जब जिंदगी की पहचान नम्बरों से होने लगे और जीना मशीन के सहारे, तो फिर कोई यकीन किस पर करे और इनसे निपटने के लिये किस तरह अपनी याददाश्त को सलामत रखे ? बड़ी उलझन में पड़ी है इन दिनों भाई ईन्दरचंद की मानसिकता,,, जितने भी जीवन यापन के साधन है, सबमें नम्बरों की जरूरत पड़ती है . आज सुबह से घर मे खाने और दैनिक जरूरतों का सामान खत्म हो गया है . उसे लेने जाना है ,चाहे एटीएम से केश निकाले या दुकान में कार्ड स्वाइप करे दोनों ही सूरतों में उसमें पासवर्ड डालना होगा और वो