पोषाहार प्रभारी

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उतरा मुंह लेकर आये पोषाहार प्रभारी।बोले लकड़ी खत्म हो गई सारी।।अब बनाये कैसे रोटी और दाल।ऊपर से सब कहते मास्टर खा जाते सारा माल।।मैंने कहा, चिंता ना करो सर।गैस की टंकी कल ही तो लाये थे भर।।आप तो यू हीं चला लेना अपने घर।यहाँ ना चलेगा मगर।।जैसे तैसे लकड़ी लाए।ताकि किसी तरह चूल्हा जलाए।इतने में एक बच्चा दौड़ा आया।बोला , सर! दूध।सर दौड़े दूध देखने आया कि नहीं आया ।जाकर देखा दूध नहीं आया।।दूध वाले को फ़ोन कियादूध वाले ने टाइम लगेगा जवाब दिया।।यह सुन गुरूजी का मुंह लटका।क्योंकि दूध वाले का पेमेंट था जो अटका।।वापस आकर गुरूजी बोले दूध