Vrajesh Shashikant Dave Books | Novel | Stories download free pdf

द्वारावती - 11

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 237

11 व्यतीत होते समय के साथ घड़ी में शंखनाद होता रहा ….नौ, दस, ग्यारह, बारह….. एक, दो, तीन, चार….. ...

द्वारावती - 10

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 396

10 अरबी समुद्र रात्री के आलिंगन में आ गया। द्वारका नगर की घड़ी ने आठबार शंखनाद किया। समुद्र तट ...

द्वारावती - 9

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 900

9संध्या हो चुकी थी। महादेव जी की आरती करने के लिए गुल मंदिर जा चुकी थी। गुल ने घंटनाद ...

द्वारावती - 8

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 834

महादेव की आरती में घंटनाद करने के पश्चात उत्सव वहाँ से चला गया था। समुद्र के मार्ग पर चलते ...

द्वारावती - 7

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 618

7गुल समुद्र को देख रह थी। समुद्र की ध्वनि के उपरांत समग्र तट की रात्री नीरव शांति से ग्रस्त ...

द्वारावती - 6

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 768

6गुल ने उसे जाते देखा। वह सो गया था। शांत हो गया था। सोते हुए उत्सव के मुख पर ...

द्वारावती - 5

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 744

5सूरज अभी मध्य आकाश से दूर था। सूरज की किरनें अधिक तीव्र हो चुकी थी। किन्तु समुद्र से आती ...

द्वारावती - 4

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 696

4उत्सव भागता रहा, भागता रहा। वह उसी दिशा में दौड़ रहा था जिस दिशा से वह आया था। वह ...

द्वारावती - 3

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 762

3 "7 सितंबर 1965 की रात्री। द्वारिका के मंदिर को देख रहे हो? वहाँ दूर जो मंदिर दिख रहा ...

द्वारावती - 2

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 900

समुद्र की शीतल वायु ने थके यात्रिक को गहन निंद्रा में डाल दिया, उत्सव सो गया। समय की कुछ ...