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Manto ki Shreshtha Kahaniyan - 2 by Saadat Hasan Manto | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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मंटो की श्रेष्ठ कहानियाँ - 2 by Saadat Hasan Manto in Hindi
Novels

मंटो की श्रेष्ठ कहानियाँ - 2 - Novels

by Saadat Hasan Manto Matrubharti Verified in Hindi Short Stories

(510)
  • 28.1k

  • 82.9k

  • 51

दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। ...Read Moreबाज़ारों में मुसल्लह पुलिस की गशत एक अजीब हैयत नाक समां पेश कर रही थी। वो बाज़ार जो सुबह से कुछ अर्सा पहले लोगों के हुजूम से पुर हुआ करते थे। अब किसी नामालूम ख़ौफ़ की वजह से सूने पड़े थे शहर की फ़िज़ा पर एक पुर-इसरार ख़ामोशी मुसल्लत थी। भयानक ख़ौफ़ राज कर रहा था।

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तमाशा

(22)
  • 2.1k

  • 6k

दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। ...Read Moreबाज़ारों में मुसल्लह पुलिस की गशत एक अजीब हैयत नाक समां पेश कर रही थी। वो बाज़ार जो सुबह से कुछ अर्सा पहले लोगों के हुजूम से पुर हुआ करते थे। अब किसी नामालूम ख़ौफ़ की वजह से सूने पड़े थे शहर की फ़िज़ा पर एक पुर-इसरार ख़ामोशी मुसल्लत थी। भयानक ख़ौफ़ राज कर रहा था।

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तरक़्क़ी पसंद

(15)
  • 995

  • 3.1k

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की ...Read Moreऔर मक़बूलियत और भी ज़्यादा हो जाएगी।

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तस्वीर

(16)
  • 822

  • 2.2k

“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं” “सब के सब?” “हाँ, सब के सब आप को आज उन के मुतअल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आगया।” “मैं उन का बाप हूँ” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो” ...Read Moreआज इतनी ख़फ़ा क्यों हो मेरी समझ में नहीं आता, घड़ी में रत्ती घड़ी में माशा हो जाती हो दफ़्तर से थक कर आया हूँ और तुम ने ये चख़ चख़ शुरू करदी है बेहतर था कि मैं वहां दफ़्तर ही मैं पंखे के नीचे आराम करता।”

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ताँगेवाले का भाई

(21)
  • 888

  • 2k

सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब ...Read Moreबड़े ज़ोर का क़हक़हा लगाया “मंटो साहब मेरी ज़िंदगी दिलचस्प वाक़ियात से भरी पड़ी है कौन सा वाक़िया आप को सुनाऊं ”

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ताउन

(20)
  • 883

  • 2.3k

चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमीयों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उस ने बुलवाइयों ...Read Moreलीडराना अंदाज़ में मुख़ातब किया। “भाईओ, इस मकान में बे-अंदाज़ा दौलत है। बे-शुमार क़ीम्ती सामान है। आओ हम सब मिल कर इस पर क़ाबिज़ हो जाएं और माल-ए-ग़नीमत आपस में बांट लें”।

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तीन में ना तेरह में

  • 815

  • 2.8k

“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में” “अब तुम ने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिए।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ुर्गवार तो ...Read Moreपंजाबी थे। अल्लाह उन्हें जन्नत नसीब करे बड़े मरंजां मरंज बुज़ुर्ग थे। मुझ से बहुत प्यार करते थे। इतनी देर लखनऊ में रहे, वहां पच्चीस बरस उर्दू बोलते रहे लेकिन मुझ से हमेशा उन्हों ने पंजाबी ही में गुफ़्तुगू की। कहा करते थे उर्दू बोलते बोलते मेरे जबड़े थक गए हैं अब इन में कोई सकत बाक़ी नहीं रही।”

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तीन मोटी औरतें

(26)
  • 1.8k

  • 6.5k

एक का नाम मिसिज़ रचमीन और दूसरी का नाम मिसिज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस हिकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। इन तीनों की उम्र चालीस ...Read Moreलग भग थी। और ज़िंदगी के दिन मज़े से कट रहे थे। मिसिज़ सतलफ़ के ख़द्द-ओ-ख़ाल मोटापे की वजह से भद्दे पड़ गए थे। उस की बाहें कंधे और कूल्हे भारी मालूम होते थे। लेकिन इस उधेड़ उम्र में भी वो बन संवर कर रहती थी। वो नीला लिबास सिर्फ़ इस लिए पहनती थी कि उस की आँखों की चमक नुमायाँ हो और बनावटी तरीक़ों से इस ने अपने बालों की ख़ूबसूरती भी क़ायम रख्खी थीं।

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दस रूपये

(22)
  • 1.1k

  • 3.3k

वो गली के उस नुक्कड़ पर छोटी छोटी लड़कीयों के साथ खेल रही थी। और उस की माँ उसे चाली (बड़े मकान जिस में कई मंज़िलें और कई छोटे छोटे कमरे होते हैं) में ढूंढ रही थी। किशोरी को ...Read Moreखोली में बिठा कर और बाहर वाले से काफ़ी चाय लाने के लिए कह कर वह इस चाली की तीनों मंज़िलों में अपनी बेटी को तलाश कर चुकी थी। मगर जाने वो कहाँ मर गई थी। संडास के पास जा कर भी उस ने आवाज़ दी। “ए सरीता........ सरीता!” मगर वो तो चाली में थी ही नहीं और जैसा कि उस की माँ समझ रही थी। अब उसे पेचिश की शिकायत भी नहीं थी। दवा पीए बग़ैर उस को आराम आचुका था। और वो बाहर गली के उस नुक्कड़ पर जहां कचरे का ढेर पड़ा रहता है, छोटी छोटी लड़कियों से खेल रही थी और हर क़िस्म के फ़िक्र-ओ-तरद्दुद से आज़ाद थी।

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दीवाना शायर

(20)
  • 955

  • 3.1k

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन ...Read Moreमांदा हवाओ! अपने दामन समेट लो कि मेरे आतिशीं गीत, दबे हुए सीनों में एक तलातुम बरपा करने वाले हैं,

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दीवाली के दिए

(21)
  • 665

  • 1.8k

छत की मुंडेर पर दीवाली के दीए हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास ...Read Moreहोगई....... उस की रोती हुई आँखों में मुंडेर पर फैले हुए दियों ने कई चमकीले नगीने जड़ दिए....... उस का नन्हा सा सीना दिए की लो की तरह काँपा, मुस्कुरा कर उस ने अपनी मुट्ठी खोली, पसीने से भीगा हुआ पैसा देखा और बाज़ार में दिए लेने के लिए दौड़ गई।

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दूदा पहलवान

(14)
  • 742

  • 2.3k

स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार ...Read Moreका चश्म ओ चराग़ था इस लिए उस को किसी चीज़ की कमी नहीं थी। मगर जिस मैदान वो कूद पड़ा था उस को एक मुहाफ़िज़ की ज़रूरत थी जो वक़्त पर उस के काम आसके। शहर में यूं तो सैंकड़ों बदमआश और गुंडे मौजूद थे जो हसीन ओ जमील सलाहू के एक इशारे पर कट मरने को तय्यार थे, मगर दूदे पहलवान में एक निराली बात थी। वो बहुत मुफ़लिस था, बहुत बद-मिज़ाज और अख्खड़ तबीयत का था, मगर इस के बावजूद उस में ऐसा बांकपन था कि सलाहू ने उस को देखते ही पसंद कर लिया और उन की दोस्ती होगई।

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देख कबीरा रोया

(23)
  • 1.1k

  • 3.5k

नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उस को गिरफ़्तार कराया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी लानत दूर होगई। कबीर ने ये देखा तो उस की आँखों में आँसू ...Read Moreलोगों ने पूछा। “ए जूलाहे तो क्यों रोता है?” कबीर ने रो कर कहा। “कपड़ा दो चीज़ों से बनता है। ताने और पीटे से। गिरफ़्तारीयों का ताना तो शुरू होगया पर पेट भरने का पीटा कहाँ है?” एक एम ए, एल एल बी को दो सौ खडियाँ अलॉट होगईं। कबीर ने ये देखा तो उस की आँखों में आँसू आगए। एम ए एल एल बी ने पूछा। “ए जूलाहे के बच्चे तु क्यों रोता है?...... क्या इस लिए कि मैंने तेरा हक़ ग़सब कर लिया है?”

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दो क़ौमैं

(23)
  • 1k

  • 4.1k

मुख़तार ने शारदा को पहली मर्तबा झरनों में से देखा। वो ऊपर कोठे पर कटा हुआ पतंग लेने गया तो उसे झरनों में से एक झलक दिखाई दी। सामने वाले मकान की बालाई मंज़िल की खिड़की खुली थी। एक ...Read Moreडोंगा हाथ में लिए नहा रही थी। मुख़तार को बड़ा ताज्जुब हुआ कि ये लड़की कहाँ से आगई, क्योंकि सामने वाले मकान में कोई लड़की नहीं थी। जो थीं, ब्याही जा चुकी थीं। सिर्फ़ रूप कौर थी। उस का पिलपिला ख़ाविंद कालू मिल था। उस के तीन लड़के थे और बस।

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धुआँ

(15)
  • 1.3k

  • 4.7k

वो जब स्कूल की तरफ़ रवाना हुआ तो उस ने रास्ते में एक कसाई देखा, जिस के सर पर एक बहुत बड़ा टोकरा था। उस टोकरे में दो ताज़ा ज़बह किए हूए बकरे थे खालें उतरी हूई थीं, और ...Read Moreके नंगे गोश्त में से धूवां उठ रहा था। जगह जगह पर ये गोश्त जिसको देख कर मसऊद के ठंडे गालों पर गर्मी की लहरें सी दौड़ जाती थीं। फड़क रहा था जैसे कभी कभी उसकी आँख फड़का करती थी।

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नंगी आवाज़ें

(51)
  • 2.1k

  • 7.7k

भोलू और गामा दो भाई थे। बेहद मेहनती। भोलू क़लई-गर था। सुबह धौंकनी सर पर रख कर निकलता और दिन भर शहर की गलीयों में “भाँडे क़लई करा लो” की सदाएं लगाता रहता। शाम को घर लौटता तो इस ...Read Moreतहबंद के डब में तीन चार रुपये का करयाना ज़रूर होता।

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नफ़सियात शनास

(16)
  • 646

  • 1.3k

आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता ...Read Moreमुतअद्दिद हिंदूओं और मुस्लमानों की जानें ज़ाए हो चुकी हैं। मेरी बीवी अपनी बहन की शादी के सिलसिले में लाहौर जा चुकी थी। घर बिलकुल सूना सूना था उसे घर तो नहीं कहना चाहिए। क्योंकि सिर्फ़ दो कमरे थे एक गुसल-ख़ाना जिस में सफ़ैद चमकीली टायलें लगी थीं उस से कुछ और हट कर एक अंधेरा सा बावर्ची-ख़ाना और बस।

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नफ़्सियाती मुताला

(13)
  • 563

  • 1.3k

मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ...Read Moreनज़र दौड़ाते रहे। लेकिन बाद में ये नज़र गहराई इख़्तियार कर गई और जैसा कि आम तौर पर होता है, गुफ़्तुगू गर्मा गर्म बहेस में तब्दील हो गई।

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मेरा नाम राधा है

(14)
  • 1.3k

  • 4.3k

ये उस ज़माने का ज़िक्र है जब इस जंग का नाम-ओ-निशान भी नहीं था। ग़ालिबन आठ नौ बरस पहले की बात है। जब ज़िंदगी में हंगामे बड़े सलीक़े से आते थे। आज कल की तरह नहीं। बेहंगम तरीक़े पर ...Read Moreहादिसे बरपा हो रहे हैं, किसी ठोस वजह के बग़ैर उस वक़्त मैं चालीस रुपया माहवार पर एक फ़िल्म कंपनी में मुलाज़िम था और मेरी ज़िंदगी बड़े हमवार तरीक़े पर उफ़्तां-ओ-ख़ेज़ां गुज़र रही थी।

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मेरा हमसफ़र

(13)
  • 632

  • 1.9k

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान ...Read Moreचढ़ते हुए मुझ से कहा: “अब्बास कहता है कि घर जा कर अपनी “उन” की ख़िदमत में सलाम ज़रूर कहना।”

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मोचना

(14)
  • 670

  • 1.5k

नाम उस का माया था। नाटे क़द की औरत थी। चेहरा बालों से भरा हुआ, बालाई लब पर तो बाल ऐसे थे, जैसे आप की और मेरी मोंछों के। माथा बहुत तंग था, वो भी बालों से भरा हुआ। ...Read Moreवजह है कि उस को मोचने की ज़रूरत अक्सर पेश आती थी।

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मोज़ील

  • 996

  • 2.2k

त्रिलोचन ने पहली मर्तबा....... चार बरसों में पहली मर्तबा रात को आसमान देखा था और वो भी इस लिए कि उस की तबीयत सख़्त घबराई हुई थी और वो महज़ खुली हवा में कुछ देर सोचने के लिए अडवानी ...Read Moreके टियर्स पर चला आया था।

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मोम-बत्ती के आँसू

(12)
  • 557

  • 1.2k

ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था। मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल घुल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का ...Read Moreलेने पर ज़िद करने और रोने लगी। तो उस की माँ ने मोमबत्ती के इन जमे हुए आँसूओं को एक कच्चे धागे में पिरो कर उस का हार बना दिया। नन्ही लाजो इस हार को पहन कर ख़ुश होगई। और तालियां बजाती हुई बाहर चली गई।

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मौज-ए-दीन

(13)
  • 594

  • 1.2k

रात की तारीकी में सेंट्रल जेल के दो वार्डन बंदूक़ लिए चार क़ैदियों को दरिया की तरफ़ लिए जा रहे थे जिन के हाथ में कुदालें और बेलचे थे। पुल पर पहुंच कर उन्हों ने गारद के सिपाही से ...Read Moreले कर लालटैन जलाई और तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते दरिया की तरफ़ चल दिए।

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मौसम की शरारत

(11)
  • 1.1k

  • 2.9k

शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह ...Read Moreहुए थे। कभी कभी हवा के झोंके उस फीते में एक कपकपाहट सी पैदा कर देते। मेरे दाएं हाथ एक ऊँचा टीला था जिस के ढलवानों में गंदुम के हरे पौदे निहायत ही मद्धम सरसराहट पैदा कर रहे थे ये सरसराहट कानों पर बहुत भली मालूम होती थी।

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यज़ीद

  • 787

  • 1.5k

सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिलकुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मामूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उस ने इस तूफ़ान ...Read Moreमर्दानावार मुक़ाबला किया था। मुख़ालिफ़ कुव्वतों के साथ वो कई बार भिड़ा था। शिकस्त देने के लिए नहीं, सिर्फ़ मुक़ाबला करने के लिए नहीं। उस को मालूम था कि दुश्मनों की ताक़त बहुत ज़्यादा है। मगर हथियार डाल देना वो अपनी ही नहीं हर मर्द की तौहीन समझता था।

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रत्ती, माशा, तोला

(17)
  • 797

  • 2.5k

ज़ीनत अपने कॉलिज की ज़ीनत थी। बड़ी ज़ेरक, बड़ी ज़हीन और बड़े अच्छे ख़ुद-ओ-ख़ाल की सेहतम-नद नौजवान लड़की। जिस तबीयत की वो मालिक थी उस के पेश-ए-नज़र उस की हम-जमाअत लड़कियों को कभी ख़याल भी न आया था। कि ...Read Moreइतनी मिक़दार पशद औरत बन जाएगी।

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

(11)
  • 614

  • 1.5k

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नहीं ...Read Moreइस में कोई शक नहीं कि वो एम-बी-बी-एस में तीन बार फ़ेल हो चुका था। मगर कहाँ डाक्टर राथर, कहाँ ग़ुलाम रसूल।

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हामिद का बच्चा

(40)
  • 1.5k

  • 4.1k

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र ...Read Moreकरके यहां आए हैं। थकावट होगी।” बाबू हरगोपाल अपनी धुन के पक्के थे। “नहीं भाई मुझे थकावट वकावट कुछ नहीं। मैं यहां सैर की ग़रज़ से आया हूँ। आराम करने नहीं आया। बड़ी मुश्किल से दस दिन निकाले हैं। ये दस दिन तुम मेरे हो। जो मैं कहूंगा तुम्हें मानना होगा मैं अब के अय्याशी की इंतिहा करदेना चाहता हूँ...... सोडा मँगवाओ।”

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