Aur,, Siddharth bairagi ho gaya book and story is written by Meena Pathak in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Aur,, Siddharth bairagi ho gaya is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
और,, सिद्धार्थ बैरागी हो गया - Novels
by Meena Pathak
in
Hindi Moral Stories
पतीली से गिलास में चाय छान कर सबको थमा आई थी पर मुकेश कहीं नहीं दिख रहा था, वह उसको ढूँढ़ती हुई बाहर कोठरी की ओर चल दी, “बाबू !” आवाज लगाई उसने, कोठरी का किवाड़ उड़का था, धक्का दे कर भीतर आ गई.. अभी तक सो रहे थे बाबू
“का जी ! आप अभी तक सो रहे हैं..चलिए उठिए..घाम माथे पर चढ़ गया है.. ” कुनमुना कर करवट बदल लिया उसने, .
पतीली से गिलास में चाय छान कर सबको थमा आई थी पर मुकेश कहीं नहीं दिख रहा था, वह उसको ढूँढ़ती हुई बाहर कोठरी की ओर चल दी, “बाबू !” आवाज लगाई उसने, कोठरी का किवाड़ उड़का था, धक्का ...Read Moreकर भीतर आ गई.. अभी तक सो रहे थे बाबू
“का जी ! आप अभी तक सो रहे हैं..चलिए उठिए..घाम माथे पर चढ़ गया है.. ” कुनमुना कर करवट बदल लिया उसने, .
ताप आज फिर बढ़ने लगा था..देह बथ रहा था पर आज कोई उसकी सुध लेने वाला नहीं था, वह जानती थी करवट बदल कर सोने की कोशिश करती है बगीचे में सियार की हूँआ-हूँआ रात ...Read Moreसन्नाटे को चीरती हुयी दूर तक जा रही थी पर उसका मन आतीत के सफर से वापस आ चुका था, आँखें अब भी बह रहीं थीं
गद्बेरी का समय है सुन्दरी ढिबरी जला कर सभी कमरों में दिखाती हुई बाहर के चौखट के पास रख कर सूने आँखों से कोठरी की ओर देखती है मन आज कुछ व्याकुल सा है ना ...Read Moreक्यों किसी भी कार्य में उनका जी नहीं लग रहा है इस भरे-पुरे घर में भी वह नितांत अकेलापन महसूस करती है इसी लिए वह अपने को घर के कार्यों में झोंके रहती है ताकि उसे अकेला पा कर उसके भीतर का सूनापन उन पर हावी ना हो जाय पर वह आज हावी हो रहा है और वह उसे रोक नहीं पा रहीं
सुन्दरी सम्मोहित सी अपलक स्वामी जी को निहार रही थी, उसे क्या हो रहा था ? स्वामी जी को देख कर मन और भी व्याकुल क्यों हो रहा था ? वह तो यहाँ पर मन की शान्ति के लिए ...Read Moreथी पर यहाँ आ कर तो उसकी पीड़ा और भी बढ़ गई थी हे ईश्वर ! ये मुझे क्या हो रहा है ? स्वामी जी बैरागी हैं और मै भी तो वैधव्य का जीवन जी रही हूँ फिर ये मुझे क्या हो रहा है ? स्वामी जी की मुखाकृति कुछ जानी पहचानी, देखी हुई-सी क्यूँ लग रही है वह उनके चेहर से अपनी नज़रें हटा लेती है कि कहीं स्वामी जी ने अपनी आँखे खोल ली तो वह उसके मनोभाव समझ ना जाएँ