जब हम मुसलमान थे....!

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टटक-डिडक...टटक-डिडक....टटक-डिडक......ट्रेन के पहियों की इन आवाज़ों के साथ-साथ गौतमी के दिल की धड़कनें भी बढ़ती जा रहीं थीं. बगल में बैठे उसके पतिदेव रामकुमार की भी लगभग यही हालत थी. गौतमी घबराहट के मारे बार-बार राम कुमार की बांह पकड़ लेती थी. और हर बार मन ही मन बेचैन राम कुमार, अपनी बांह पर कसी उसकी हथेली को थपथपा के दिलासा सी देते. मजबूरी ऐसी कि अपनी घबराहट को बोल के भी व्यक्त नहीं कर सकते थे दोनों. . ट्रेन को स्टेशन से छूटे अभी दस मिनट ही हुए होंगे. गौतमी बेसब्री से टीसी का इंतज़ार कर रही थी. एक-एक