रात का सन्नाटा पसरा था । एकदम शान्त माहोल, घड़ी की टिक टिक के अलावा कुछ भी आवाज़ नहीं, बस यूं समझिए कि घड़ी मुस्तैदी से अपनी ड््यूटी पर तैनात है सैकण्ड दर सैकण्ड अपना चक्कर पूरा करती, बिना किसी से कुछ कहे, बिना किसी शिकायत के । शिवानन्द जी ने करवट बदली तो बगल में ही सो रही सुलेखा जी ने पूछा क्यों क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या ? मेरी छोड़ो तुम्हें कहां आ रही है तुम भी तो जग ही रही हो । शिवानन्द जी बोल पड़े । जैसे ही शिवानन्द जी ने बोला तो बाहर