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कल्पना की किताब पर ख़्यालों की क़लम से न जाने क्या क्या उकेरते रहते है, असलियत के धरातल पर आते ही किताब के सफ़्हे साफ पाते है। शायद कुछ पगले से है हम ।।
तेरे प्यार का रुख़ चन्द्रमा की तरह बदल गया आहिस्ता आहिस्ता बड़ा फिर धीरे से घट गया ------------------ -सन्तोष दौनेरिया
रुख़ से नक़ाब हटा जानाँ चेहरा जरा दिखा जानाँ फ़ना होने की हसरत है नज़रें जरा मिला जानाँ ---------------- -सन्तोष दौनेरिया
बात जब उनकी आती है, ज़बाँ मेरी ख़ामोश हो जाती है ख़्वाब आँखों में आते हैं और नज़र मदहोश हो जाती है ------------------ -सन्तोष दौनेरिया .
मर गए ------- पलकें उठी कि मर गए नज़रें मिली कि मर गए कारवाँ सब बिछड़ गया मंज़िल खोई कि मर गए मुंतज़िर थे उन आँखों के आहट सुनी कि मर गए लाखों में हैं एक वो हसीं नज़र अटकी कि मर गए दिल उनको दे कर, मेरी जान पे बनी कि मर गए --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
मेंहदी लगाने भर का ख़्याल उनको जो आया खिल उठा रंग-ए-हिना हाथों में लगने से पहले --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
इस बज़्म में हैं सुख़नवर बहुत ही अच्छे मगर आपकी तो कुछ अलग ही बात है मैं आपकी क़लम की क्या तारीफ़ करूं क़लम के हर लफ़्ज़ रूह-ए-कायनात हैं --------------------- -सन्तोष दौनेरिया (बज़्म - सभा, सुख़नवर - कवि, लफ़्ज़ - शब्द, रूह-ए-कायनात - संसार की आत्मा) .
हसीं चेहरे पे कमाल आँखें आपकी ये बेमिसाल आँखें ख़ुदा बचाए मस्त आँखें से करेंगी जीना मुहाल आँखें --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
उनकी कल्पना ------------------ उनकी कल्पना तड़पाती रहती है शब भर। तस्वीर आंखों में आती रहती है शब भर। कभी डुबाती तो कभी उभारती रहती है, याद उनकी लहर बन के भिगोती रहती है शब भर। हर ख़्वाब महकता है मेरा उनकी कल्पना में, खिले खिले गुलाब सी महकाती रहती है शब भर। तस्वीर आंखों में आती रहती है शब भर। उनकी कल्पना तड़पाती रहती है शब भर। --------------------- -सन्तोष दौनेरिया (शब भर - रात भर) .
इश्क़ के मौसम भी अक्सर अजीब होते है मेरे सनम कभी दूर तो कभी करीब होते है मुहब्बत में होता नहीं कुछ भी तो हासिल अश्क-ए-ग़म आंखों के बस नसीब होते है --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
इश्क़ क्या चीज है, यारा बता क्या कहें हसीं बला कहें या ख़ूबसूरत ख़ता कहें अपनी - अपनी सभी की समझ है यार कुछ लोग अच्छा तो कुछ इसे बुरा कहें सुन के अन सुना करते हैं दिल की बात अब उनको बेवफ़ा कहें या बावफ़ा कहें झूमते है हम उनकी नज़र से मय पीकर इन आंखों को अच्छा कहें कि बुरा कहें --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
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