नंदू मुझे कस्बापुर में मिला था। अपने तेरहवें और मेरे ग्यारहवें वर्ष में।सन उन्नीस सौ बासठ में। ...
ऊटक नाटक सोमा हाथ बांध कर फिर हमारे ...
साहित्य के क्षेत्र में मेरी अनभिज्ञता अजेय- अज्ञान के निकट थी और सुमंत्रित उन लोगों की भलाई चाहने के ...
“सपाट सड़कों पर गाड़ी बहुत दौड़ा ली। आज ऊबड़- खाबड़ रास्ते नापते हैं। शहर के बाहर निकलेंगे,” सन उन्नीस ...
घर मैं शुक्रवार की सुबह आ पहुंचता हूं। मेरे गेट ...
“यह सज्जन आज के विज़िटर्ज़ हैं, सर,” मेरे दफ़्तर के विज़िटर्ज़ टाइम पर मेरा निजी सचिव मेरे सामने एक ...
दूसरे दौर में “रात मैं ने देखा मेरे सामने ...
लेखिका : दीपक शर्मा “क्लब की लाइब्रेरी के बारे ...
जानती हूं, जानती हूं, लिखाई मेरी सीधी नहीं और बात भी कुछ टेढ़ी ही है। ...
तुम आज भी मेरे साथ जमा हो, लतिका….. पिछले छप्पन ...