अपनी अपनी मरीचिका - 14

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आज दीपावली की रात है। चारों ओर उल्लास का वातावरण है। बमों और आतिशबाजी की आवाजों के साथ बच्चों की किलकारियाँ एकाकार हो गई हैं। थड़ी से पूजन करके बाबा आज जल्दी लौट आए हैं। अम्मा-बाबा के साथ बैठकर मैंने भी लक्ष्मीपूजन की औपचारिकता निभाई है। बिजली और दीपकों की कृत्रिम रोशनी अमावस्या के अंधकार को परास्त -करने में अक्षम है। मेरे हृदय में फैला घना अंधकार निर्णय पर पहुँचने के बाद भी आज की रात की तरह दिशाभ्रम पैदा करता है।