जहां से चले थे...

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लुहार बस्ती में हर झोंपड़े में कल होने वाली रैली में चलने की चर्चाएं गर्म थीं । तीन-चार दिन से यहां रोज़ कारें चक्कर लगा रहीं थीं । पहले दिन जब वे लोग आए थे तो बस्ती की सभी औरतें, बच्चे सहमकर रह गये थे । आदमियों के चेहरे पीले पड़ गये थे । कान्हा लुहार तो समझा था कि फिर सरकारी दस्ता उनकी झोंपड़ियेां को उखाड़ बेघर करने आ गया । अभी करीबन छः माह पहले ही तो उन्हें शहर से खदेड़कर शहर के एक छोर पटक दिया गया था । अब यहां से शहर आने-जाने में ही दो घण्टे खत्म हो जाते हैं । ना पानी.....ना बिजली....ना सड़क ....।