Kanto se khinch kar ye aanchal book and story is written by Rita Gupta in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kanto se khinch kar ye aanchal is also popular in Short Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
काँटों से खींच कर ये आँचल - Novels
by Rita Gupta
in
Hindi Short Stories
क्षितीज पर सिन्दूरी सांझ उतर रही थी और अंतस में जमा हुआ बहुत कुछ जैसे पिघलता जा रहा था. मन में जाग रही नयी-नयी ऊष्मा से दिलों दिमाग पर जमी बर्फ अब पिघल रही थी. एक ठंडापन जो पसरा हुआ था अंदर तक कहीं दिल की गहराइयों में, ओढ़ रखी थी जिसने बर्फ की दोहर, आज स्वत: मानों गलने लगी थी । ये कहानी है रिश्तों की वो भी उन रिश्तों की जिन्हें लोग यूँ ही बदनामकर रखते हैं। पर जो रिश्तों को छक कर जीना जानते/चाहते हैं, वे खुशी ढूँढ ही लेते है। एक सम वयी विमाता क्या कभी माँबन सकती है? पढ़िए सुंदर शब्द संयोजन कहानी
क्षितीज पर सिन्दूरी सांझ उतर रही थी और अंतस में जमा हुआ बहुत कुछ जैसे पिघलता जा रहा था. मन में जाग रही नयी-नयी ऊष्मा से दिलों दिमाग पर जमी बर्फ अब पिघल रही थी. एक ठंडापन जो पसरा ...Read Moreथा अंदर तक कहीं दिल की गहराइयों में, ओढ़ रखी थी जिसने बर्फ की दोहर, आज स्वत: मानों गलने लगी थी.
कैसी उजड़ी चमन की मैं फूल थी. क्या अतीत रहा है मेरा क्या जीवन था, मानों तप्त रेगिस्थान में उगे कैक्टस. निर्जन बियावान कंटीली निरुद्देशय जीवन. अकेला, बेसहारा, अनाथ मैं और अकेलापन मेरी साथी मेरी हमदर्द. शायद गोद में ...Read Moreथी जब एक सड़क दुर्घटना में अपने पापा और भाई को मैंने खो दिया. माँ की साड़ी के तहों में छिपी मैं बिना खरोंच जिन्दा बच गयी. माँ कुछ महीनों कोमा में जिन्दा रहीं, शायद मुझे अपना जीवन रस पिलाने हेतु ही.
“रेगिस्तान में उगे किसी कैक्टस की ही भांति मेरा जीवन शुष्क और कंटीला है. संभल कर रहना अनुभा कहीं मेरे कांटे तुम्हें भी जख्मी ना कर दें”,
इन्होने कहा तो मैं चौंक गयी कि कैक्टस पर मेरा सर्वाधिकार नहीं है.
वे ...Read Moreरहे थें और मैं सोच रही थी कि इससे पहले किसने मुझसे इतनी आत्मीयता से बात किया होगा. उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और विनीत हो कह उठे,
“मेरी बिखरी गृहस्थी को समेट लो, मैं अब थक गया हूँ तुम अब संभाल लो. सुलभा के जाने के बाद मैंने अपना तबादला उस जगह से करा लिया. नहीं थी मुझमें इतनी हिम्मत कि लोगो के सवालों के जवाब दूँ”
कार में सारे रास्तें उसे अपनी बाहों में ही मैं भरी रही, मेरी गोद उसके अश्रुओं से सिक्त होते रहें. घर पहुँचते पहुँचते वह बहुत रों चुकी थी और शायद कई दिनों से उसके मन में काई लगी रिश्तों ...Read Moreसड़ांध, ढेर लगा संकुचित पड़ी थी जो दृग-द्वार से विदा लेने को उत्सुक थीं. घर पहुँचते-पहुँचते उसका पुलकित हो मुस्कुराना उसके पापा और मुझे दोनों को राहत दे गया.
बैठा रहा गुमसुम सा बहुत देर तक, भोला मासूम सा सर झुकाए. बहुत देर बाद सर उठाया तो कहा,
“एक बार मैंने महेश अंकल के सामने अपनी मम्मा को, ‘मम्मा’ बोल दिया था तो वह बहुत नाराज हुईं थीं.....”.
अचानक याद ...Read Moreगयी अपनी वो चचेरी बहन जो मुझसे सीधे मुहं बात नहीं करती थी. उसे भी ऐसे ही एक दिन पढ़ा रही थी कि चाचीजी ने आ कर किताब फ़ेंक दिया और कहा कि
“खबरदार जो इस अभागी के साथ दुबारा सर जोड़े बैठे देखा”. आंसू मेरे भी टपक पड़े उन दोनों के साथ.