दस दरवाज़े - 16

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हमारे घर में पहला बच्चा होने वाला है। अंजू हर समय भयभीत-सी रहती है। उसको वहम है कि कोई अनहोनी ही न हो जाए। छोटी-सी तकलीफ़ को बड़ी बनाकर बताती है। एक दिन हम शॉपिंग से लौटते हुए टैंटलो एवेन्यू से गुज़र रहे हैं। वह अचानक कहने लगती है - “मुझे टॉयलेट जाना है।” “यहाँ तुझे टॉयलेट कहाँ ले जाऊँ? अब घर तक वेट कर, थोड़ी सी ओर।” “जी नहीं, जल्दी!” “यहाँ न खेत, न ईंख।” कहता हुआ मैं हँसता हूँ, परंतु वह रुआंसी हुई पड़ी है।