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" फागुन " मन क्यूं बहके इस मौसम में ये कैसा नशा - सा छाया है ये बोल पड़ी सारी दुनिया फागुन का महीना आया है अलसाई सी भरी जवानी ये सारा जहां अलसाया है टेसू गुलाब कचनार खिला यह बूढ़ा आम बौराया है ये बोल पड़ी सारी दुनिया फागुन का महीना आया है तरुणाई अब मदमस्त हुई बूढ़ों का मन ललचाया है हर रिश्ता अब देवर सा लगे फागुन का महीना आया है प्रेयसी लगे उपवन की हंसी प्रियतम फागुन बन आया है प्रेम का रस बरसे जग में फागुन का महीना आया है __________
" कोरा कागज़ " कोरा कागज़ सा यह जीवन , ना रह जाए कुछ तो करें बड़ों की सीख और अनुभव , संस्कार संपदा कुछ तो भरें लिखा हो विधि का कुछ भी लेख , भले नहीं टारे न टरे भरोसा खुद पे हो हमको , भला हम किसी से क्यों डरें करे हम काम कोई भी , सदा ही हम खरे उतरें जब उतरें संसार - सागर में , सभी को तारे खुद भी तरें जीवन हो सरल अपना , न हो कोई भी हमसे परे प्रेम आपस हो हरदम , हमेशा खुशियां ही बिखरें जीवन हो एक गुलदस्ता , किसी को कोई ना अखरे रहें सब कुटुंब के जैसे , घर हों खुशी से हरे - भरे ________
" गणतंत्र " अपना भारत देश सदा से , सभी गुणों की खान था धन संपदा और ज्ञान कला का , सकल जगत में मान था वसुधैव कुटुंबकम् भाव था अपना , जो अपना अभिमान था ज्ञान विज्ञान खगोल और ज्योतिष , अपने देश की शान था कुछ गद्दारों की काली करतूतों से , देश की आभा थी चली गई विदेशी कायर नरपिशाचों से , इस देश की आत्मा थी छली गई अनवरत कोशिशें जारी थीं , सभ्यता संस्कृति को मिटाने की दुश्मन यह देख अचंभित था , होड़ थी सर को कटाने की धर्म सनातन मिट न सका , मिट गईं सभ्यताएं कितनी इसका न आदि और ना अंत , इसकी जड़ है गहरी कितनी उनकी रत्ती भर औकात न थी , बाल भी बांका करने की ऐसी तो न कोई बात ही थी , जो बात हो कोई डरने की कोई कितना भी ताकतवर हो , अपनों से मात वो खाता है यह बात जब - जब चरितार्थ हुई , तब - तब हार से अपना नाता है सदियों की मिली गुलामी से , सूरज स्वतंत्र फिर उदय हुआ आज़ादी का सपना सच होते ही , प्रफुल्लित हम सबका हृदय हुआ हम सबको यह प्रण लेना है , अब भूल न हमसे हो कोई ना दृश्य दुबारा दिखे कभी , जब देश की आत्मा थी रोई डर नहीं है हमको बाहर से , डर है देशी जयचंदों से इनकी जगह जहन्नुम है , बच पाएं ना फांसी के फंदों से हम जैसे भी और जहां रहें , जन - जन अब तो स्वतंत्र हैं कर्तव्य रहे सबसे आगे , महापुरुषों का यही मंत्र है लहराए तिरंगा नभ में सदा , अमर ये लोकतंत्र है सबसे सुंदर सबसे प्यारा , अपना ये गणतंत्र है __________
गणतंत्र न भटकें हम कभी कर्तव्य पथ से , अपने जीवन में करें पुरुषार्थ जीवन में , न कोई दुविधा हो मन में नहीं बदलेगा अपना भाग्य , बैठे हुए आंगन में जगना और जगाना होगा , राष्ट्र - प्रेम जन - जन में समर्पित स्वयं होना है , है जब तक प्राण इस तन में मिटना है इसी माटी में , जहां है ईश कण - कण में न हो कोई बड़ा छोटा , रहे ना कोई भी पतन में परेशां हो न कोई भी , मिलकर रहें इस जतन में बढ़े उत्कर्ष हम सबका , गांठ में बांध लें यह मंत्र नहीं कोई रोक सकता राह , बढ़ता रहे यह गणतंत्र ____________
" नव वर्ष " नूतन वर्ष के अभिनंदन में , कुछ नूतनता का सृजन करें छोड़ पुरातन बातों को हम , कुछ नवीनता का मनन करें क्यों न तजें उन चर्चाओं को , जो समरसता का हनन करें क्यों न सहेजें उन रिश्तों को , जो संबंधों का जतन करें प्रतिकार करें उन बातों का , जो मानवता का पतन करें शक्ति दें उन भुजदंडों को , जो दानवता का दलन करें विष घोलते हैं समाज में जो , उन सब दुष्टों का दमन करें हम मान करें एक - दूजे का , आपस में आवागमन करें सारी कटुता , सारे विवाद , कुल बुराईयों का हवन करें स्वागत है नववर्ष तुम्हारा , जनमानस तुमको नमन करें नए प्रतिमान गढ़ें हम सब , मिलजुलकर देश को चमन करें ____________
" कलम " उपहास उड़ाओ मत इसका , इसको न चुनौती देना तुम छोटी हस्ती इसकी बेशक़ , इतिहास है रच देती ये कलम अनगिनत घाव अनवरत हुए , इतिहास बदलने की खातिर यह धर्म सनातन मिट न सका , शक्ति को बताती है ये कलम कितने निज़ाम आए , बदले , इसकी हस्ती कभी झुकी नहीं ज्ञान - दीप कभी बुझ न सका , यह अलख जलाती रही कलम परतंत्र हुए कारण हो कोई , विश्वास हमारा डिगा नहीं वन्देमातरम् का हुंकार उठा कर , रीति निभाती रही कलम शमशीरों की औकात ही क्या , तन मिटे तो कोई फ़र्क नहीं यदि मन बदले , बदले दुनिया , यह फ़र्ज़ निभाती रही कलम संशय न रहे कोई मन में , ना कोई दुविधा रहे कभी है अनंत इसका शक्ति पुंज , समय का रुख मोड़ती रही कलम ___________
वो बचपन की धुंधलकी याद अब प्यारी सी लगती है समझता था जिसे जन्नत वो गोद न्यारी सी लगती है समझता था बड़ा अपने को उसकी गोद में चढ़कर नहीं दूजा कोई था सुख उसकी गोद से बढ़कर वो पल छिन याद जब आते वो दुनिया भली लगती है सुनहरे दिन वो छुटपन के मासूम सी कली लगती है वो दिन आया बिछड़ने का वो मेरी प्यारी बहना थी सजाने चली दूजा घर जो मेरे घर की गहना थी विदाई कैसे देखूंगा बहन की सोचा मैं रुककर तत्क्षण अश्रु बह निकले मेरे पोंछा उन्हें छुपकर करुण क्रंदन बहन का सुनता मैं यह तो असंभव था कान को बंद कर छुपना ही मेरे लिए संभव था हुआ आश्वस्त अपने से धीरे से कान को खोला नज़र दौड़ाई उस रस्ते में जहां से गुज़रा बहन का डोला बहने क्यों छोड़ कर जाती यह रीति अटपटी लगती है बिछड़कर बहन से भाई की दुनिया लुटी - लुटी लगती है _____________
आया मेरा बलम परदेशी , उडूं पतंग जैसी , खुशी का कोई ओर ना छोर मैं गाऊं गीत मिलन के , चलूं मैं बन - ठन के , नाचे रे मेरे मन का मोर मैं इठला के चलूं संग सखियां , छुपाऊं मन की बतियां , वो विनती करें दोनों कर जोर वो जल - जल के देती मुझे गाली , बनके मैं चलूं मतवाली , ना बांध सके मुझे कोई डोर कुछ सूझे ना खुशी के आगे , अब मेरे भाग जागे , छलके है प्यार ले - ले हिलोर छूटे ना साथ पिया का , संग ज्यों बाती - दिया का , गम की घटा चाहे छाए घनघोर __________
तुमसे ही दीवाली है ,तुमसे ही मेरी होली तुमसे ही ये सरगम है , कोयल सी मीठी बोली हर मां की आस हो तुम , हर मां की चाह हो तुम चेहरे की हो खिलखिलाहट , जवानी की हो ठिठोली हर भाल का चंदन हो , मांग का सिंदूर तुमसे पूजा की थाली तुमसे , तुमसे है धूप - रोली पंछी की तान तुमसे , वनचरों की दुनिया तुमसे झरनों का नाद तुमसे , नदियों की है अठखेली तरुणाई के स्वप्न तुमसे , बुजुर्गों की शांति तुमसे तुम हो तो सच है दुनिया , तुमसे ही भाषा - बोली तुमसे ही मुस्कुराहट है , करुणा की दुनिया तुमसे तुम हो तो ये जहां है , ये दुनिया बड़ी अलबेली तुम ही हो सबकी आशा , तुमसे ही दिल की भाषा तुम हो तो जग है सुंदर , जग की छटा निराली तुम हो तो देश खुश है , नश - नश में देश जीवित तुम बिन न कुछ जहां में , ज्यों बिन सांस देह खाली _________
कितना पावन कितना पवित्र श्रीराम का है जीवन चरित्र जिनकी गाथा अविरल चली जन - जन मनाएं दीपावली यह याद दिलाती निज कर्म को जो छोड़ा न कभी स्वधर्म को मर्यादा का जो प्रतिमान बना मानवता की जो शान बना निस्वार्थ निर्लिप्त दीप सा कर्म इसमें छुपा है जीवन का मर्म हो सबका उत्कर्ष जग में हो हर्ष यह दीपावली हो सहर्ष हर वर्ष __________
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