गोरा - 13

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परेशबाबू के पास जाकर ललिता बोली, 'हम लोग ब्रह्म हैं इसीलिए कोई हिंदू लड़की हम दोनों से पढ़ने नहीं आती- अत: मैं सोचती हूँ, हिंदू-समाज से किसी को भी शामिल करने से सुविधा रहेगी। क्या राय है, बाबा?' परेशबाबू ने पूछा, 'हिंदू-समाज में से किसी को पाओगी कहाँ?' ललिता आज बिल्‍कुल कमर कसकर आई थी, फिर भी विनय बाबू का नाम लेने में उसे लज्जा हो आई, जबरदस्ती उसे हटाती हुई बोली, 'क्यों,क्या कोई नहीं मिलेगा? यही विनय बाबू हैं या.... ' यह 'या' एक बिल्‍कुल व्यर्थ शब्द था-एक अव्यय का निरा अव्यय, वाक्य अधूरा ही रह गया।