पत्थर के लोग

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उसकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह भावुक, संवेदनषील और कवि हृदय व्यक्ति है । कोई भी घटना उसके अन्तर्मन को झकझोर देती है । रात-रात भर वह उसके पीछे जागता है । खोया खोया-सा मनन करता है, अन्दर ही अन्दर घुटता है । पत्नी-बच्चे उसकी इस आदत से वाकिफ़ हैं । वह काव्य गोष्ठियों में भी भावुक रचनाएं व राष्ट्रीय विचार की रचनाएं ही पढ़ता है । युवा होने के बावजूद श्रृंगार से उसका दूर-दूर तक का कोई लेना-देना नहीं, बल्कि बूढ़े-बूढ़े कवियों को श्रृंगार-रस गाते सुन उसको आष्चर्य होता है कि उससे ऐसी रचनाएं क्यों नहीं लिखीं जातीं । दो बच्चों का पिता बनने के बावजूद वह पत्नी से कभी उतना रोमांटिक नहीं हुआ जितना बूढ़े कवियों की कविताओं से प्रेम टपकता है ।