मुम्बई के नजदीक मेरी रिहाइश ..लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ..

तकल्लुफ को रखकर परे,

चलो बेतकल्लुफ हो जाते हैं

बंद कर आँखों को अपनी

ख्वाब में खो जाते हैं

बेगानों की भीड़ और

बेक़दरों की इस दुनिया में

तुम हमारे बनो या ना बनो

चलो हम तुम्हारे हो जाते हैं

-राज कुमार कांदु

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तुम ही दवा हो, तुम ही दुआ हो
रहनुमा तुम्हीं हो और तुम ही हो कातिल
करोड़ों की दुनिया में, मैं हूँ अकेला
तुम ही जुदा हो, और तुम ही हो हासिल

-राज कुमार कांदु

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हाल के राजनीतिक हालातों के संदर्भ में मीडिया की भूमिका पर एक निष्पक्ष नजरिया इस मुक्तक के द्वारा प्रस्तुत है।
जनता की आवाज होने का दावा करनेवाले पत्रकार जब सरकारी भोंपू बन जाते हैं, तब उन्हें देश में बढ़ती महँगाई, गरीबी, अपराध और भ्रष्टाचार नजर नहीं आता, तब लिखना पड़ता है ऐसा मुक्तक !
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जब जब कलम हुई सरकारी, जेब कटी है जनता की

महँगाई और जुल्म बढ़ा है, फूटी किस्मत जनता की

देशप्रेम का करें ढोंग ये, धर्म की गोली देते हैं

पछतायेंगे, हाथ मलेंगे, जो नींद ना टूटी जनता की

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दिन रात सनम करते हैं,
हम बस तुझे ही याद
दिल से निकलती है दुआ,
पर होठों पे फरियाद
कुछ और नहीं है हमें,
बस एक ही है काम
करना है तुझको याद,
बस करना है तुझको याद

-राज कुमार कांदु

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जब नापता है दिल, किसी के दिल की गहराई
शिद्दत से महसूस करता है किसी की जुदाई
तन्हा कर लेता है वो भीड़ में भी खुद को
बड़ी प्यारी सी लगने लगती है खामोश तन्हाई

-राज कुमार कांदु

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मैं वो नहीं जो आ जाऊँ आसानी से नजर

चेहरे पे चेहरा हरदम लगाता रहा हूँ मैं

कुछ इस कदर है सोच अब अहले जमात की

क्या होगा कल ये सोच के सिहरता रहा हूँ मैं 🙏

-राज कुमार कांदु

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इनबॉक्स घुस जाइये,
चाहे मॉर्निंग हो या नून
फ्लर्टिंग फ्लर्टिंग खेलिए
मजा लीजिये दून
मजा लीजिये दून
मगर यह कभी न भूलना
हुई जो उनको खबर
धुलाई होगी दोनों जून
😂😂😂

-राज कुमार कांदु

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प्यासा कौआ
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पंचतंत्र की कथा सुनाता
बच्चों सुन लो ध्यान लगाय
ज्ञान धर्म की बातें सुनना
शिक्षा कभी व्यर्थ ना जाय

कौआ एक बहुत प्यासा था
पानी को वह तरस रहा था
सूख गए सब ताल तलैया
नभ से आग बरस रहा था

एक खेत में घड़ा देख के
कौआ मन हर्षाया था
पर तल में पानी थोड़ा सा
देखके मन मुरझाया था

किया प्रयास बहुत कौवे ने
पर वह जल से दूर रहा
संकरा मुँह था घड़े का जिससे
वह काफी मजबूर रहा

कर प्रयास वह थका मगर
पर हिम्मत उसने ना हारी
जुटा फिर वह नव प्रयास में
तज के अपनी लाचारी

कंकड़ की ढेरी से कंकड़
एक एक कर वह लाया
कंकड़ के भरने से पानी
घड़े में ऊपर तक आया

पी कर मन भर वह पानी
कौआ खुद ही मुस्काया था
उसकी छोटी सी बुद्धि ने
उसका प्राण बचाया था

चाहे मुश्किल कैसी भी हो
संयम नहीं कभी खोना
कर प्रयास अंतिम दम तक
तुम कौवे सम ही सफल होना

पंचतंत्र की एक कहानी पर आधारित
राजकुमार कांदु

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कभी अलविदा नहीं कह पाओगे
हम तुम्हारी साँसों में रहते हैं
दम नहीं भरते खोखली मोहब्बत का
पर तुम्हारे इंतजार में रहते हैं

-राज कुमार कांदु

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जब रात घनी अँधियारी हो,

जब तमस किरण पर भारी हो

उम्मीदों के तब दीप जला

आलोकित दुनिया सारी हो

-राज कुमार कांदु

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