कहानी च्युइंग गम की

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कक्षा छह में मुझे पहली बार पॉकेट मनी यानी जेब खर्च मिलना शुरू हुआ। जेब खर्च के नाम पे 1996 में रोजाना एक रुपया बुरा नहीं था। मैं शायद दुनिया का पहला ऐसा बच्चा रहा हूं जो इस लालच में स्कूल जाया करता था कि सुबह सुबह पापा एक रुपए देंगे। पर परेशानी संडे यानी रविवार को होती थी क्यों कि उस दिन कुछ नही मिलता था। पापा बोलते थे आज तो छुट्टी रहती है पैसे का क्या करोगे। घर पे माँ से कुछ अच्छा बनवा लिया करो। मैंने सोंचा अच्छे के चक्कर मे बैंगन की सब्ज़ी ही खानी पड़ेगी