बिकने दिजिए चश्मा-चरखा

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एक खबर आई थी कि गांधी जी का चश्मा और चरखा बिक रहा है। सवाल यह है कि जब गांधीवादियों ने उनके पूरे दर्शन को ही बेचकर खा लिया, तो फिर चश्मा-चरखा ही बिक रहे हैं, तो कैसा दर्द गांधी भले ही नंगे रहे, लेकिन लोगों को कमाई का जरिया दे गए। इसी भाव भूमि पर रचा गया है यह व्यंग्य। इसमें गांधी जी साक्षात मौजूद हैं और अपनी व्यथा कथा बता रहे हैं। गांधी के चेलों ने गांधीवाद की क्या दशा कर दी है, जानने को पढि़ए बिकने दीजिए चश्मा-चरखा।