चाँद

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रात जाने कितनी जा चुकी थी पर नींद थी कि जैसे उसकी आँखों का रास्ता ही भूल गई थी। कुछ पल को ही सही, एक गहरी नींद लेने की कितनी कोशिश कर रहा था नरेश...। प्यास से चटकते गले को भी उसने इसी लिए कुछ देर नज़र‍अंदाज़ किया कि कहीं उठने पर उसकी सोने की रही-सही आशा भी न चली जाए। पर जब प्यास बर्दाश्त से बाहर हो गई तो उठना ही पड़ा। सन्नाटा अपने सारे शोर के साथ चारो ओर पसरा हुआ था। मधु और तीनो बच्चे गहरी नींद की आगोश में थे। छोटी की तो रह-रह कर नाक भी बज रही थी।