मुट्ठी भर सुख के लिए

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आज अजीब-सी बेचैनी प्रकाष के दिल में दिन भर कुलबुलाती रही । ना लंच किया, ना किसी से बात और ना ही कोई फाईल ही निपटाई । बस शून्य मस्तिष्क लिये सिगरेट के धुंएॅ को निगलता रहा । रोज़-रोज़ देर से ऑफिस आना और जल्दी चले जाना कहां तक सम्भव है । और अब तो बूढ़ी मां की तबियत भी उसका परिवार संभालते-संभालते बिगड़ने लगी है । उसे दिन भर लगता रहा जैसे ऑफिस की दीवारों से उसके बीमार बच्चे की कराहने की आवाज़ें फूट-फूटकर उसके कानों में हथौड़े-सी बज रहीं हों । हर फाईल पर उसके बुखार से तपते बच्चे का चेहरा उभरता रहा । कनपटियों पर बच्चे की तेज़ चलती नब्ज़ की धमक सुनाई देती रही । कानों में हवा में बहती उसकी आवाज़ -पापा ! मम्मी को बुला दो......।