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अप्रचलित निरक्षर हो कर भी जो लोग करते थे पालन ईमानदारी का सत्य अहिंसा अस्तेय का जिनके ह्रदय बसता था प्रेमभाव राधा माधव का उत्तम कोटि का आचरण जिनके चरण रज पखारता था जिनके रग - रग में था लहू लाल मातृभूमि पर मर मिटने का अप्रचलित हो गए हो वो जिन पर ईश्वर अल्लाह गॉड या गुरु साहिब का था विश्वास अटूट कभी जो बन गए थे ईश्वर सरीखे वो भी अप्रचलित हो गए हैं अब इस पढ़ी-लिखी दुनिया में उनकी कीमत नहीं है कुछ भी प्रचलित सिक्के की तरह -शिव सागर शाह'घायल' #अप्रचलित
उपहास जिसके लिए समर्पित था जीवन भर उल्लास में क्षणभर में उसने ठुकराया गहरे छुपे उपहास में -शिव सागर शाह "घायल" #उपहास
नुकसान एक अदृश्य दुश्मन सदियों से चला आ रहा था जो करने अत्याचार निरीह प्राणियों पर अचानक एक दिन चीनी बोतल से बाहर किसी जिन्न के मानिंद निकला एक एक कर लोगों को अपनी चपेट में करता हुआ बढ़ता रहा निरंतर जिंदगी होती रही दुष्कर एशिया ,अमेरिका ,अफ्रीका ,ऑस्ट्रेलिया और यूरोप सबका नुकसान एक एक कर घर हो रहे सुनसान कैसे करें कहां जाएं क्या इलाज हो नहीं पता कुछ भी नहीं पता लक्षण के बाद भी बिना लक्षण के साथ भी कुछ जिंदा है अपने दम पर कुछ बिना लक्षण के भी खुदा को हो जाते हैं प्यारे सुबह दोपहर या भिनसारे कैसे करें किस से कहें कौन पराए कौन है प्यारे कर जाते हैं नुकसान अनगिनत अनंत दुख दर्द के साथ जीने के लिए छोड़ जाते हैं बिल्कुल अकेला सागर की लहरें हैं उठती गिरती हैं नदियां कल कल करती हुई बहती हैं पंछी कलरव करते हैं फिर भी जीवन अलबेला निपट अकेला चलने को मजबूर बहुत दूर -बहुत दूर। -शिव सागर शाह 'घायल' #नुकसान
उत्साही बुझे चिराग हुए रौशन तेरे उत्साही होने पर तन के मन के दाग धुले धीरे-धीरे धोने पर -शिव सागर शाह 'घायल'
उग्र तुमने ही पैदा किया है अपने ही अंतर गर्भ से नदियां, पहाड़ , झरने , समुंदर, जल, जीव फिर इतनी प्रचंडता क्यों अपनी ही जायों को क्षण मात्र में खत्म कर देने की आतुरता क्यों है योग्यता-अयोग्यता के बीच प्राकृतिक आपदा का विकराल स्वरूप जनमानस में व्याप्त जीवन यात्रा के अंत की भयावहता दिन प्रतिदिन उग्र होता स्वरूप किस गलती का परिणाम है समस्याओं का समाधान के लिए क्यों हो गए हो उग्र शांति का रूप भी तुम ही हो क्रांति की विकरालता भी तुम ही हो जनमानस के भीतर फैले तिमिर का रूप भी तुम ही हो हो जाओ शांत फैला दो खुशियों का संसार भीतर बाहर कर दो आनंद ही आनंद -शिवसागर शाह'घायल' #उग्र
शांत महामारी से हुआ मन क्लांत अंतर्मन क्षण प्रतिक्षण आक्रांत दूर हो जाएं सभी दुख अपनों से बुध्द बन जाएं सभी जब शांत - शिवसागर शाह 'घायल' #शांत
घोंसला आ गई बरसात चलो फिर घोंसला बनाएं चल पड़ी तूफान चलो फिर गुनगुनाएं बहे कठिन पछुआ लहर या सुहानी पुरवाई ताड़ हो या हो खजूर या सुहानी अमराआई आ गई बरसात चलो फिर हौंसला बढ़ाएं हैं अकेली जिंदगी कर लो भलाई रेत की दुनिया करें क्या कण कण में विपदा समाई आ गई प्रभु याद चलो फिर प्रसाद चढ़ाएं -शिवसागर शाह'घायल' #घोंसला
शरारती दिल को बहलाया फुसलाया और छोड़ दिया उनकी शरारती निगाहों ने जिंदगी को यू मोड़ दिया समंदर की जैसे उठी हो लहरें ज्वार की तरह आसमान से उठाकर जमीन पर छोड़ दिया -शिवसागर शाह'घायल' #शरारती
शक्तिमान सत्य हो जिसके हृदय में शक्ति का संज्ञान हो बोध हो कर्तव्य पथ का भक्ति का विज्ञान हो हो मनुजता अंग संग वास्तविकता का ज्ञान हो मिलकर बढ़े वह प्रगति पथ पर राष्ट्रहित पर अभिमान हो उर्वर करें जो धरा धाम पर्यावरण का जो करे सुधार जो बने व्यक्ति का जीवन आधार वास्तव में ऐसा शक्तिमान हो। -शिवसागर शाह 'घायल' #शक्तिमान
अर्थ नाउम्मीदी की न सोचिए व्यर्थ कदम कदम बढ़ाइए बन जाइए समर्थ दुनिया मुट्ठी में कर लेंगे एक दिन मिल जाएंगे आपको शब्दों के अर्थ -शिवसागर शाह 'घायल' #અર્થ
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