तरक्की की कीमत

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बचपन के दिन कैसे फुदक के उड़ जाते हैं , स्कूल की शिक्षा खत्म हुई और आँखो में बड़े बड़े सपने खिलने लगते हैं ,जैसे ही उमंगें जवान होती है कुछ करने का जोश और आगे ऊँचे बढ़ने का सपना आंखो में सजने लगता है ।ठीक ऐसा ही शिवानी की आँखो में था एक सपना कुछ बनने का , कुछ पाने का, जिन्दगी के सब खूबसूरत रंगो को जीने का । वह मेघावी थी और सब गुण भी थे उस में , पर वह एक बहुत छोटे से शहर की लड़की थी । अपने सपनो को पूरा करने के लिए