मुखिया काका

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“मुखिया चाचा नहीं रहे, विमला...” फोन का रिसीवर रख, अरविंद ने पत्नी के निकट आकर कहा, तो एक बार को तो वह लड़खड़ा गई। पर दूसरे ही पल स्वयं को सम्भालती हुई बोली, “हमें जाना होगा... आप चल सकेंगे?” “हाँ, हाँ! बिल्कुल चलूंगा। बस एक बार हॉस्पिटल जाना होगा। फ्लाइट भी वहीं से बुक करवा दूंगा हूँ।” “कितनी बार सोचा मिल आऊँ जाकर... पर निकल ही नहीं पाई,” कहते-कहते, आँख से आँसू बह कर गालों पर आ गए थे विमला के। “बीमार चल रहे थे,” अरविंद ने कहा।