गलीज़ ज़िंदगी

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औघड़ तू भी मेरा भला नहीं कर सका। बेकार रही तेरी भक्ति। जिन्दगी भर न तो तन को नया कपड़ा दिया, न पेट भर खाना। न घर न घरवाली। देख तेरे भक्त की हालात। है कोई इसे सँभालने वाली बनाकर दो रोटी देने वाली तू भी मेरा भला नहीं कर सका। कैसा भोले कैसा भक्त रात अक्सर नशे की हालत में बुदबुदाता वह लुढ़क कर सो जाता था।