द्वंद (अध्याय एक)

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युद्ध के मैदान में मै खड़ा चारो तरफ कोलाहल से भरा माहौल था। धाय धाय गोलिया चल रही थी ,गोले बारूद चल रहे थे। दुश्मन की गोली चारो तरफ से आ रही दाए से बाए से आगे से ऊपर से।मेरा कप्तान मेरे पर बरस रहा था गोली चला, बुत क्यों बना खड़ा है,मर जाएगा तू।चारो तरफ भारी उपद्रव हो रहा था। मै फिर भी सन्न खड़ा था वहा।मै खड़ा बीचों बीच युद्ध के मैदान में अपने ही द्वंद में फसा पड़ा था।सामने दो महापुरुष खड़े थे।एक बोल रहा था लड़ क्योंकि लड़ना ही तेरा धर्म है।याद रख तू नहीं लड़ेगा