आमची मुम्बई - 36

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जब भी वर्ली सी लिंक से गुज़रती हूँ लगता है समँदर मेरा हमसफ़र है नजाने मुझसे कहाँ-कहाँ की सैर करा देता है न जाने कितने तटों पर बैठाकर अपनी लहरों से मुझे छूता है, बतियाता है मानो कह रहा हो..... मैं तुम्हारी हँसी में समा जाना चाहता हूँ हवा की तरह भर जाना चाहता हूँ तुममें उड़ा देना चाहता हूँ तुममें जमा दुख-पीड़ा..... मैं अचकचा जाती हूँ याद आता है जुहू सागर तट जो मेरे मुम्बई आगमन का पहला साक्षी है