नदी के शांत और निर्द्वंद बहते पानी पर से अभी – अभी सिंदूरी रंग उतरा है और अब नदी ...
आषाढ़ महीने की तेज हवाओं की तरह यह बात कुछ ही देर में पूरे इलाके में फ़ैल गई थी. ...
“कौन-सा ... कौन-सा समय होता है घडीसाज़ का।“ उसने चश्मे के अंदर अपनी कंजी और मिरमिरी-सी आँखों से घूरते ...
घर से यहाँ तक के सारे सफ़र और यहाँ बस से उतरकर नाना के गाँव की पगडण्डी पर पैदल ...
हम विस्मय से सुनते हैं साँस थामकर। रात की ख़ामोशी को तोड़ते हुए दूर कहीं से मामी की आवाज़ ...