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हिंदी भाषा में स्त्री के समानार्थी शब्दों में ‘अबला’ लिखा हुआ है । परंतु जो अच्छे - अच्छों का तबला बजा सकती है वो ‘अबला’ कैसे हो सकती है ? भाषाविद् मनीषियों से अनुरोध है कि ‘अबला’ के स्थान पर ‘सबला’ शब्द को सही माना जाए ।
स्त्री वो संगीत है जो ...... जो मृत में भी प्राणों का संचार कर दे जो पाषाणी हृदय को भी द्रवित कर दे जो नव - सृजन कर सृष्टि का निर्माण करे अपनी संतति की रक्षा हेतु पल में प्रलय करे प्रेम रूप में दुर्गा बनकर सबका जो कल्याण करे क्रोध रूप में काली बनकर शत्रु का जो संहार करे
बुलबुले - सी है ये ज़िंदगी सतरंगी बन दिल को लुभाती पल भर में ही नष्ट हो जाती जी लो इसको आख़िरी पल तक ना जाने क्या हो अगले पल तक
मेरा जीवन मंत्र - ज़िंदगी में खुश रहना है तो दूसरों से उम्मीदें लगाना छोड़ दो ।
हिंदी भाषा ही एक ऐसी भाषा है जो मन के उद्वेग को शांत करके सुकून देती है । तभी तो कहते हैं ... हिंदी में बात है क्योंकि हिंदी में जज़्बात हैं ।
एक लड़की का बचपन से ही ‘किसी’ के प्रति अगाध स्नेह था । अपनी लेखनी एवं नाट्य के द्वारा से वह सदा उसके प्रति अपना स्नेह प्रदर्शित करती थी । समय के साथ - साथ उसका स्नेह और भी प्रगाढ़ होता चला गया । अब वह लड़की ‘उसके’ साथ हर जगह अपनी पहचान बना रही थी । वह जहाँ भी जाती , ‘उसके’ साथ अपना नाम देखकर फूली नहीं समाती थी । पर एक दिन ......... उसका साथ छूट गया । अब किसी और को उसका साथी बना दिया गया जिसके साथ वह असहज रहती थी । उसने नए साथी के साथ तालमेल बिठाने का भरसक प्रयास किया । नया साथी उस लड़की का साथ पाकर खुश है पर उस लड़की के मन में कसक बनी रहती है । वह प्रतिदिन उससे मिलने को लालायित रहती है , मनुहारें करती है पर फिर भी ना जाने क्यों ? मिलने के आसार कहीं नज़र ही नहीं आ रहे । उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
मेरे हर गीत का साज हो तुम मेरी ख़ुशियों का परवाज़ हो तुम तुमसे मिलता है दिल को सुकून मेरे ख़यालों की आवाज़ हो तुम मेरी साथिन, हमजोली हो तुम मेरा जुनून और अनुराग भी तुम मैं तुम्हारी प्रेयसी और ....... मेरी आराध्या सिर्फ़ तुम
तुझसे मिलने की हसरत पूरी होती नहीं किसी और से मेरी जमती नहीं ।
हम हमेशा फ़रेब खाते रहे फिर भी सदा मुस्कुराते रहे लोग फ़रेब से हमें फ़र्श पर लाने की गफ़लत में जुटते चले गए , और हम , फ़रेब खा - खाकर ज़िंदगी जीने का हुनर सीखते गए ।
मैं ही क़सूरवार हूँ ....... यदि तुम्हारी नज़रों में केवल मैं ही क़सूरवार हूँ तो क़सूर मेरा नहीं, तुम्हारी नज़रों का है जो मेरी अच्छाइयों को देख ही नहीं पाती ।
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