परन्तु दिमाग बच्चों की तरह था। वह ठीक से बोल नहीं पाता था और चल भी नहीं पाता। एक खाट पर ही लेटा रहता था। बहुत ही कम बार ऐसा हुआ कि उसने उस घंटी को बजाया हो। वो बहुत समझदार बच्चे की तरह उस खाट पर सोया
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 3
कमरे के अन्दर लाने से पहले माली काकी उसके हाथ पैर अच्छी तरह से धोती थी। पड़ौस के लड़के भी इतने सब्र वाले थे कि वो उसके सारे काम होने तक वहीं रहते और उसे बिस्तर पर सुलाकर ही ...Read Moreआते। वो सारे बच्चों के लिए कभी बेर, कभी भुने चने, कभी इमली तो कभी चूर्ण की गोलियाँ लेकर आया करती थी। सारे बच्चे अपने अपने हिस्से की चीज़ लेकर ही वापस आते थे। लड़कों के जाने के बाद उसे भी कुछ ना कुछ खिला देती और कुछ देर बेटे के सिर पर हाथ फेर कर माथा चूमती थी और
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 4
"मुझे छोड़ गए बालम..! " विरह-वेदना की तड़प, उनके कंठों से निकले इस गीत में करूण पुकार खुद सुना जाती दास्तान प्रियतम के धोखे की । वो तड़प, वो सिसकियाँ सुनकर मोहल्ले भर की औरतें उस ओर खिंची चली ...Read Moreउनके गीतों में डूबकर वो भूल जाती कि वो काकी के दुख तकलीफ को बांटने आईं हैं और सभी महिलाएं काकी का संबल बनने की बजाय बैठ जाती उनके चारों ओर गीत सुनने । औरतें ही नहीं वरन मोहल्ले भर की लडकियाँ भी मंत्रमुग्ध हो सुनती थी काकी के गीत। आसपास बैठी औरतों की उपस्थिति से अनजान दीवार पर टंगी
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 5
काका की बात बताते समय उनके चेहरे पर दुख या पीड़ा का कोई भाव नहीं होता। वो तो भावों में बहती हुई डूब जाती थी पुराने दिनों में और बताती - "थारे काका खूब चाहते थे मैंने। कोई ना ...Read Moreबहाना सूं राणी सा री बग्घी रोज म्हारै घर रै सामणै रोकता था ।" हम लड़कियाँ भी कम नहीं थी हम भी पूछ बैठते -‘‘अच्छा..! काकी, काका आप के घर के सामने से रोज निकलते तो क्या आप भी उन्हें देखने के लिए बाहर आती थी।’’ हमारी बात सुनकर काकी शर्म से लाल हो जाती और कहती- ‘‘धत् छोरियों थारा
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 6
काका के बारे में बताते हुए काकी गर्व से कहती - "बड़े लोगों में उठना - बैठना था तुम्हारे काका का। अच्छी नौकरी करते थे और इतने खूबसूरत थे कि जोधपुर में हर कोई उनसे अपनी बेटी का निकाह ...Read Moreचाहता। मेरी जेठानी का तो लाडला देवर था तुम्हारा काका। अपनी भाभी की कोई बात नहीं टालते थे ये और भाभी भी इन पर जान हाजिर कर देती। इसीलिए वो हर हाल में अपनी बहन से तुम्हारे काका का निकाह करवाना चाहती थी.... ।’’ कहते-कहते काकी वहीं अटक जाती इस पर हम लड़कियां बोल पडती... ‘‘पर हमारे काका का दिल
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 7
बड़ी बहनों के बारे में बताने के बाद काकी अपने बारे में बताते हुए कहती हैं - " मैं अब्बू के साथ दुकान पर बैठती थी इसलिए कभी-कभी पहाड़ी वाले मंदिर पर फूल पहुँचाने जाती थी। वहाँ भजन और ...Read Moreसुनती तो मैं भी गुनगुनाने लगती थी वहाँ सभी मेरी आवाज़ की तारीफ करते थे । वापसी में रास्ते में आते हुए रेडियो पर बजने वाले गीत सुनती और उनमें डूब कर खुद गाने लगती थी। अब्बू मेरी आवाज की बहुत तारीफ करते और अलग-अलग गीत सुनाने की फरमाइश करते। अब्बू कहते मैं मीरा बाई के भजन बहुत ही अच्छे
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 8
'‘जुबैदा! आपका नाम है जुबैदा... वो तो आपके तांगे पर लिखा है तो क्या ये वही तांगा है।’’ ये जानकर हमारे आश्चर्य और जिज्ञासा की सीमा न रही। तो काकी भी जैसे अपनी हर दास्तां सुनाने के लिए तैयार ...Read Moreवो बिना रुके बोली -‘‘निकाह के साल भर बाद ही अल्लाह के फ़ज़ल से बेटी रुखसार गोद में आ गई और रुखसार के सालभर का होते -होते तुम्हारे भाई बाबू हमारी कोख में आ गए।’’ काकी की आँखों में छाई उदासी और बैचेनी हमें कुछ भी बोलने या पूछने से रोक देती इसलिए हम लड़कियाँ चुपचाप काकी के बोलने का
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 9
सुबह उठी तो देखा तुम्हारे काका ने मेरा सामान दो-तीन थैलों में भरकर रखा हुआ है और मेरे बाहर आते ही मुझे बानो से मिलाते हुए कहा - " जुबैदा बानो को तो जानती हो ना तुम!" बानो तो ...Read Moreजेठानी की छोटी बहन थी भला उसे कैसे ना जानती मैं, हमारी शादी के बाद हर तीसरे दिन तो घर आ जाती थी। हाँ पिछले सात आठ महीनों में ना जाने ऐसा क्या हुआ कि वो नहीं आई। मैं कुछ बोलती इससे पहले ही राशिद बोल पड़े -" मैंने बानो से निकाह कर लिया।" ये सुनकर मैं आवाक रह गई
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 10
"जब मैंने रुखसार को दादी के सीने से अलग करने की कोशिश की तो वो जोर-जोर से रोने लगी उसका रोना सुनकर मेरे जेठ भागकर अपने कमरे से बाहर आए। वो सुबह छह बजे ही घर से बाहर चले ...Read Moreकरते थे इसलिए उनके यहाँ होने का अंदाजा भी मुझे नहीं था। जैसे ही जैठ रुखसार को गोदी में लेने लगे मेरी जेठानी चिल्लाई - ‘‘खबरदार जो इसे हाथ लगाया, ये लो अपनी बानो के बेटे को संभालो।’’ जेठानी के रोकने पर मेरे जैठ के तो जैसे पंख कट गए हो वो घायल परिंदे की भाँति तड़प उठे और मेरे
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 11
घर की स्थिति देखकर कई बार सोचती थी कि राशिद के घर जाकर अपने सारे जेवर ले आऊँ ताकि आपा की कुछ मदद कर सकूं पर ऐसा करने से आपा ने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि चाहे ...Read Moreमर जाएंगे पर अब हम उस घर की तरफ थूकेंगे भी नहीं। एक दिन बहुत तेज बरसात हो रही थी और मैं कमरे की खिड़की से बाहर देख रही थी मैंने देखा कि भंवर बाबो -सा छाता लेकर जल्दी-जल्दी कहीं जा रहे थे। पर इतनी तेज़ बरसात में आगे नहीं जा पा रहे थे और वो हमारी दुकान के बाहर
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 12
मुझे घर आया देखकर आपा की जान में जान आई। उन्होंने इतनी देर लगाने पर मुझे थोड़ा डाँटा भी। मुझे पता था कि ये आपा की डांट नहीं बल्कि मेरे लिए उनकी परवाह है इसलिए उनका डांटना मुझे बिल्कुल ...Read Moreनहीं लगा और मैं मुस्कुराते हुए बड़ी आपा के गले लग गई। मेरे ऐसा करने से आपा का गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने धीरे से मेरे गालों को खींचकर हल्के हाथ से मेरी पीठ पर मारा और मेरे माथे को चूम लिया। आपा का अच्छा मिजाज देखकर मैंने आज का किस्सा सुनाते हुए छह आने बड़ी आपा के हाथ
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 13
‘‘ मेरी जुबैदा तुम से बेइतहां मुहब्बत करता हूं, मै फिर भी आज तुम से एक बहुत बड़ा धोखा करने जा रहा हूं । माफ करना मेरी जान। आज बानो से निकाह कर रहा हूं, अगर मैंने ऐसा नहीं ...Read Moreतो मेरी दोनों छोटी बहनों का घर उजड़ जाएगा । बेघर करवा देगी ये मेरी बहनों को अपनी बहनों की खुशी के लिए ही मैंने ये कदम उठाया है मुझे माफ करना। जब तक तुम इस खत को पढ़ोगी तब तक मैं इस दुनिया से दूर जा चुका हूंगा। अगर तुमने मुझसे सच्चा प्यार किया है तो अम्मी और भाईजान
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 14
फिर भी मैं जीती रही,बिरह की आग में तड़पती रही अपने बच्चों को छाती से चिपकाए। जब उसे अपने बच्चे याद नहीं तो मैं क्यों सोचूँ उसके बारे में । मैंने उस खत के बारे में सोचना बंद कर ...Read Moreऔर लग गई अपने बच्चों और अपनी बहनों की ठीक से परवरिश के लिए कमाने के लिए। एक दिन मैं किसी सवारी को छोड़ने रेलवे स्टेशन गई थी। वहाँ मेरी जेठानी और बानो कहीं जा रही थी। उन्होंने मुझे नहीं देखा क्योंकि मैं सवारी को उतारकर जूती गठाने के लिए रुक गई थी। वहीं वो दोनों आपस में किसी बात
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 15
घर बाहर कुछ देर इंतजार करने के बाद हम वापस तांगे पर बैठ गए तो अचानक देखा कि चारदीवारी के अंदर चर्र की आवाज से दरवाजा खुला उसमें से धीरे-धीरे चलकर अम्मी बाहर आई और बरामदे के एक कोने ...Read Moreकुछ रखकर फिर अन्दर जाने लगी। अम्मी को देखकर मेरी आँखों से आँसू बह निकले क्योंकि डेढ़ साल में ही अम्मी की हड्डियाँ बाहर आ चुकी थी वो इतनी पतली और बूढ़ी दिखाई दे रही थी कि उन्हें पहचाना भी मुश्किल हो गया था। वो वापस अंदर दरवाजा बंद कर ले इससे पहले मैंने तांगे पर बैठे-बैठे ही उनको आवाज
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 16
राशिद ने खत में आगे लिखा - "भाई जान आप मुझे माफ कर देना। अम्मी, अल्लाह ताला ये गुज़ारिश करना कि अगले जनम में आप ही का बेटा बनूं।" सुबह जब राशिद घर में नहीं मिला तो इन बहनों ...Read Moreइसमें हम माँ-बेटे की चाल बताकर बहुत मारा मुझे तब मैंने वो ख़त इनके मुँह पर मारा। इन्होंने भी बहुत ढूंढा राशिद को पर वो कहीं नहीं मिला..ये दोनों आज भी राशिद की तलाश में घूमती रहती हैं। घर चलाने के लिए मेरे सारे जेवर बेच दिए इन्होंने। अम्मी के मुँह से राशिद के लापता हो जाने की बात सुनकर
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 17
नफ़रत के उस चाबुक की मार ने मेरे हँसते खेलते बाबू को हँसने से भी लाचार कर दिया। आखिर में सभी डाक्टरों ने हाथ ऊपर कर दिए और कह दिया कि अब ये कभी चल फिर नहीं सकेगा। माथे ...Read Moreगहरी चोट लगने के कारण इसका दिमाग जहाँ था वहीं रहेगा। मैंने इसमें भी अल्लाह की मर्जी मानी और दिल से सेवा करने लगी अपने बाबू की। मैं चाहती थी कि मैं फिरदौस के खिलाफ़ थाने में रपट लिखवा दूँ पर राशिद की बहनों का ख्याल कर रह जाती। अम्मी और मुझे उम्मीद थी कि राशिद एक दिन जरूर वापस
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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 18
बीमारी के कारण फिरदौस की फूफी का भी इंतकाल हो गया था इसलिए अब उनकी बहुएं यानी मेरी ननदें भी हमारे पास मिलने आने लगीं। इस बात का फिरदौसा को पता चला तो उसने बहुत बखेड़ा खड़ा कर दिया। ...Read Moreसब कुछ ठीक था पर फिरदौस के इरादों से डरकर मैं और अम्मी यहाँ अजमेर आ गए। ये घर राशिद के नाना का है। अम्मी के अलावा उनका और कोई नही था। इसलिए उन्होंने ये घर अम्मी को दिया और अम्मी ने मुझे। हम जोधपुर से अजमेर इसी घोड़ा गाड़ी में आए थे। सफर लम्बा था और डरावना था। हमने
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