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नाम:प्रगति गुप्ता (जोधपुर ) शिक्षा:एम. ए.(समाजशास्त्र)गोल्ड मैडल व्यवसाय: लेखन व चिकित्सा व सामाजिक क्षेत्र में मरीज़ों की कॉउंसिललिंग. काव्य संग्रह 1.तुम कहते तो(पुरुस्कृत ),2.शब्दों से परे(पुरुस्कृत) 3.सहेजे हुए अहसास(समीक्षित अकादमी पत्रिका) 4.मिलना मुझसे 5. अनुभूतियां प्रेम की (संपादन ) 6. सुलझे..अनसुलझे (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख) 7.माँ! तुम्हारे लिये 8.पूर्ण विराम से पहले(उपन्यास)9.भेद(पुरस्कृत लघु उपन्यास)10. स्टेपल्ड पर्चियाँ(पुरस्कृत कहानी संग्रह)
पूर्ण-विराम से पहले --------------------- उम्र के अंतिम पड़ाव तक जो प्रेम मौन चिरप्रतीक्षित रहा, रूबरू जब भी हुआ यह, सजल नयन मिलता रहा... जितना गहरे हम मौन में उतरते गए उतने ही कहे-अनकहे भाव निःशब्द संग-संग चलते रहे ... सुदूर कहीं से हमारा सलामती की दुआएं पढ़ना एक दूजे से नही छिपा था, बहते अश्रुओं के धारों पर बांध प्रेम का बांध कहीं गहरे तक एक दूजे को हमने महसूसा था.. निमित्त प्रेम के अधीन आज पुनः हम सामने खड़े थे, देख आँखों के ढलके आंसू, बांध न पाई अँखियाँ उस बांध को जिस बांध पर हम दोनो खड़े थे.. 'पूर्णविराम से पहले' हमारा पुनः मिलना उस निमित्त अधीन चिरप्रतीक्षित प्रेम के उपहार का हिस्सा था जिसकी अनुभूतियों के छावं तले शेष यात्रा को हमें अब संग-संग तय करना था... प्रगति गुप्ता पूर्ण-विराम उपन्यास की बुक-मार्क कविता
रूह ----------- दिल का एक हिस्सा मन्नत के धागों से बंधा रूहो का होता है... सुनते है वहाँ कोई बहुत दिल से जुङा रहता है... दिखता नहीं वो कोना ना ही वो रूह नजर आती है.. तभी तो ऐसे रिश्तों को समझ पाना भी आसां कहाँ होता है... खामोश रूहें वहीं सकूंन से गले मिला करती हैं.. कहने को तो कुछ नहीं पर महसूस करने को बहुत कुछ हुआ करता है.. दिल के उसी कोने मे -- रूहों का आरामगाह हुआ करता है... प्रगति गुप्ता
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