हतभाग्य

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मैं तो उस वक़्त पूरी तरह टूट चुकी थी जब पिता के देहान्त के बाद दो छोटे भाईयों के साथ घर का बोझ मेरे ऊपर आ गया । माँ तो बचपन मे ही छोड़ चली थी एक पिता का ही सहारा था वो भी मुझसे छीन लिया गया। क्या करूँ........ कैसे जीवन की नाव को पार लगाऊँ, भगवान अब तेरे ही सहारे सब कुछ छोड़ रही हूँ मेरी तो हिम्मत ही नही हो रही है इस जीवन मे आगे चलने की, मन करता है अभी आत्महत्या कर लूँ पर कैसे..... भगवान उन दोनो बच्चो का क्या होगा ? जो अभी