परी....!

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वह आंखे फाड़-फाड़ कर चारों ओर देख रही थी । . कुछ देर तो लगा था । आंखे चुधियां सी गई हैं । ऐसी रोशनी .. ऐसी सजावट सिर्फ टी.वी. सीरीयलों में देखा था। यहां सबकुछ वैसा ही तो था। वैसी ही सजावट, और वैसी ही सजी-धजी लड़कियों औरतों की रेलम पेल। हीरो जैसे दिखते आदमी जन । उसका बड़ा मन हो रहा था, वो भी भीतर जाकर घूमे। इस स्टाॅल से उस स्टॉल तक। कभी चाउमीन कभी बुढ़िया के बाल और बर्फ के रंगबिरंगे गोले खाये, पेप्सी मिराण्डा भी उसे ललचा रहे थे। उसे लल्लू चाचा और हरि भाइया से जलन हो रही थी । दोनों का रूप रंग देख पहले तो उसे खूब हंसी आई थी । कैसा मोटा फुला हुआ गुब्बारे जैसा लबादा पहने थे दोनों । बिल्कुल उस मिकी माउस के गद्दे जैसा जिसपर बच्चे उछल कूद मचा रहे हैं ।