घडीसाज़

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“कौन-सा ... कौन-सा समय होता है घडीसाज़ का।“ उसने चश्मे के अंदर अपनी कंजी और मिरमिरी-सी आँखों से घूरते हुए दार्शनिक अंदाज़ में सीधे मेरी ओर उछाला था यह सवाल। मैं कतई तैयार नहीं था ऐसे किसी सवाल के लिए। मैं औचक खड़ा रह गया उसकी उलझी हुई मूँछ और सफ़ेद दाढ़ी को देखते हुए। “यंगमैन, मैं तुमसे पूछ रहा हूँ...” मुझे इस तरह अन्यमनस्क देखकर हँसा था वह।