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मैं मनिष कुमार "मित्र" व्यवसाय से दर्जी हुं . मुझे गजले शेरों शायरी कविताएं और अर्थ पूर्ण कहानिया पढने का शौखीन हुं.और लिखने का भी शौख है.अधिकतर कविताएं लिखता हुं.आप सबसे अनुरोध हैं की मेरी रचनाओ को पढकर आप कमेन्ट जरुर किजीऐ और मुझे उत्साहीत और प्रोत्साहित किजीऐ . आप सब का स्नेह अपनापन आत्मियता और साथ सहकार जरुर दिजीऐ ताकी मेरा यह सफर हसीन और उत्साहवर्धक बन सके. हार्दिक धन्यवाद
जहां में ऐसा कौन है जिसको गम नहीं मिलते, अरे मिलते हैं ज्यादा तो किसी को कम नहीं मिलते, बाग बाकी शरारतें चमन को खाक कर डाला, अगर अपने नहीं मिलते तो "मित्र" को गम नहीं मिलता। ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏
थक गया हूं रोटी के पीछे भाग भाग कर, थक गया हूं सूनी-सूनी रातों में जाग जाग कर, काश मिल जाए वो बीता हुआ बचपन मुझे, जब मां खिलाती थी भाग भाग कर , और सुलाती थीं लोरिया सुना सुना कर। ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏
પાણી ના હોય તો નદી શું કામની, આંસુ ના હોય તો આંખો શું કામની, દિલ ના હોય તો ધડકન શું કામની, પ્રેમ ના હોય તો પ્રીત શું કામની, વરસાદ ના વરસાવી શકે તો વાદળી શું કામની, જીવતા ના આવડે તો જિંદગી શું કામની, ✍️મનિષ કુમાર "મિત્ર" 🙏
"એકલો જાગ્યા કરું" રાત ભર બસ એકલો જાગ્યા કરું, હું જ મારાથી અલગ લાગ્યા કરું. લાવ મારા મૃગજળ પાછા ઓં ખુદા, હું હવે જન્નત નહીં માગ્યા કરું. ઓરડામાં સૂર્ય ચીતરી તાપનું કરતો રહ્યો, કોઈ નકશાની નદીને રોજ કરગરતો રહ્યો. ચાર દીવાલો વિનાનાં આ ઓરડામાં કેદ છું, બાઅદબ આ વાયરો સતત પહેરો ભરતો રહ્યો. ✍️મનિષ કુમાર "મિત્ર" 🙏
" દિકરીની વેદના " જીવું છું હું તમારો એમ મને તરછોડો ના, કેવી છે આ દુનિયાની રીત મા-બાપથી દીકરી અળગી કરી. આંખ ભીની કરી પપ્પા તમે, વિદાય કેમ મારી વસમી કરી, ખુશીથી વળવાનો મને મનમાં રાખી દલપત તમે. સંસ્કારોનું આભૂષણ પહેરી સાચવીશ હું આબરુ તમારી, ગર્વથી ઊંચું થશે શીસ તમારું કાર્ય કરી સેવા હું મારા. લાભ શરમનુ કરિયાવર થી સાસરીયાનું ઘર ભરીશ મારુ, વિદાય તો માત્ર દેહની છે, પપ્પા દિલમાં સાચવજો તમે મને આજે વિદાય થાઉં છું ડોલીમાં પપ્પા તમારા ઘરેથી, દુનિયાથી વિદાય વેળા મને વળાવવા આવજો પપ્પા તમે. દીકરી ની દુઃખદ વિદાય જોઈ વિચારે છે "મિત્ર", દુનિયાની તે આ કેવી વસમી વિદાય ની રીત. ✍️મનિષ કુમાર "મિત્ર" 🙏
माता पिता पर इतना तो विश्वास रखो, जितना बीमार होने पर दवाइयों पर रखते हो, बेशक थोड़े कड़वे होंगे, पर आप के फायदे के लिए होंगे। ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏
वो याद नहीं करते, हम भुला नहीं सकते, वो हंसा नहीं सकते, हम रुला नहीं सकते, दोस्ती इतनी खूबसूरत है हमारी यारों, वो बता नहीं सकते और हम जता नहीं सकते। ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏
कुछ बातें पैसों (धन) की.... पैसों की कमाल देखो... वंदनीय एवं ज्ञानी होने पर भी बिना पैसे अवहेलना होती है। पैसा होने पर अज्ञानी लोगों को भी मान सम्मान मिलता है। इस दुनिया में कोई किसी के अधीन नहीं, सब पैसों के अधीन है। पैसों का कोई रूप नहीं फिर भी सब को अपनी और आकर्षित करता है। पैसों का कोई हाथ नहीं पर काम सब करता है। पैसों का कोई पांव नहीं पर चलता सब में है। पैसों की कोई जुबान नहीं फिर भी बोलता है। पैसा कोई अन्न नहीं, फिर भी उसे बहुत ज्यादा खाया जाता है। पैसा होने पर दूर के रिश्तेदार भी आपके करीब रहते हैं। बिना पैसे आपके अपने भी आप से दूरियां बनाए रहते हैं। ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏
कटाक्ष व्यंग.... गरीबो ने अपना बदन बेच डाला, अमीरों ने अपना चलन बेच डाला, पर इन बेईमान नेताओं का क्यां कहना, कब्र से मुर्दा निकाला और कफन बेच डाला। ✍️मनिष कुमार "मित्र"पर
आदत हो गई है.... मोहब्बत अब नहीं शायद, मगर दिल की यह आदत हो गई है, तेरा रास्ता नहीं देखना चाहता, मगर देखने की आदत हो गई है। बहुत दिनों से सोचता हूं, अब तुझे याद ना करूं मैं, मगर मेरी दुनिया में अब, सिर्फ तेरी यादें ही बाकी है। कभी बारिशों में हम तुम,साथ साथ चलते थे, मगर अब बारिशों में बरसना, हमारी निगाहों की आदत हो गई है। अब तो ख्वाबों ख्यालों में जिंदगी बसाए हुए हैं, हकीकत में तो "मित्र" जिंदगी बहुत ही फीकी सी लगती है। ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏
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