और वह मर गयी

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नदी किनारे गांव के एक छोर पर एक छोटे से घर में रहती थी गांव की बूढी दादी माँ। घर क्या था ,उसे बस एक झोंपडी कहना ही उचित होगा। गांव की दादी माँ, जी हां पूरा गांव ही यही संबोधन देता था उन्हें। नाम तो शायद ही किसी को याद हो। 70/75 बरस की नितान्त अकेली अपनी ही धुन में मगन। कहते हैं पूरा परिवार था उनका नाती पोते बाली थीं वो। लेकिन एक काल कलुषित वर्षा की अशुभ!! रात की नदी की बाढ़ ,,, उनका सब समां ले गई अपने उफान में । उसदिन सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य