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नाम:प्रगति गुप्ता (जोधपुर ) शिक्षा:एम. ए.(समाजशास्त्र)गोल्ड मैडल व्यवसाय: लेखन व चिकित्सा व सामाजिक क्षेत्र में मरीज़ों की कॉउंसिललिंग । प्रकाशन काव्य संग्रह: 1.'तुम कहते तो' सितम्बर2017 (पुरुस्कृत ),अयन प्रकाशन 2. 'शब्दों से परे' जनवरी 2018(पुरुस्कृत),अयन प्रकाशन 3.'सहेजे हुए अहसास'सितम्बर (2018),अयन प्रकाशन 4.मिलना मुझसे ई-पत्रिका अमेज़न जनवरी 2019 5.'अनुभूतियां प्रेम की' काव्य संकलन जनवरी (2019) (संपादन ),अयन प्रकाशन 6. सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख)2019,अयन प्रकाशन 7.माँ! तुम्ह
पूर्ण-विराम से पहले --------------------- उम्र के अंतिम पड़ाव तक जो प्रेम मौन चिरप्रतीक्षित रहा, रूबरू जब भी हुआ यह, सजल नयन मिलता रहा... जितना गहरे हम मौन में उतरते गए उतने ही कहे-अनकहे भाव निःशब्द संग-संग चलते रहे ... सुदूर कहीं से हमारा सलामती की दुआएं पढ़ना एक दूजे से नही छिपा था, बहते अश्रुओं के धारों पर बांध प्रेम का बांध कहीं गहरे तक एक दूजे को हमने महसूसा था.. निमित्त प्रेम के अधीन आज पुनः हम सामने खड़े थे, देख आँखों के ढलके आंसू, बांध न पाई अँखियाँ उस बांध को जिस बांध पर हम दोनो खड़े थे.. 'पूर्णविराम से पहले' हमारा पुनः मिलना उस निमित्त अधीन चिरप्रतीक्षित प्रेम के उपहार का हिस्सा था जिसकी अनुभूतियों के छावं तले शेष यात्रा को हमें अब संग-संग तय करना था... प्रगति गुप्ता पूर्ण-विराम उपन्यास की बुक-मार्क कविता
रूह ----------- दिल का एक हिस्सा मन्नत के धागों से बंधा रूहो का होता है... सुनते है वहाँ कोई बहुत दिल से जुङा रहता है... दिखता नहीं वो कोना ना ही वो रूह नजर आती है.. तभी तो ऐसे रिश्तों को समझ पाना भी आसां कहाँ होता है... खामोश रूहें वहीं सकूंन से गले मिला करती हैं.. कहने को तो कुछ नहीं पर महसूस करने को बहुत कुछ हुआ करता है.. दिल के उसी कोने मे -- रूहों का आरामगाह हुआ करता है... प्रगति गुप्ता
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