Hey, I am on Matrubharti!

किसी रोते को अब नहीं हंसाना
किसी रूठे को अब नहीं मनाना
बदल दिया अब नियम जिंदगी का
किसी गैर को अपना नहीं बनाना

-Tarkeshwer Kumar

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बेईमान के हाथों बिकते नहीं,
हम बुराई के साथ टिकते नहीं,
तुम्हें दिख जाता हैं गैरों का गम,
एक हमारे आंसू ही तुम्हें दिखते नहीं।

-Tarkeshwer Kumar

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झूठ बोलने की भी एक हद होती हैं साहब,
तूने जो भी बताया झूठ के दायरे से बाहर था।

-Tarkeshwer Kumar

मेरे हिस्से की हंसी तुझे मिल जाए,
तेरा दिया गम ही काफी हैं जीने के लिए।

-Tarkeshwer Kumar

उसने पूछा कोई गम हैं क्या,
चेहरे पर हसीं आंखें नम हैं क्या,
मैंने कहा बैठो कभी दर्द के मयखाने में,
आंसू संभाल लोगे इतना दम हैं क्या।

-Tarkeshwer Kumar

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कुछ में जिंदगी, तो कुछ में तन्हाई ढूंढते हैं,
कुछ दुख में सुख की परछाईं ढूंढते हैं,
मैं बहुत बुरा हूं, सबमें राम ढूंढता हूं,
सब अच्छे हैं, मुझमें बुराई ढूंढते हैं।

-Tarkeshwer Kumar

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सच्चा प्यार नहीं था वो सब
जो कुछ था वो सिर्फ साज़िश था

क्या हुआ जो उसने तुझे रुलाया हैं
तूने भी तो माँ बाप का दिल दुखाया हैं

एक कविता देश के नाम ~Tarak

अजब जादुई नज़ारा हैं आज हिंदुस्तान में,
दिख रहा तिरंगा गली,शहर हर दुकान में,
तिरंगे के रंग में देश मेरा रंगा खूबसूरत हैं,
पर क्यों इस खुशी को किसी दिन की जरूरत हैं।

क्यों रोज तिरंगा चहुओर नही लहराता हैं,
क्यों देशभक्ति का भजन रोज नहीं सुनाता हैं,
क्यों नसों में खून जज़्बे का रोज नही खोलता हैं,
क्यों हर रोज तू जय भारत माँ की नहीं बोलता हैं।
चौराहे पर वीर सपूतों,शहीदों की मूर्तियां जो हैं,
क्यों वो रोज फूल मालाओं से सजाई नही जाती हैं,
क्यों उनकी वीर गाथाएँ रोज सुनाई नहीं जाती हैं,
क्यों ये देशभक्ति की दिवाली रोज मनाई नहीं जाती हैं।

कोई त्रुटि हो तो क्षमा करें और कृपया कमेंट करें।

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क्यों पीते हो ये सिगरेट,
क्या मिलता है इसे पीने में,
क्या मज़ा नही आता तुमको,
अपनों के साथ जीने में,
पीते हो तो यूँ धुँआ,
यूँ धुँआ ना उड़ाया करों,
खुद ही क्यों ये धुँआ गाड़ते हो,
अपनों के सीने में।
~Tarak

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