आधा सुख-आधा चांद

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घड़ी ने रात के बाहर बजा दिये । घड़ी का अलारम टन...टन....टन... करता हुआ बारह बार बोलकर खामोष हो गया और इसी खामोषी के साथ रात का भयावह पहर शुरू हो गया । बैडरूम के बीचों-बीच पड़े डबल बैड पर पड़ी मखमली चादर लैम्प के मद्धिम प्रकाष में निखर उठी थी । वह कमरे में कदम नापती रही । इस कोने से उस कोने तक । फिर थककर डबल बैड के नरम बिस्तरों पर अधलेटी-सी बैठ गई । ऊपर छत को घूरती रही । आज उसकी आंखों से नींद कोसों दूर भाग गई थी । दूर-दूर तक नींद की छाया भी नहीं थी ।